रायपुर। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 76 वीं जयंती है. छत्तीसगढ़ के साथ भी उनकी कई यादें जुड़ी हुई हैं। 35 बरस पहले देश के सबसे युवा पीएम को विशेष आदिवासी जनजाति की संस्कृति, रहन-सहन, खानपान और वेशभूषा जानने की जिज्ञासा यहां खींचकर ले आई थी। आदिवासियों की झोपड़ी में जाकर पहली बार उन्होंने पत्तल-दोना में खाना खाया और चरोटा भाजी के स्वाद के साथ ही महुए के फूल का भी रस चखा था। आज भी दुगली वासियों के जेहन में वो यादें ताजा हैं।

आज 20 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उनकी जयंती पर पूरा देश याद कर रहा है। ऐसे में भला छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला के नगरी विकासखंड स्थित ग्राम दुगली के ग्रामीण उन्हें कैसे भुला सकते हैं। भारत रत्न राजीव की वो यादें आज भी उनके जेहन में कायम हैं। 35 साल पहले देश की सबसे प्राचीन और पिछड़ी जनजाति कमार की संस्कृति और जीवन शैली को जानने की जिज्ञासा उन्हें दुगली खींचकर ले आई थी। 14 जुलाई 1985 का वो दिन कमार जनजाति के लोगों की इन बूढ़ी आंखों में आज भी उसी तरह ताजा है जब राजीव गांधी अपनी पत्नी सोनिया गांधी के साथ पहुंचे थे।

उनके साथ अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, सांसद एवं संत कवि पवन दीवान, सिहावा विधानसभा के तत्कालीन विधायक अशोक सोम भी थे। खुली जीप में सवार राजीव और उनकी पत्नी सोनिया की गाड़ी दुगली तिराहे में जाकर सड़क किनारे एक घर के सामने रुक गई थी। यहां बायोगैस प्लांट से खाना पकाया जा रहा था। इसी दौर में गोबर गैस संयंत्र योजना का शुभारंभ हुआ था। इसके बाद वे ग्रामीण देवसिंह सिन्हा के सायकल रिपेयरिंग की दुकान में पहुंचे। जिसके बगल में कमलाबाई विश्वकर्मा नाम की महिला अपनी टोकरियों में सब्जी-भाजी का पसरा लगाकर बैठी थी, राजीव गांधी की एक झलक पाने धमतरी ही नहीं बल्कि सुदूर क्षेत्र के ग्रामीण बड़ी तादाद में पहुंचे थे। लोगों में राजीव और सोनिया को देखने की ललक ऐसी कि खेतों में लगी धान की फसल को रौंदते हुए वे पहुंच गए और एक झलक पाने के लिए वे खेतों में ही घंटों खड़े रहे। कमला बाई उस दिन को याद करते हुए बताती हैं कि वह रविवार का दिन था। उस दिन उसने अपनी टोकरी में लाल भाजी, टमाटर, करेला, मिर्च और धनिया सब्जी का पसरा लगाया था।

प्रायमरी स्कूल के बच्चों से हुए रुबरू

देश को कम्प्यूट युग से जोड़ने वाले राजीव ही थे वे बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा की जानकारी लेने दुगली के प्रायमरी स्कूल पहुंचे। जहां उन्होंने प्रधानपाठक रतीराम नाग से पढ़ाई को लेकर चर्चा की और बच्चों से मिलने क्लास रुम पहुंच गए, जहां अपने साथ लाए चॉकलेट का पैकेट बच्चों को अपने हाथ से बांटा. इसके साथ ही वे बच्चों से उनका नाम, क्लास और गांव का नाम जैसे बुनियादी सवाल भी पूछे।

स्कूल में लगभग 15 मिनट बिताने के बाद उनका काफिला 15 फीट चौड़े पगडण्डीनुमा कच्चे रास्ते से गुजरकर वनग्राम जबर्रा से आगे बढ़ते हुए वे सीधे कमारपारा पहुंचा। यहां पहुंचने पर जीप से उतरकर वो और सोनिया गांधी कमारों के मुखिया सुकालू और सोनाराम कमार से मिले। कमारपारा में एक बड़े कुएं का निर्माण तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन द्वारा कराया गया था, जो स्थानीय कमारों के पेयजल और निस्तारी का साधन था, इस कुंए का अवलोकन राजीव गांधी ने किया। यह कुआं आज भी राजीव गांधी के कमारपारा प्रवास का गवाह है। इस कुएं की मुंडेर पर तिथि और नाम भी आज भी अंकित है।

दोना में मड़िया पेज और कडू कंद का स्वाद चखा

वे यहां मैतूराम की झोपड़ी में पहुंचे। वे बताते हैं कि उन्होंने राजीव का स्वागत बांस की टोपी से किया था और उनकी पत्नी ने सोनिया गांधी को बांस के मोतियों की बनी माला पहनाई थी। जहां अमरुद के पेड़ के नीचे बैठकर राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने पलाश के पत्ते से बनाए गए दोने में मड़िया पेज, कडू कंद, कुल्थी बीज की दाल और चरोटा भाजी का स्वाद भी चखा। साथ ही महुए के एक फूल को लेकर उसके रस का भी स्वाद लिया।

मैतुराम और उनकी पत्नी से राजीव ने किया था एक वादा

मैतूराम बताते हैं कि उनसे और उनकी पत्नी के साथ बातचीत में राजीव गांधी ने उनकी मांगों के बारे में पूछा तो उसने कहा, ‘खेती के लिए जमीन चाहिए।’ जिसके जवाब में राजीव ने कहा, ‘तुम कोई जमीन देख कर रखे हो’, जवाब में मैतु ने कहा, ‘नहीं’। राजीव गांधी ने कहा, ‘जमीन देख कर रखना मैं अगली बार आउंगा।’ मैतुराम आज भी राजीव गांधी का इंतजार कर रहे हैं, हालांकि राजीव उसके बाद लौट नहीं पाए और श्रीपैरम्बदूर में एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई।

फिर कमार विकास प्राधिकरण का हुआ गठन

गांव के 65 वर्षीय बुजुर्ग और तत्कालीन ग्राम पटेल भुवालराम नेताम ने बताया कि उन्होंने पुरानी बस्ती (बीरनपारा) में मिट्टी से बने कुछ घरों में जाकर अवलोकन भी किया। इससे थोड़ी दूर पर बनाई गई घासफूस की झोपड़ी में उन्होंने दोपहर का खाना खाया। तत्कालीन विधायक अशोक सोम ने बताया कि दुगली प्रवास के बाद ही विशेष पिछड़ी जनजाति कमार के संरक्षण के लिए कमार विकास प्राधिकरण का गठन हुआ था।

दुगली के ग्रामीणों का कहना है कि राजीव गांधी कमार जनजाति के साथ-साथ आदिवासी संस्कृति, वनों पर उनकी निर्भरता और बिना किसी बाहरी सहयोग के जीवन यापन के तरीकों को करीब से समझना चाहते थे। राजीव गांधी की बातें करते हुए आज भी उनकी आंखे चमक उठती हैं। वे कहते हैं कि फिर किसी प्रधानमंत्री ने कभी उनकी सुध नहीं ली।