रायपुर। दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे,तो दुख काहे होय।
ये पंक्तियां भाजपा के बागी नेता और राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय भाजपा में मचे घमासान पर लिखीं है. उन्होंने इन पंक्तियों के जरिए भाजपा के उन नेताओं पर भी तंज कसा जो चुनाव के दौरान चुप रहे और अब पार्टी के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं. तो वहीं उन्होंने इस घमासान के जरिए यह भी कह दिया है कि भाजपा अब कैडर बेस्ड पार्टी नहीं बल्कि कारपोरेट कल्चर पार्टी हो गई है. जिसमें नेता मुख्य कार्यपालन अधिकारी याने सीईओ तो कार्यकर्ता कर्मचारी हो गए हैं.
वीरेन्द्र पाण्डेय ने अपने फेसबुक पेज पर बीजेपी में मचे बवाल पर यह लिखा है-
चंद्रशेखर साहू दुर्गति होने के बाद सार्वजनिक रूप से जो बातें कह रहे हैं,यदि समय रहते पार्टी फोरम में कहते तो आज ये दुर्दिन न देखने पड़ते।शायद साहू या अन्य सामान्य कार्यकर्ता जादा दोषी नहीं हैं।क्योंकि पिछले १०-१५ साल में भाजपा सामूहिक नेतृत्व और कार्यकर्ता आधारित(कैडर बेस्ड) पार्टी से बदलकर कारपोरेट कल्चर वाली पार्टी हो गई है।जिसमें नेता CEO और कार्यकर्ता कर्मचारी हो गये हैं।अब पार्टी मे परिवार भाव के स्थान पर स्वामी-सेवक संस्कृति हावी हो गई है।अतः कोई भी वह सत्य नहीं कहना चाहता जो नेता सुनना नहींचाहते।नेता की नाराजगी संभावित लाभ से वंचित कर सकती है।इसलिए सबसे भली चुप।लाभ के लोभ में मौन भी आज की दुर्गति का कारण है।वो कार्यकर्ता खो गए,जिनके बारे में एक अमेरिकी शोधकर्ता क्रेग बेस्टर ने अपने शोध ग्रंथ “एन आटोबायोग्राफी आफ इंडियन पोलिटिकल पार्टी” में लिखा था कि जनसंघ का चवन्नी का सदस्य भी अपने नेताओं से निडरता पूर्वक सवाल कर सकता है।उनके विचार से असहमति को निःसंकोच प्रकट करता है।१९७२ में क्रेग बेस्टर ने अपने शोध ग्रंथ में कहा था कि यह दल एक दिन भारत पर शासन करेगा।प्रश्न प्रगति का लक्षण है,अनुकरण और सवाल न पूछना दुर्गति का कारण।भाजपा की दुर्गति का एक बड़ा कारण संगठन मंत्री भी हैं।जिनकी स्थिति IAS अफसर की तरह है।अधिकार और श्रेय उनके खाते में।हार और असफलता के जिम्मेदार कार्यकर्ता।दुर्गति से बचने का एक ही उपाय है सामूहिक नेतृत्व और देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं को सम्मान देना।टिप्पणी-पहले के संगठन मंत्री अलग थे।वे सौदान सिंह नहीं थे।