रायपुर। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने शनिवार को संसद में पेश बजट को किसानों की कीमत पर कॉर्पोरेट मुनाफे को बढ़ावा देने वाला बजट बताया है। किसान सभा का मानना है कि सवाल चाहे लाभकारी समर्थन मूल्य का हो या कर्जमुक्ति का, किसानों की आय बढ़ाने का हो या उनको रोजगार देने का; यह बजट उनकी किसी भी समस्या को हल नहीं करता। कृषि, सिंचाई और ग्रामीण विकास के लिए 2.83 लाख करोड़ रुपये का बजट आबंटन मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए पिछले वर्ष की तुलना में कम है। इस मायने में यह किसानविरोधी बजट है.

रविवार को जारी एक बयान में छग किसान सभा के राज्य महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि पिछले पांच सालों में पेट्रोल-डीजल सहित किसानी के काम आने वाली सभी चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ी है, जिससे कृषि लागत बहुत बढ़ी है। खेती-किसानी घाटे का सौदा होने के कारण किसान क़र्ज़ के दलदल में फंसे हुए हैं। लेकिन स्वामीनाथन आयोग के सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य के रूप में देने के लिए वह तैयार नहीं है। किसान सभा नेता ने आरोप लगाया है कि कृषि क्षेत्र के रिटेल में एफडीआई के प्रवेश और ठेका-कॉर्पोरेट खेती को बढ़ावा देने से हमारी खाद्यान्न आत्मनिर्भरता प्रभावित होगी। फसल बीमा योजना किसानों की जगह, कॉर्पोरेटों की तिजोरी भरने का औजार रह गया है।

गुप्ता ने कहा कि बजट में किसानों की आय दुगुनी करने की फिर से जुमलेबाजी तो की गई है, लेकिन यह बताने के लिए तैयार नही कि पिछले तीन सालों में किसानों की आय कितनी बढ़ी है। वास्तविकता यह है कि पिछले पांच सालों से किसानों की आय मात्र 0.44% की औसत से बढ़ रही है और इस रफ़्तार से उनकी आय को दुगुना होने में 160 साल लग जायेंगे। मनरेगा सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है, लेकिन इस मद में भी पिछले बजट में 1000 करोड़ और इस बार फिर 9500 करोड़ रूपये की कटौती की गई है। इससे रोजगार उपलब्धता और ग्रामीण अधोसंरचना के विकास में गिरावट ही आएगी। इसी प्रकार खाद्यान्न सब्सिडी में भी 76000 करोड़ रुपयों की कटौती की गई है, जबकि विश्व भूख सूचकांक में हमारे देश का स्थान 102वां है और देश में आधे से ज्यादा बच्चे और महिलाएं कुपोषित और रक्ताल्पता का शिकार हैं।

किसान सभा ने कहा है कि मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश से अपने हाथ खींच रही है और इसके दुष्परिणामों के खिलाफ किसानों और आम जनता को बड़े पैमाने पर लामबंद किया जाएगा.