श्रवण चौहान,रायगढ़। घरघोड़ा विकासखण्ड के प्राथमिक शाला पुसल्दा के परिसर में स्कूली बच्चों को एक दुर्लभ प्रजाति का उड़न गिलहरी मिली.यह उड़न गिलहरी सम्भवतः जंगल से भटकते हुए प्राथमिक शाला पहुच गई थी, जिसे स्कूल के शिक्षक घनश्याम पटेल,सूरज पैंकरा और सुखसिंह पैंकरा ने सुरक्षित स्कूल में रखकर वन विभाग को सूचित किया.जैसे ही इसकी खबर लोगों को लगी तो उसे देखने के लिए स्कूल में आसपास ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी.बाद में कुडुमकेला क्षेत्र के वन अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर गिलहरी को अपने कब्जे मे लिया.इस गिरहरी को लेकर लोगो मे कोतूहल बना हुआ है.
जीव वैज्ञानिको की माने तो उड़न गिलहरी की यह प्रजाति काफी दुर्लभ है, इसे अंग्रेजी में (Flying squirrel), जो वैज्ञानिक भाषा में टेरोमायनी (Pteromyini) या पेटौरिस्टाइनी (Petauristini) कहलाये जाते हैं, ये कृंतक (रोडेंट, यानि कुतरने वाले जीव) के परिवार के जंतु हैं जो पाल-उड़ान(ग्लाइडिंग) की क्षमता रखते हैं. इनकी विश्व भर में 44 जातियाँ हैं जिनमें 12 जातियाँ भारत में पाई जाती हैं.
वनों में इनका जीवनकाल लगभग 6 वर्ष का होता है लेकिन बन्दी अवस्था में (जैसे चिड़ियाघर में) इनका जीवनकाल 15 साल तक का हो सकता है. परभक्षियों की वजह से शावकों की मृत्यु दर काफ़ी ऊँची होती है. प्राय: यह प्राणी निशाचर होता है.
इस प्राणी के आगे और पीछे के पैरों के बीच खाल की एक झिल्ली होती है.यह एक पेड़ से दूसरे पेड़ में जाने के लिए अपने पैर फैलाकर कूद जाते हैं और उड़ने वाले पशु-पक्षियों की तरह दूर तक चले जाते हैं, यह अपने पैर फैलाकर ग्लाइड करते हैं.
पहले भी कई दफा घरघोड़ा के जंगलों में उडन गिलहरियों की ऐसी दुर्लभ प्रजातियां देखी गयी हैं . वन विभाग को इस क्षेत्र में इस दुर्लभ प्रजाति के प्राणियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष कार्ययोजना बनाकर कार्य करने की आवश्यकता है .