रायपुर। पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय और इससे संबद्ध डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में डॉक्टरों ने फिर से एक सफल ऑपरेशन कर कीर्तिमान रच दिया है. 73 वर्षीय बुजुर्ग मरीज के 16 साल पहले हुई दिल की बाईपास सर्जरी के दौरान बनाये गये ग्रॉफ्ट में हुए ब्लॉकेज को विभागाध्यक्ष कार्डियोलॉजी विभाग डॉ.(प्रो.) स्मित श्रीवास्तव और टीम ने लेजर के माध्यम से भांप बनाकर निकाला.

डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार दिल की बाईपास सर्जरी में ग्राफ्ट से बनाए गए नए रास्ते में खून का थक्का जमकर कठोर हो चुके 99 प्रतिशत ब्लॉकेज को एक्जाइमर लेजर कोरोनरी एथेरेक्टॉमी (ईएलसीए) विधि से भाप बनाकर खोलने का राज्य का यह पहला केस है. पैर की नसों के माध्यम से बाईपास ग्राफ्ट तक पहुंचकर लगभग सिर के बाल बराबर पतले रास्ते में कैथेटर को प्रवेश कराकर ब्लॉकेज को खोलना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा.

डॉ. स्मित श्रीवास्तव केस के संदर्भ में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि दिल की बीमारी के शिकार 73 वर्षीय बुजुर्ग की वर्ष 2007 में राजधानी के एक निजी हृदय चिकित्सालय में बाईपास सर्जरी हुई थी. 15-16 वर्ष के बाद इसमें जटिलताएं आयीं और बाईपास के दौरान लगे चार ग्राफ्ट में से दो ग्राफ्ट में समस्या उत्पन्न हुई. जिसमें से एक ग्राफ्ट तो पूर्णतः (100 प्रतिशत) बंद हो गया और दूसरे में 99 प्रतिशत ब्लॉकेज के साथ रक्त का थक्का जम गया. इन समस्याओं के कारण मरीज को हार्ट अटैक आया और इलाज के लिए एसीआई का रुख किया.

उम्र की अधिकता और केस की गंभीरता को देखते हुए हमने एक्जाइमर लेजर कोरोनरी एथेरेक्टॉमी (ईएलसीए) विधि से खून के थक्के को भाप बनाकर निकालने की योजना बनाई. जिसके बाद मरीज को कैथलैब ले जाया गया. जहां पर पैर के रास्ते एंजियोप्लास्टी के स्टंट और बैलून के माध्यम से 99 प्रतिशत ब्लॉकेज हो चुके पतले वेन में बहुत ही सावधानी से पहुंचकर लेजर के जरिये खून के थक्के को भाप बनाकर निकालते हुए नस को खोला गया. चूंकि बाईपास की नस बहुत ही नाजुक होती है और इसके टूटने की संभावना होती है. साथ ही थक्का कई बार नीचे आकर हार्ट के लिए जानलेवा साबित होता है इसलिए इस प्रोसीजर के दौरान काफी सावधानी बरतनी पड़ी.

दोबारा बाईपास होता तो जोखिम और बढ़ जाता

डॉ. स्मित श्रीवास्तव के मुताबिक बाईपास की नसें बंद होने के बाद ज्यादा विकल्प नहीं होते. यदि दोबारा बाईपास करना हो तो छाती को फिर खोलना पड़ता है. जिसमें बहुत ज्यादा जोखिम रहता है, इसलिए बाईपास की नस को खोलने के लिए एक्साइमर लेजर कोरोनरी एथेरेक्टॉमी (ईएलसीए) विधि सही साबित हुआ.

उपचार करने वाली टीम में ये रहे शामिल

कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ डॉ. प्रतीक गुप्ता, नर्सिंग स्टॉफ में वंदना, बुद्धेश्वर, छाया, टेक्नीशियन खेम सिंह, जितेन्द्र चेलकर, महेंद्र, बद्री, प्रेमचंद, खोगेंद्र साहू एवं डेविड तिर्की शामिल रहे.

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