रायपुर। तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण जी वीआईपी रोड से पैदल विहार कर खम्हारडीह स्थित मोती प्रतीक पहुंचे। यहां आयोजित प्रवचन में आचार्य प्रवर ने व्यवहार में सरलता लाकर आत्मविजय प्राप्त करने की प्रेरणा दी। आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि इस संसार में युद्ध होते हैं। कहीं किसी से बदला लेने के लिए तो कहीं अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए युद्ध किए जाते है। परंतु संग्राम में कोई दस लाख शत्रुओं को भी जीत ले वह विजय तो बाह्य युद्ध की है। परंतु जो खुद को जीत ले वह सबसे बड़ी विजय होती है। अपनी आत्मा को जीतना सबसे बड़ी विजय है। व्यक्ति दूसरों से नहीं अपने आप से युद्ध करें। आत्मा के द्वारा आत्मा को जीते। क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी कषायों को जीतना आत्म युद्ध है। गुस्सा एक प्रकार की कमजोरी है। प्रतिकूलता में भी जो गुस्सा नहीं करता और क्षमा को धारण करता है वह वीर होता है। शांति, क्षमा की साधना के द्वारा हम क्रोध को जीतने का प्रयास करें। कई लोग उपवास, तेला, मासखमण आदि तपस्या करते हैं पर गुस्से को जीतना और बड़ी साधना है। कोई तपस्या ना कर सके तो कम से कम गुस्से को शांत रखने का प्रयास करें तो बड़ा तप हो जाएगा।

पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि जीवन में घमंड, अहंकार नहीं होना चाहिए। अनेक रूपों में व्यक्ति में अहंकार आ सकता है। धन, पद, सत्ता इन सभी का कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए कि मेरे पास इतनी धन-दौलत है या मेरा मेरे हाथों में सत्ता है। व्यर्थ के दिखावा, प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। जीवन में ऋजुता, सरलता रखते हुए माया छल-कपट से भी बचने का प्रयास करें। कषायों को जीतना आत्मा से युद्ध करना है। जब जीवन में संतोष की साधना हो तो व्यक्ति लोभ को भी जीत सकता है। दूसरों से लड़ना तो छोटी बात है स्वयं को जीतना ही बड़ी बात होती है। कई-कई जन्मों की साधना से केवल ज्ञान प्राप्त होता है, मुक्ति प्राप्त होती है। हम कषायों को जीतते हुए आत्म युद्ध की दिशा में आगे बढ़े यही प्रयास होना चाहिए।