कोण्डागांव। शासकीय गुण्डाधूर स्नातकोत्तर महाविद्यालय के 500 छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है. कॉलेज ने इन छात्रों को परीक्षा में बैठने के लिए अग्योय घोषित कर दिया है. प्राचार्य ने परीक्षा से पहले यूजीसी नियम का हवाला दिया है. वहीं विद्यार्थियों को जैसे ही परीक्षा से वंचित किए जाने की जानकारी मिली तो वे सभी कॉलेज पहुंच गए, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई. उन्हें अंतिम वर्ष के बजाय पहले वर्ष परीक्षा देने की बात कही जा रही है.

प्रवेश के समय ही करना था आवेदन निरस्त

वास्तव में विश्ववि़द्यालय को या यूजीसी को इन छात्रों के प्रवेश आवेदन उसी वक्त निरस्त करना था जब उन्होंने आवेदन किया था. इसके उलट आवेदन स्वीकार किये गए. जब कॉलेज छात्रों ने परीक्षा की तैयारी कर ली थी और वे परीक्षा देने की आशा के साथ कॉलेज पहुंचे तो उन्हें यूजीसी और बस्तर विश्वविद्यालय की इस लापरवाही की जानकारी मिली.

महाविद्यालय ने स्वीकार किया शुल्क

यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि विश्वविद्यालय व यूजीसी का आपस में इतना भी तालमेल नहीं है कि भरे गये आवेदनों की समय रहते समीक्षा करके उन्हे सुधार करे. अब जब परीक्षाओं की तैयारी करके छात्र-छात्राएं परीक्षा देना चाहते है तो उन्हें गहरा आघात पहुंचाया जा रहा है.

शुल्क वापस किया जाएगा- प्राचार्य

गुण्डाधूर महाविद्यालय के प्राचार्य किरण नुरेटी ने कहा कि इन विद्यार्थियों की परीक्षा का समय है और परीक्षार्थियों से दस्तवेजों की हार्ड कॉपी जमा कराई जा रही है. उस समय इन परीक्षार्थियों के नाम ही सूची में शामिल नहीं है. इस सत्र में कोण्डाागांव महाविद्यालय के लगभग 500 विद्यार्थी प्रभावित हो रहे हैं. हमारे निवेदन पर विश्वविद्यालय इस बात पर राजी हुआ है कि जिन विद्यार्थियों ने फाइनल ईयर के लिये प्रवेश लिया है, उन्हें फर्स्ट ईयर में मान्य किया जा सकता है. जो विद्यार्थी इसमें शामिल होना चाहे वह लाभान्वित हो सकते हैं. पर ज्यादातर ने इस में रूचि नहीं दिखाई है. जनभागीदारी में जमा कराया गया शुल्क वापस कराया जाएगा.

न्यायालय का लेंगे शरण

जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष विकल माने ने कहा कि यह त्रुटि गंभीर है. लगभग 500 विद्यार्थी इस कारण से परीक्षा में बैठने से वंचित हो जाएंगे. 6 साल की अवधि का गैप वाले विद्यार्थियों के आवेदन उसी समय रिजेक्ट कर देना था. जिससे वे अन्य विकल्पों पर जा सकते थे. बस्तर विश्वविद्यालय अगर इन विद्यार्थियों की इस समस्या का त्वरित और सम्मानजनक निवारण नहीं करा पाया तो हम न्याय पाने के लिये हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य हो जाएंगे.

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