रायपुर.  किसी का रखा हुआ, पड़ा हुआ, भूला हुआ अथवा बिना दिया हुआ धन, पैसा, आदि द्रव्य नहीं लेना और न ही उठाकर किसी को देना ही अचौर्याणुव्रत कहलाता है.

चोरी की योजना बनाना, चोरों को प्रोत्साहित करना, तथा चोरी का माल खरीदना यह भी चोरी करने जैसा है. व्यापार में मिलावट करना, नाप-तौल में कमती-बढ़ती करना, नापने के गज, प्याली, आदि को लेने के लिए अधिक रखता है और देने के लिए कम रखता है और डंडी मारना, यह चोरी न होकर भी चोरी के सामान हैं . राजकीय नियमों का उल्लंघन करना भी अचौर्याणुव्रत के विरुद्ध है.

एक खरगोश ने बचपन में लालचवश एक बार चोरी, फिर दो बार चोरी की. इसके बाद उसकी आदत पढ़ गई और वह पक्का चोर बन गया. कहीं भी जाता, कोई न कोई सामान जरूर चुरा लेता. धीरे धीरे चोरी करते कई वर्ष बीत गए, लेकिन वह एक बार पकड़ा गया, जिससे उसका मनोबल बढ़ता गया. एक दिन वह किसी काम से जा रहा था, रास्ते में उसे एक गन्ने का खेत दिखाई दिया. उसने सोचा की एक गन्ना तोड़कर, उसे रस्ते भर खाते हुते जाऊ. फौरन चुपचाप गन्ने के खेत में घुस गया और गन्ना तोड़ने लगा. आवाज होने पर किसान को मालूम हो गया कोई उसका गन्ना तोड़ रहा है और वह भी चुपके से खेत की तरफ बढ़ा. किसान ने चोरी करते हुए खरगोश को पकड़ लिया और कहा अब मैं तुम्हें बाजार में बेच दूंगा और तुम सदा के लिए पिंजरे में बंद हो जाएंगे. यह सुनकर खरगोश बहुत घबराया, उसने किसान से कहा मुझे छोड़ दीजिए. इस पर किसान बोला घबराओ नहीं, चोरी करनेवाले की यही दशा होती है, मैं तो सिर्फ बेच रहा हूँ कोई दूसरा होता तुम्हें मार डालता. खरगोश को रोते देख किसान के अंदर दया आ गई. उसने उससे कहा, तुम वादा करो की कभी चोरी नहीं करोगे, तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा. इस पर खरगोश ने कसम खाकर कहा अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा.

ज्यादा पैसा कमाने के लालच में, ऐसे गलत काम करके जो लोग पैसा कमाने की कोशिश करते हैं, वह चाहे कितना भी पैसा कमा ले, पैसा उनसे दूर हो जाता है और साथ ही साथ उनके कर्मों का भी बंधन होता है‌. जबकि जो इंसान संतोष धारण कर इस अचौर्याणुव्रत का अपने जीवन मैं पालन करता है, उसके पास समस्त संपदा स्वयं आ जाती है .