हर साल होली पर राजमहल में होली मिलन समारोह का आयोजन होता था. लेकिन इस साल होली मिलन समारोह का आयोजन नहीं किया जा रहा है.

राज परिवार के सदस्य सूर्य प्रतापदेव ने बताया कि कांकेर रियासत काल से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है. सबसे पहले गढ़िया पहाड़ में होलिका दहन किया जाता है. जिसके लिए पूजा की थाल राजमहल से जाती है. गढ़िया पहाड़ में होली जलाए जाने के बाद वहां से आग लाकर राजमहल में होली जलाई जाती है. राजमहल से होली की आग ले जाकर कई जगहों पर होलिका जलाई जाती है.

होलिका की आग लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग राजमहल पहुंचते हैं. इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोगों से आग्रह किया गया है कि आग लेने के लिए दो व्यक्ति ज्यादा लोग न आएं.

साथ ही इस बार राजमहल में होने वाली होली मिलन समारोह, रंग पंचमी के कार्यक्रम का आयोजन भी नहीं किया जा रहा है. राज परिवार के सदस्य ने लोगों से अपील की है कि वे कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए नियमों का पालन करते हुए होली का त्योहार मनाएं

रंगों का त्यौहार होली क्षेत्र में उत्साह के साथ मनाया जाता है. होली के पहले रात में होलिका दहन किया जाएगा. युवा होलिका दहन की तैयारी में जुट गए हैं. बाजार भी होली के त्यौहार के लिए पूरी तरह सजकर तैयार है और रंग-गुलाल के साथ पिचकारी की बिक्री शुरू हो गई है. होली का त्यौहार आपसी प्रेम और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है. इस दिन लोग एक-दूसरे से गिले शिकवे भुलाकर एक साथ मिलकर होली का त्यौहार मनाते हैं. होली की पहली रात में होलिका दहन करने की परंपरा है.

कांकेर रियासत का स्वर्णकाल

महाराजाधिराज भानुप्रतापदेव के शासनकाल को कांकेर के इतिहास का स्वर्णयुग कहा जा सकता है. भानुप्रतापदेव छह वर्ष की उम्र में कांकेर रियासत की राजगद्दी पर बैठे. प्रारंभिक शिक्षा रायपुर में लेने के बाद स्नातक की शिक्षा कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय से पूरी की. इसके बाद भारत लौट आए.

अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की विकास के लिए कार्य किया. उन्होंने स्वयं के नाम से भानुप्रतापदेव कॉलेज की स्थापना, साथ ही राजा नरहरदेव के नाम से विशाल स्कूल बनवाया.

राजा कोमलदेव के नाम से अस्पताल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक क्लब का निर्माण कराया. उन्होंने भानुप्रतापपुर, नरहरपुर, कोमलपुर नगर भी बसाए. देश-विदेशों से उन्होंने संपर्क स्थापित किया. उनके कार्यों को देखते हुए ही उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि दी गई.

राजपरिवार की वंशावली

पुरी राजपरिवार से आने वाले पुरुषोत्तम देव कांकेर स्टेट के पहले राजा हुए. इसके बाद क्रमश: वीर कान्हारदेव, कपील नरेन्द्र देव, जानूदेव, उइजय नरेन्द्र देव, अजय नरेन्द्र देव, हानूर देव, रुद्र देव, हिमाचल देव, राऊदेव, धूर देव, हरपाल देव, धीरज देव, गजराज देव, श्याम देव, भूप देव, पदुम देव, नरहरदेव, कोमलदेव ने कांकेर रियासत पर शासन किया.

भारत की आजादी के पहले अंतिम शासक के रूप में महाराजाधिराज भानुप्रतापदेव ने शासन किया. आजादी के बाद महाराजाधिराज उदय प्रतापदेव राजा बने और वर्तमान में महाराजाधिराज आदित्य प्रताप देव राजा हैं, जो वर्तमान में सेंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली में इतिहास के प्रोफेसर हैं.

राजपरिवार का इतिहास

बारहवीं शताब्दी में पुरी राजपरिवार के राजकुमार पुरुषोत्तम देव अस्वस्थ होने के चलते इलाज कराने के लिए नगरी सिहावा के श्रृंगी ऋषि पर्वत पहुंचे. मान्यता है महानदी के उद्गम स्थल पर डुबकी लगाने के बाद वे पूरी तरह से स्वस्थ हो गए.

इसके बाद उन्होंने कांकेर रियासत की स्थापना की और गढ़िया पहाड़ के ऊपर अपना किला स्थापित किया. इसके बाद से ही गढ़िया पहाड़ को किला पहाड़ भी कहा जाने लगा. कुछ शताब्दी बाद राजकुमारी सोनई व रूपई की गढ़िया पहाड़ के ऊपर तालाब में डूबने से मृत्यु होने के बाद राजगुरु के सुझाव पर पहाड़ के नीचे राजापारा में राजमहल का निर्माण किया गया.

शहर के मध्य मांझापारा में एक राजमहल बनवाया गया, जिसे वर्तमान में पुरानी कचहरी के नाम से जाना जाता है. महाराजाधिराज भानुप्रतापदेव के शासनकाल में डडिया तालाब के पास विशाल राजमहल का निर्माण कराया गया, जहां आज भी राजपरिवार निवासरत है.