रायपुर. रविवार को मार्गदर्शक सामाजिक शोध संस्थान और ज्ञान यज्ञ परिवार के द्वारा “कृषि कानून की वापसी और भारत के भविष्य” पर परिचर्चा आयोजित की गई.

परिचर्चा में विचारक, समाज विज्ञानी बजरंग मुनि ने कहा कि जो यह कृषि कानून आए थे इसका फाइनल मोटा ड्राफ्ट हम लोगों ने 4 नवंबर 1999 में बहुत से विद्वानों के साथ 15 दिनों तक चर्चा के बाद रामानुजगंज में बनाया था. इसको बनाकर सरकार को सौंप दिया गया था.

समझाते बुझाते इन तीनों कानूनों को 2011 में मनमोहन सिंह ने स्वीकार्य किया औए लोकसभा में लेकर आए लेकिन तब नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने उस बिल का विरोध किया और अब मनमोहन सिंह की पार्टी विरोध कर रही है और नरेंद्र मोदी की पार्टी स्वीकार्य कर रही है. उस समय किसान नेता इसका विरोध नहीं कर रहे थे बल्कि इसको लागू करवाने के पक्ष में थे और इस समय विरोध में है.

इन्दिरा गांधी कृषि विश्व विधालय कृषि मौसम विभाग के विभाध्यक्ष प्रोफेसर गोपी कृष्ण दास ने इस विषय पर बोलते हुये कहा कि भारतवर्ष में यदि कृषि को देखें तो यह जीविकोपार्जन का साधन था व्यापार का नहीं. पुराने समय में कृषि उत्पाद बेचा नहीं वितरण किया जाता था. जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ तो हम दूसरे के ऊपर निर्भर थे लेकिन अब हम अपने उपयोग से दोगुना उत्पादन कर रहे हैं. उस समय जो नियम बने थे उनमें परिस्थिति अनुसार बहुत बदलाव किया गया है उन्हीं एक बदलावों में से यह कृषि कानून बिल भी था. जो भी पार्टी शासन में रहती है उसके कार्यों का विरोध विपक्ष करता है चाहे वह सही हो या गलत. यह तीनों कानून पहले से भी था यह उन कानूनों का मॉडिफिकेशन था. छत्तीसगढ़ के साथ पूरे भारत में छोटी जोत के किसान हैं. छोटी जोत के किसानों के समस्याओं के निवारण के लिए यह बिल आया था. इसमें कुछ कमियां थी. उसी को आधार बनाकर किसान नेताओं ने संगठित होकर कानून को वापस करने के लिए मजबूर कर दिया . हालांकि छोटी जोत के किसानों के लिए बहुत बुरा हुआ. बड़े किसानों ने उनको फिर से बिचौलियों के सहारे छोड़ दिया.

एक पत्रिका के संपादक प्रवीण मैशेरी ने कहा कि आजादी के बाद कृषि के साथ खिलवाड़ हुआ. जो भी नेता आए उन्होंने किसानो की समस्यायों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया सिवाय पंडित श्यामचरण शुक्ल को छोडकर. जब वो अभिभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होने पूरे छत्तीसगढ़ मे नहरों का जाल बिछा दिया था. कृषि कानून का विरोध क्यों हुआ? तो इस सुधारों में अनेक बातें कृषि के किसानों के हित में थी जैसे पूरे देश में कहीं भी कभी भी विक्रय करने का मार्ग प्रशस्त हुआ पर किसानों के साथ-साथ कृषि व्यवसाय पर निर्भर अधिकतर लोगों को डर सताने लगा था कि एग्रीमेंट एग्रीकल्चर भंडारण की असीमित छूट के कारण किसान जमीन का मालिकाना हक या तो गवां देगा या पूंजीपति उसकी जमीन का पूर्ण अंतिम रूप से शोषण करने के बाद मृत जमीन को छोड़ देगा सरकार से मिलने वाली सब्सिडी सुविधाओं से वह वंचित हो जाएगा पूंजीपति उसे मनमाफिक फसल लेने मजबूर करेगा साथ ही वह इन पूंजी पतियों का ही खाद बीज केमिकल लेने मजबूर किया जावेगा.

भाजपा नेता संदीप शर्मा ने कहा कि पिछली सरकार धान, गेहूं, के रेट में गवर्नर बांध कर रखी हुई थी, मोदी जी ने उस गवर्नर को खोल दिया है, मोदी जी ने किसान नेताओ को ना कभी आतंकवादी कहा ना कभी गुंडा कहा, कृषि कानून देश हित मे वापस लिया गया है, समाज उन्हें अच्छे तरीके से जानती है . उन्होंने बताया की कभी लड़को की शादी पुवालों के ढेर देखकर हो जाती थी लेकिन अब अनाजों का ढेर देखकर भी नहीं हुई है इस तरह पहले की सरकारो ने कृषि की उपेक्षा की .

कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन करने वाली संयुक्त किसान मोर्चा के अहम सदस्य किसान नेता शिव कुमार शर्मा “कक्का जी” ने कहा कि मैं हैरान हूं कि मेरे हित में यदि कानून लाया गया तो बिना मेरी सहमति के, बिना मुझे चर्चा में लाया गया, क्या यह ठीक है ? अमित शाह से मैंने कहा कि इस देश के किसानों को कॉन्फिडेंस में ले कर कोई कानून क्यों नहीं बनाया जाता? अमित शाह ने कहा कि हमसे गलती हुई हम स्वीकार करना चाहते है, हमसे गलती हुई. हमे किसानों से चर्चा करनी चाहिए थी.

पूर्व विधायक और स्वाभिमान पार्टी के संस्थापक ने बताया कि जिस प्रकार के कृषि कानून आये ये उसी तरह के कानून 1950 में अमेरिका में आए हुये थे और असफल हुए. आज अमेरिका के किसान को अगर सरकार सब्सिडी ना दे तो वह आत्महत्या कर लेगा. ये तीन नहीं, दो ही किसान कानून है  तीसरा आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन है. तीसरे में भण्डारण पर जो रोक भी वह हटा दी गयी थी. इस कानून की असफलता का उदाहरण तीन महीने बाद ही मिल गया जब देश के दालों की कमी हुई तो उसका भंडारण रोक दिया गया. ये कानून किसानों के लिये संकट लाने वाला था कम से कम हट गया तो किसान अपनी पुरानी स्थिति में तो रहेगा.

कार्यक्रम कि शुरुआत हवन करके हुई चर्चा का समापन प्रश्नोत्तर सत्र से हुआ. आए दर्शको ने वक्ताओ से प्रश्न भी पुछे और अपने विचार भी प्रस्तुत किए. कार्यक्रम का संचालन मुकेश गोयल ने किया और विक्रम सिंह ने दर्शको को संस्था के कार्य पद्धति के बारे मे अवगत कराया. संस्था ने इस कार्यक्रम का नाम “ज्ञानयज्ञ” रखा है . संस्था प्रत्येक माह मे जनजागरण के उद्देश्य से अन्यान्य विषयों पर ऐसे  कार्यक्रम आयोजित करती रहती है जिससे समाज मे आम लोगों में समझदारी का विकास हो.