फीचर स्टोरी। सरकारी योजनाओं में खामियों को लेकर खबरें खूब आती रहती हैं. लेकिन खामियों से परे जब अच्छाइयाँ ढूँढेंगे तो अनेक सफल कहानियां भी मिल जाएंगी. इस रिपोर्ट में आपको बताने जा रहे हैं उन लोगों की कहानी जिन्होंने शासकीय योजनाओं का लाभ लेकर अपनी जिंदगी बदल डाली. जिनके घर-आंगन में अब खुशियां ही खुशियां हैं. आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर ऐसे लोगों की कहानी, जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं.

चमेली के जीवन में अब नवा बिहान

ये कहानी है उत्तर छत्तीसगढ़ में आदिवासी बाहुल्य जिला कोरिया के ग्राम सत्तीपारा की रहने वाली चमेली की. चमेली के जीवन में बिहान योजना नवा बिहान(नई सुबह) लेकर आई. इस योजना से जुड़कर चमेली ने एक स्व-सहायता महिला समूह का गठन किया. समूह का नाम रखा महाशिव शक्ति महिला स्वयं सहायता समूह.

इस समूह में चमेली के साथ कुल 11 सदस्य हैं. समूह की मुख्य सदस्य चमेली पैकरा की पहचान आज इलाके में एक सफल व्यवसायी के तौर पर होने लगी है. चमेली ने योजना के तहत अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया. व्यवसाय था मुर्गीपालन का. इस तरह के व्यवसाय ज्यादातर पुरूष ही करते हैं. लेकिन चमेली इसे चुनौती के तौर पर स्वीकार काम में जुट गई. और धीरे-धीरे वो इसमें सफल होती चली गई.

चमेली बताती हैं कि उनके पति एक ऑटो ड्राइवर हैं. लेकिन ऑटो स्वयं का न होने के कारण प्रतिदिन आमदनी नहीं हो पाती थी. ऐसे में आर्थिक कठिनाइयों का सामना परिवार को करना पड़ता था. लिहाजा उन्होंने तय किया कि वह परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने मदद में करेंगी.

उन्होंने समूह के माध्यम से बैंक लोन लिया. वर्ष 2020 में बिहान योजना के तहत समूह को निजी बैंक से 1 लाख रुपये प्रदान किया गया. समूह के सदस्यों की सहमति से उन्होंने एक पोल्ट्री फार्म शुरू किया. 2020 में कोरोना संकट के चलते उसे शुरुआत परेशानी हुई. लेकिन फिर भी वे डटी रहीं. आगे चलकर उसे सफलता भी मिली. साल भर भी उन्होंने बैंक का कर्ज ब्याज सहित वापस कर दिया. अब उनके काम पति भी साथ आ गए हैं. दोनों ही मिलकर पूरी लगन से काम कर रहे हैं. काम का परिणाम अच्छी आमदनी के रूप में दिखाई पड़ रहा. प्रति माह अब 10 हजार रुपये तक आमदनी हो रही है.

नक्सल प्रभावित इलाके के संपत की कहानी

उम्र के कई दशकों को पार कर, कई चुनौतियों से लड़कर, हिम्मत और हौसलों के साथ नक्सल प्रभावित इलाके में लाल लकीर के बीच हरित क्रांति करता ये कहानी है संपत सिन्हा की. सुकमा जिले के छिंदगढ़ तहसील के तालनार निवासी संपत कुछ समय पहले तक आर्थिक तंगी के बीच जीवन जीने को मजबूर था. लेकिन कहते हैं कि जिंदगी कभी न कभी करवट लेती हैं. संपत के साथ भी यही हुआ.

कुछ वर्ष पहले उन्हें उद्यानिकी विभाग से शासकीय अनुदान लेकर खेती करने की जानकारी मिली. अनुदान मिलने के बाद उन्होंने सब्जी की खेती शुरू की. इस खेती से उन्हें साल दर साल लाभ होने लगा. वैसे तो संपत धान की खेती भी करता है, लेकिन सब्जी की खेती उसे मुनाफा अब ज्यादा होता है.

संपत की माने तो शबरी नदी के किनारे बसे गाँव तालनार में बहुत से लोग हैं जो सब्जी की खेती करते हैं. वह भी एक एकड़ में खेती करता है. खेती के लिए उन्होंने विद्युत विभाग से पंप भी हासिल किया है. साथ ही उन्हें डीएमएफ से भी राशि प्राप्त हुई है.

इन दिनों वे लौकी, भिंडी, टमाटर, बैंगन, खीरा, करेला, बरबट्टी आदि सब्जियों की खेती कर रहे हैं. खेती लिए उन्हें उद्यानिकी विभाग की ओर से बीज मिले हैं. साथ ही उन्हें उन्नत खेती के लिए प्रशिक्षण भी मिला है. संपत की माने तो 20 गुना तक मुनाफा उन्हें हुआ है.

इस बार 30 हजार की बेच चुके हैं सब्जियाँ

सम्पत ने अपनी बाड़ी में उगाई टमाटर, बैंगन, करेला, बरबट्टी, भिंडी, धनिया, मिर्ची, लौकी, मूली से लाभ अर्जित कर आर्थिक उन्नति की है. बाजार में इन्हें बेचकर उन्होंने अब तक 30 हजार रुपए की कमाई की. अपनी बाड़ी में उगी सब्जियों के बारे में बताते हुए 65 वर्षीय संपत ने कहा कि वह पहले बाजार से सब्जियां खरीदत लाते थे, कभी सोचा नहीं था कि वे स्वयं सब्जी उत्पादन करेंगे. पर अब वे अपने क्षेत्र में एक सफल सब्जी कृषक के नाम से जाने जाते हैं.

डेयरी व्यवसाय से संतोष बना लखपति

बस्तर जिले के सेमरा के रहने वाले संतोष की पहचान आज उनके इलाके में एक सफल डेयरी व्यवसायी और लखपति के तौर पर हो चुकी है. दअरसल संतोष राव ने सरकार की पशुधन विकास विभाग की डेयरी उद्यमिता विकास योजना के तहत डेयरी फर्म की शुरुआत की. इसके लिए उन्होंने बैंक लोन प्राप्त किया और काम की शुरुआत की.

संतोष राव ने बताया कि प्रतिदिन 250-260 लीटर दुग्ध का उत्पादन लिया जा रहा है. जिसका विक्रय 45-50 रूपये प्रति लीटर की दर से स्थानीय बाजार में किया जा रहा है. वर्ष 2016-17 से अब तक श्री राव के द्वारा डेयरी में उत्पन्न नर बछडो का विक्रय कर आर्थिक लाभ प्राप्त किया. साथ ही संतोष राव ने पशु व्यापारी पंजीयन कराकर पशुओं का क्रय-विक्रय का कार्य किया है. साथ ही डेयरी में कृत्रिम गर्भाधान के फलस्वरूप उत्पन्न मादावत्सों के पालन हेतु विभागीय योजना अंतर्गत लाभ प्राप्त कर रहें है.

संतोष का कहना है कि योजना अंतर्गत मादावत्सों के पालन पोषण हेतु 04 माह से 24 माह तक पशु आहार के रूप में हितग्राही को श्रेणीवार 15 हजार से 18 हजार रूपए तक का लाभ दिया जाता है. साथ ही श्री राव द्वारा अपने डेयरी में दो से तीन श्रमिकों को रोजगार भी उपलब्ध कराया है. डेयरी से प्रत्येक माह एक लाख 20 हजार रूपये तक की आमदनी प्राप्त हो रही है. इस योजना से बहुत लाभ प्राप्त हो रहा है। तथा बैंक ऋण किस्त का भी नियमित भुगतान किया जा रहा है.

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