प्रतीक चौहान/जीवन सिरसान. रायपुर/सुकमा. करीब एक महीने से सुकमा में एक पुलिस कैंप का विरोध किया जा रहा है. ये कैंप सुकमा जिले के सिलगेर में मौजूद है. इस कैंप का नाम है मुकुर कैंप. लेकिन अब खबर ये मिल रही है कि एक बड़ा आंदोलन 28 जून को इस कैंप के विरोध में होने वाला है.

सूत्र बताते है कि ये विरोध सिलगेर में नहीं बल्कि सारकेगुड़ा में होने वाला है. लेकिन इस विरोध की तारीख और जगह क्यों चुनी गई इसकी एक वजह है.

वजह ये है कि सारकेगुड़ा में साल 2012 में 28 जून की रात सीआईपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के संयुक्त एनकाउंटर में 17 लोग मारे गए थे. यही कारण है कि इस दिन को बड़े आंदोलन के रूप में चुना गया है. इस बड़े आंदोलन में शामिल होने ग्रामीणों के जंगल के रास्ते निकलने की भी खबर है.

जाने क्या है पूरा सिलगेर मामला

सुकमा के जंगलों में अभी भी ग्रामीणों तक शासन की कई योजना नहीं पहुंची है और न ही वहां किसी प्रकार का विकास हो सका है. यही कारण है कि वहां कैंप बनाया गया है. जिसके बाद वहां नक्सली मूमेंट कम होगा और विकास किया जा सकेगा. यही कारण है कि सुकमा के सिलगेर में मुकुर कैंप का निर्माण किया गया. लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि ये कैंप आदिवासियों की निजी जगह में बना है. जिसके बाद से ये विरोध शुरू हो गया.

10 मई से यहां विरोध धीरे-धीरे शुरू होता गया. इसके बाद 17 मई को यहां विरोध बढ़ गया. जिसके बाद पुलिस फायरिंग में 3 ग्रामीण मारे गए और भगदड़ में 1 गर्भवती महिला घायल हो गई. जिसकी मौत चंद दिनों बाद हो गई. पुलिस का कहना है कि जो लोग मारे गए वह नक्सली सहयोगी थे. वहीं ग्रामीणों के मुताबिक व आदिवासी किसान थे. इस एनकाउंटर के बाद सुकमा का छोटा सा गांव सिलगेर राष्ट्रीय सुर्खियां बन गया और इसके बाद इस मामले में शुरू होती है राजनीति.

मुआवजे के रूप में मृतकों के परिवार को 10-10 हजार रुपए की सहायता राशि देने की कोशिश की गई. लेकिन इसे लेने से मना कर दिया गया. अब सवाल ये है कि यदि ये नक्सली सहयोगी थे तो उन्हें ये सहायता राशि क्यों ? और यदि ये ग्रामीण थे तो पुलिस ये स्वीकार क्यों नहीं करती कि मारे गए लोग ग्रामीण ही थे ?

जंगल के रास्ते निकलना शुरू हुए ग्रामीण

सूत्र बताते है कि इस आंदोलन की खबर शासन- प्रशासन तक भी पहुंच गई है. जिसके बाद यहां बैरिकेडिंग शुरू करने की तैयारी है. लेकिन ग्रामीण जंगलों के रास्ते अपनी रणनीति बनाने में लगे हुए है और इस आंदोलन में शामिल होने बड़ी संख्या में दर्जनों गांव के ग्रामीण निकल भी चुके है.