सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर. राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायकऔर सदस्यगण डॉ अनीता रावटे, नीता विश्वकर्मा, अर्चना उपाध्याय ने आज शास्त्री चौक स्थित राज्य महिला आयोग कार्यालय में महिलाओं से संबंधित शिकायतों के निराकरण के लिए सुनवाई की. एक प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि अनावेदक पति ने दूसरी महिला को पहले अपनी बहन बनाया था, अब उससे शादी कर लिया है. मेरी सास कहती है कि बेटे की खुशी है तो दोनों एक साथ रहें.

बता दें कि, आवेदिका के तीन बच्चे हैं. इस साल आवेदिका एवं अनावेदक दोनों साथ में पूरी फसल को काटे हैं, अनावेदक आवेदिका को भरण-पोषण नहीं दे रहा है. अनावेदक का कहना है कि उसने कोई दूसरी शादी नहीं किया है वह अपनी मां की देखरेख के लिए दूसरी महिला को रखा है. अनावेदक ने यह स्वीकार किया है कि वह आवेदिका एवं उनके बच्चों को भरण-पोषण नहीं दे रहा है. आयोग की समझाइश के बाद अनावेदक प्रतिमाह पूरा राशन आवेदिका को देगा. बच्चों की पढ़ाई की राशि देगा तथा प्रतिमाह आवेदिका को 10 हजार रुपये देगा. चूंकि धान की फसल होती है, इसलिए अनावेदक एक साल का पैसा एक साथ देगा. आगामी सुनवाई में अनावेदक, आवेदिका को 10 हजार रूपये देगा. बच्चों के स्कूल की पुरानी फीस भी जमा करेगा और राशन खर्च भी देगा. आगामी सुनवाई में यदि दोनों पक्षकार आयोग के आदेश का पालन करेंगे तो सहमति पत्र भी बनवाया जाएगा. इस प्रकरण को आगामी सुनवाई में रखा गया है.

एक अन्य प्रकरण में अनावेदक ने महिला आयोग से समाज प्रमुखों की आड़ में प्रकरण वापस लेने के लिए आवेदिका के ऊपर दबाव डाला है. एक अवैध इकारारनामा में हस्ताक्षर कराया है, जिसमें लिखा है कि संतान के 9 वर्ष पूरा होने पर अनावेदक अपने पास रखेगा. यह इकरारनामा अपने आप में दबावपूर्ण कराए जाने पर स्वयं शून्य हो जाता है. यह आवेदिका पर बंधककारी नहीं होता है, क्योंकि दबाव में कराया गया हस्ताक्षर कभी मान्य नहीं होता है. इसके साथ ही समाज के डर एवं दबाव में होने के कारण स्वयं में शून्य हो जाता है. इसको वैद्यानिक सिद्ध करने की जिम्मेदारी अनावेदक पर होगी.

वहीं आवेदिका ने इस स्तर पर निवेदन किया है कि, वह समाज के उन पदाधिकारियों को नाम लिखकर जमा करें, जिन्होनें ऐसा सहमतिनामा हस्ताक्षर कराया है. जिस बच्चे के गर्भ में रहने के दौरान अनावेदक के द्वारा आवेदिका को प्रताड़ित किया गया था. प्रसव पीड़ा के दौरान अनावेदक ने इलाज कराने के दौरान लापरवाही भी किया था. ऐसा पिता जिम्मेदारी के लायक नहीं है, क्योंकि उसकी लापरवाही से बच्चे की जान भी जा सकती थी. अनावेदक दूसरी शादी करना चाहता है. ऐसी दशा में नाबालिग बच्चे का पालन पोषण उसके द्वारा किया जाना संभव नहीं है. आवेदिका को प्रति माह 1500 रूपये का भरण पोषण देकर बच्चे को छीनने की नियत अनावेदक कर रहा है. जिस पर आवेदिका ने यह कहा कि वह अनावेदक से 1500 रूपये लेकर बच्चे को देने की शर्त पर राजी नहीं है. वह खुद कामकाज कर पालन पोषण कर सकती है. उसका देखरेख उसके मामा के पैसे से किया जा रहा है.

आवेदिका स्वयं अपना और अपने बेटे को पालन पोषण करने के लिए काम करना शुरू करेगी. इस स्तर पर आवेदिका को पूर्णतः सुनिश्चित किया जाता है कि, वह इस अवैध सहमतिनामा के बंधन से पूर्णतः मुक्त है. मां को उसके बच्चे से छीना जाना गंभीर अपराधिक कृत्य है. इस प्रकरण के निराकरण के लिये आगामी सुनवाई में रखा गया है.

इसी तरह एक अन्य प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि, उसका विवाह उनके ही समाजिक स्तर पर हुआ है. लेकिन समस्त अनावेदकगणों ने हमारी जाति का नहीं है कहकर आवेदिका और उसके मायके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया है. आवेदिका के पिता से 25 हजार रूपये अर्थदण्ड लिया है. दूसरी बार जब आवेदिका के भाई की शादी हुई थी उसे 50 हजार रूपये का अर्थदण्ड लगाया गया था. उसे अनावेदक ने नहीं दिया है. समस्त अनावेदकगणों ने आवेदिका के मायके वाले का सामाजिक बहिष्कार कर दिया है. आयोग द्वारा उभय पक्ष को समझाइश दिए जाने पर सभी अनावेदकगणों ने यह स्वीकार किया है कि आवेदिका के परिवार पर सामाजिक नियमों के आधार पर फैसला किया है. सामाजिक बहिष्कार भी किया है.

आयोग की सदस्य डॉ अनीता रावटे के साथ आयोग से अधिकृत अधिवक्ता और काउंसलर आवेदिका के गांव में जाकर गांव वालों की उपस्थित में इस प्रकरण की जानकारी देंगे. सभी अनावेदकगणों द्वारा सार्वजनिक रूप से गांव वाले के समक्ष आवेदिका और उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार समाप्त करने की घोषणा करेंगे. उभय पक्षों का हस्ताक्षर लिया जाएगा. अनावेदकगण के द्वारा यदि आयोग की निर्देश की अवमानना करते हैं तो इस स्तर पर आवेदिका समस्त अनावेदकगणों के खिलाफ थाना में एफआईआर दर्ज करा सकती है.