प्रमोद निर्मल, राजनादगांव। गांव-गांव में पेयजल व्यवस्था करने की सरकारी दावों की पोल खुल गई है. आदिवासियों को साफ पानी पीने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है. शासन-प्रसासन के तमाम दावे फेल हो रहे हैं. आदिवासी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की नाकामी के कारण लोग गंदा पानी पीनेको बेबस हैं.

दरअसल, हम बात कर रहे हैं नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल्य मानपुर ब्लॉक की. बस्तर और माहाराष्ट्र सीमावर्ती औंधी इलाके में लोगों को साफ पानी नसीब नहीं है. यहां ग्राम पंचायत पेंदोड़ी अंतर्गत ग्राम मेटा तोड़के में ग्रामीण झरिया का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.

गांव में तीन हैंडपंप हैं, लेकिन हैंडपंपों से अधिक आयरन युक्त पानी आता है. ग्रामीणों की माने तो हैण्डपम्पों का पानी पीने लायक नहीं है. वहीं उस पानी से कपड़े और बर्तन पानी से सब लाल हो जाते हैं. गंदा पानी निकलता है.

मामले में ग्रामीणों ने बताया कि शासन-प्रशासन की नाकामी के कारण गंदा पानी पी रहे हैं. गांव से लगे पहाड़ के निचले हिस्से में कुएं नुमा गड्ढे से पानी निकाल रहे हैं. स्रोत में झरिया बनाकर पीने और अन्य उपयोग के लिए पानी एकत्रित करते हैं.

रात भर इस झिरिया में जो पानी रिसकर इकट्ठा होता है, उसे सुबह सभी गांव वाले निकाल कर अपनी जरूरत पूरी करते हैं. वहीं दिनभर में फिर से जो पानी झरिया में जमा होता है, उसे फिर शाम को जरूरत के मुताबिक निकाल लेते हैं. पेयजल के जुगाड़ की ये जगदोजहद इन ग्रामीण अदिवासियो की रोजाना की दिनचर्या बनी हुई है.

ग्रामीणों का ये भी कहना है कि पंचायत व प्रसासन के लोग भी यहां नहीं पहुंचते हैं. ऐसे में अपनी व्यथा ये आदिवासी किसे सुनाएं. इस मसले पर ग्राम पंचायत पेंदोड़ी के सचिव हरेंद्र बोरकर से बात की, तो उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से साफ मना कर दिया. अपना पल्ला झाड़ लिया. वहीं इलाके के जिम्मेदार अफसर भी मामले पर बात करने आगे नहीं आ रहे हैं.

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