बस्तर। छत्तीसगढ़ की मुरिया जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर और गोटुल परंपरा से जुड़ा विशेष आभूषण ‘तला कासरंग’ अब युवाओं तक पहुंच रहा है. बदलते समय और जीवनशैली के कारण इस आभूषण की पारंपरिक निर्माण तकनीक लुप्त होने लगी थी. इसी को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए 21 से 27 सितंबर 2025 तक केजंग गोटुल में सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला का आयोजन सुरुज ट्रस्ट के तत्वावधान में किया गया. ट्रस्ट की संस्थापक दीप्ति ओग्रे ने बताया कि इस पहल का उद्देश्य मुरिया समाज के युवाओं को तला कासरंग की पारंपरिक तकनीक से जोड़ना और इस अद्वितीय धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना है.

इस कार्यशाला में गोटुल के बुजुर्गों ने युवा गोटुल की 10 महिला सदस्याओं ‘युवा लया-लयोर’ को आभूषण निर्माण की बारीकियों से अवगत कराया. साथ ही इसके सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व पर भी विस्तार से चर्चा की गई.

कार्यक्रम की सफलता में बस्तर ट्राइबल होमस्टे के संस्थापक शकील रिज़वी, हैलो बस्तर के संचालक अनिल लुकंड, हॉलिडेज़ इन रूरल इंडिया की संस्थापक सोफी हार्टमेन और दिल्ली की चिन्हारी संस्थान का विशेष सहयोग रहा.