रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन की कार्यवाही आरक्षण विधेयक की भेंट चढ़ गई. सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए जाने पर स्पीकर को हस्ताक्षेप करते हुए सदस्यों को संवैधानिक पद की मर्यादा याद दिलानी पड़ी.

सदन में चर्चा के दौरान भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने कहा कि सत्तारूढ़ दल के पास बहुमत है, इसका यह मतलब नहीं की सत्ता पक्ष महामहिम पर सवाल उठाए. गलत परंपरा और प्रक्रिया विधानसभा में स्थापित की जा रही है, इसके लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री और संसदीय कार्यमंत्री हैं. हम बार-बार इस बात को कह रहे हैं कि कॉन्टिफाईबल डाटा आयोग की रिपोर्ट पेश क्यों नहीं कर रहे हैं. उन्होंने अनुसूचित जाति, जनजाति की गणना के लिए क्या किया. जो उत्तर राजभवन में भेजा है, उस पर विधानसभा में चर्चा क्यों नहीं हो सकती कॉन्टिफाईबल डाटा आयोग की रिपोर्ट में क्या है, इसे सिर्फ मुख्यमंत्री जानते हैं, छत्तीसगढ़ में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं जानता.

कांग्रेस विधायक मोहन मरकाम ने चर्चा में कहा कि छत्तीसगढ़ के पवित्र सदन में 1 और 2 दिसंबर को आरक्षण विधेयक सर्वसम्मति से पास हो जाता है, उसके बाद भी 32 दिनों तक आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल दस्तखत नहीं करती. कल तक अध्यादेश लाने की बात हो रही थी, एक घंटे के भीतर आरक्षण विधेयक पर दस्तखत करने की बात हो रही थी, फिर क्यों आज आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं हो रहा है. बीजेपी का चाल, चरित्र और चेहरा प्रदेश के सामने उजागर हो रहा है. सदन में कहते कुछ हैं, बाहर करते कुछ और है. बीजेपी छत्तीसगढ़ की जनता से बदला लेना चाहती है, क्योंकि पांचों चुनाव में बीजेपी को हार मिला, और 2018 के चुनाव में बीजेपी 14 सीटों में सिमट गई है. छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार राज्य की जनता को और अधिकार देना चाहती है, उसके लिए हम कटिबद्ध हैं.

कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा ने चर्चा में कहा कि पवित्र सदन में हमारे मुख्यमंत्री हमारी सरकार ने 32, 27, 13 और 4 फ़ीसदी आरक्षण सर्वसम्मति से पास कराया था, उसे रोकने का काम और राज्यपाल को गुमराह करने का काम बीजेपी कर रही है, इसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है. बीजेपी के खाने के दांत अलग और दिखाने के दांत अलग है. सर्वसम्मति से पास करने के बाद पीछे से राजनीति बीजेपी खेल रही है. हमने कहा था यह सब की राज्यपाल हैं, हमारे साथ चलो, हम सब साथ चल का निवेदन करेंगे, लेकिन इन्होंने सुना नहीं. इस पर हम राजनीति नहीं होने देंगे, हम इसकी लड़ाई लड़ेंगे और अधिकार दिला रहेंगे. हम राज्यपाल पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं, हम बीजेपी के आलोचना कर रहे हैं. बीजेपी को पूछ रहे हैं कि राज्यपाल को रोक कर रखे हैं. हमें भी मालूम है कि राज्यपाल हैं.

कांग्रेस विधायक अमरजीत भगत ने कहा कि आरक्षण ज्वलंत मुद्दा है. छत्तीसगढ़ की विधानसभा में आरक्षण विधेयक पारित कर राजभवन भेजा था. विपक्ष ने जिस बिल पर अपनी सहमति दी थी, उस पर बोलने को तैयार नहीं. आरक्षण रोकने से नौकरी में भर्ती प्रमोशन के काम रुके हुए हैं. सबसे ज्यादा आदिवासी वर्ग से प्रभावित हुआ है. विपक्ष केवल हंगामा करता रहा.

भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा सरकार क्वांटिफिएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा नहीं करना चाहती. जब आरक्षण विधेयक लाया गया, तब कहा गया था कि यह क्वांटिफिएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लाया जा रहा है. जब इस आधार पर विधेयक लाया है तो इसकी रिपोर्ट पेश करने से क्या दिक्कत है. आज तक इसकी रिपोर्ट विधानसभा में नहीं आई है. राज्यपाल को नहीं दी गई है, विधायकों को नहीं दी गई है, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को नहीं दी गई है.

पूर्व भाजपा मंत्री ने कहा कि रिपोर्ट नहीं देने की वजह से ही हाई कोर्ट ने 58 फ़ीसदी आरक्षण निरस्त किया था. राज्य सरकार श्वेत पत्र जारी कर बताया कि 32 फ़ीसदी आदिवासियों के आरक्षण को बचाने के लिए क्या किया. सरकार केवल मगरमच्छ की आंसू बहाती है. पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि सदन की कार्रवाई को सत्तापक्ष बाधित कर रहा है, क्योंकि सत्ता पक्ष हीन भावना से ग्रसित है. सत्ता पक्ष को यह मालूम है कि उनकी वजह से 32 फीसदी आरक्षण निरस्त हुआ है.

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