फीचर स्टोरी। यह सच्ची कहानी है. यह पीड़ा-वेदना के बीच भाव-भावना संवेदना लिए एक प्रेरक कहानी है. यह कहानी कचरा बीनने वाली महिलाओं से जुड़ी है. यह कहानी छत्तीसगढ़िया आईएएस अधिकारी से जुड़ी हुई है. उस अधिकारी से जो राज्य के प्रशानिक मुखिया हैं, जो मुख्य सचिव हैं.

बात कुछ दिनों की पहले की है. एक रोज मुख्य सचिव आरपी मंडल व्हीआईपी चौक से गुजर रहे थे. अचानक उनकी नजर उन महिलाओं पर पड़ी जो कचरा बीनने का काम कर रही थीं. उन्होंने देखा कि महिलाओं के साथ छोटे-छोटे बच्चें भी हैं. वैसे इस तरह के दृश्य के बारे में आप-हम या अन्य कोई पहली बार सुन, पड़ या देख रहे हो ऐसा नहीं है. आते-जाते सड़कों पर कभी न कभी इस तरह के दृश्य हमें दिखाई पड़ ही जाते हैं. कई बार हम चाहकर भी उनकी मदद नहीं कर पाते हैं और मन मार कर रह जाते हैं.

लेकिन जब आप भाव-भावना और संवेदना से भरे होते हैं, तो ऐसे मार्मिक दृश्य को देखकर टूट जाते हैं, गुस्सा भी आता और रहम भी. लगता कि शासन-प्रशासन के तमाम लोगों की मौजूदगी, ढेरों कल्याणकारी योजनाओं के होने के बावजूद, समाजसेवी संगठनों के काम करने के बावजूद भी इस तरह के दृश्य क्यों ? इस तरह के सवाल शायद उन तमाम लोगों के अंदर उठते ही होंगे, जो संवेदनाओं से भरे होते हैं. मुख्य सचिव भी इन्हीं सवालों को सामना करते हुए कचरा बीनने वाली महिलाओं के बीच पहुँचे थे.

कार से जब मुख्य सचिव उतरकर महिलाओं को आवाज देने लगे, तो अधिकारी को देखकर महिलाएं चौंक गईं, कुछ घबरा गई, वे ठीक से जवाब नहीं दे पा रही थी. यह स्वभाविक ही था. आईएएस मंडल ने महिलाओं से उनके काम-काज की जानकारी ली. उन्हें सरकार की ओर से संचालित योजनाओं की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि कब तक आप लोग कचरा बीनने का काम करती रहेंगी. सम्मान के साथ जीना सीखो.

मुख्य सचिव के इन शब्दों में बदलाव की कड़ियाँ जुड़ गई थी. महिलाओं को कचरा बीनने से मुक्त कराने की दिशा में मुख्य सचिव आगे बढ़ चुके थे. अब बारी थी श्रम मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया की. क्योंकि जिस योजना के तहत महिलाओं को जोड़ना था वह योजना थी श्रम विभाग की. श्रम मंत्री डॉ. डहरिया तक यह पूरी जानकारी पहुँची. उन्होंने स्वयं महिलाओं के बीच जाकर उन्हें मदद करने की पहल की.

श्रम मंत्री डहरिया सुभाष नगर बस्ती में पहुँचे. उस बस्ती में जहाँ कचरा बीनने वाली कुछ महिलाएं रहती थी. मंत्री ने इन महिलाओं को सिलाई मशीनें भेंट की. उन्हें सिलाई का काम दिया. आज ये महिलाएं अब आत्म सम्मान के साथ जी रही हैं.

दरअसल जिन महिलाओं से जुड़ी हुई यह कहानी वो गौरी और सुजाता जैसी उन महिलाओं की जो कचरा बीनने का काम करती थीं. इसमें ऊपर जो तस्वीर आप देख रहे हैं वो गौरी की हैं. गौरी…जिसकी ज़िंदगी कल तक कचरों के बीच मानो गुम हो गई थी. अल सुबह से लेकर साँझ ढलने तक वह रोज कचरों के बीच संघर्ष करती, दो वक्त की जरूरतें पूरी करने की जुगत करती. उजालों में दिन भर के कठिन परिश्रम के बाद भी वह अपनी ज़िंदगी में छाए अंधकार को मिटा पाने में नाकाम थी. लेकिन इन सबके बीच एक दिन कुछ ऐसा घटित हुआ कि मुख्य सचिव आर पी मंडल और श्रम मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया उनकी ज़िंदगी में एक नई रौशनी बनकर आएं.

 

गौरी बताती हैं कि श्रम विभाग के माध्यम से मुझे 45 दिन का सिलाई का प्रशिक्षण मिला और नुकसान से बचाने प्रशिक्षण के साथ प्रतिदिन तीन सौ रुपए के मानदेय से स्टायफंड भी मिला. प्रशिक्षण के बाद मैं बहुत बदली हुई हूँ. मैं गंदगी के ढेर के बीच जीवन गुजराने के लिए मजबूर थी. सुबह से लेकर शाम तक पूरा दिन कचरे के बीच ही गुजरता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब मैं कपड़े सिलाई का काम करती हूँ. यह काम पहले से लाख गुना अच्छा है. पहले कचरे में सिर्फ गंदगी ही मिलती थी, भूखे-प्यासे भटकना पड़ता था. अब स्वच्छ रहकर साफ-सुथरे कपड़ों की सिलाई करती हूँ. अब वे स्वयं के साथ परिवार का भी बेहतर भविष्य देख रही हैं.

इसी तरह सुजाता का कहना है कि हमें मंत्री डाॅ. डहरिया और मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारियों ने जब भरोसा दिलाया कि सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण एक दिन उनकी जिंदगी बदल सकती है, तब जाकर मैंने और मेरे साथ ही कचरा बीनने वाली कई महिलाएं श्रम विभाग की योजना से जुड़ गई हैं. वह सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर एक अब कचरा बीनना छोड़, एक नई जिन्दगी को बुनने में लग चुकी है.