पुरूषोत्तम पात्रा. गरियाबन्द. 100 रुपये फीट में बोर के खनन पर किसानों को अनुदान देने वाली कृषि विभाग ने जनजातियों के लिये बगैर टेंडर 160 रुपये फीट बोर खनन करवा दिया. वहीं केसिंग का दाम भी दोगुना दाम पर किया गया.

दरअसल कमार जनजाति के रहने वाले 27 गांव के 47 लोगों के लिए क्रेडा के माध्यम से सूक्ष्म सिंचाई योजना बता कर कृषि विभाग ने 55 लाख रुपए खर्च किए. सच्चाई यह है कि ज्यादातर किसानों का बोर साल भर से बन्द पड़ा है.

आदिमजाति विकास विभाग को आदिवासी उपयोजना क्षेत्रीय मद से गरियाबन्द जिले को वित्तीय वर्ष 2019 में 3 करोड़ 41 रुपए कमार जनजाति के सर्वागीण विकास के लिए दिए गए थे. रुपए विभाग के परियोजना प्रसाशक के माध्यम से विभिन्न विभागों के माध्यम से खर्च होने थे.

30 अगस्त 2018 को परियोजना प्रशासक ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली सवर्धन हेतु क्रेडा के माध्यम से सौर सूजला योजना हेतु 55 लाख रुपये का आबंटन उपसंचालक कृषि को भुगतान किया. इन रुपए से कृषि विभाग ने जनजाति रहने वाले 27 गांव में 47 किसानों के लिए राजीम के ड्रिलर कुणाल एग्रो से बोर खनन करवाने में 51 लाख 70 हजार फूंक दिया.

जनजाति के आड़ में सरकारी पैसे को दुरुपयोग को बेनकाब करने का मुहिम चलाने वाले देवभोग के आदिवासी यूवक कन्हैया मांझी ने लाभान्वित कृषकों की सूची निकाली,”लल्लूराम डॉट कॉम” के साथ मांझी एक एक हितग्राहियों तक पहुंचे. जहां सिंचाई सुविधा की सच्चाई जानी.

ग्राउंड रिपोर्ट तैयार किया तो कई चौकाने वाले मामले सामने आए है. जनजाति के आड़ में केंद्रीय राशि की बंदरबांट की गई है. उसके कई प्रमाणिक तथ्य निकल कर सामने आए.

बहारुराम का ड्राई बोर से निकला 2160 गैलन पानी

मैनपुर के बेहराडीह में रहने वाले बहारुराम कमार के पास जब हम पहुंचे तो उसने बताया कि 120 फिट खनन के बाद पहला बोर ड्राय हुआ तो दूसरा बोर भी इतना ही खोदा गया. किस्मत खराब थी इसलिये दोनों बोर ड्राय निकले. लेकिन विभाग ने कुणाल एग्रो को इस ड्राय बोर का भुगतान करने 304 फिट खनन बता कर 94329 रुपए का भुगतान कर दिया है. बकायदा उपयोगिता प्रमाण पत्र बनाया गया,जिसमे लिखा गया कि 12 जून 2019 में खोदे गए इस बोर में 2160 गैलन पानी डिस्चार्ज हो रहा है. कमार किसान का बकायदा हिंदी में दस्तखत भी है. जबकि बहारुराम ने बताया कि वो अंगूठा छाप है, ऐसे किसी प्रमाण पत्र में उसने दस्तखत नहीं किया है और क्यों भी करता जब मेरे लिए खोदे गए बोर में एक बूंद पानी ही निकला.

अभिकरण के सदस्यों को भी ठगा गया

तुहामेटा निवासी पीलूराम सोरी पढा लिखा कमार यूवक है, जो वर्तमान में कमार विकास अभिकरण सदस्य भी है. जब उन्होंने हमारे हाथ में रखा उनके नाम का बिल देखा तो भौचक रह गए. बिल के मुताबिक पीलूराम सोरी के लिए खनन हुए बोर में 150 फिट दर्शाया गया है. केसिंग भी 95 फिट बता कर कुल 1 लाख 595 रूपए का भुगतान किया गया. जबकि पीलूराम ने बताया कि उसका बोर महज 120 फिट खोदा गया व केसिंग 60 फिट ही डाला गया है.

बिल देखने के बाद पीलूराम ने मामले की शिकायत कर जांच की मांग करने की बात कही है. इसी गांव के लक्ष्मी सोरी के यंहा 5 इंची का बोर खनन करवाया, बिल 7 इंची का बनाया गया.

पथरी के मधुराम के यंहा 90 फीट खोदा बिल 130 का बनाया

पीलू राम ने बताया कि ज्यादातर जनजाति किसानों को अक्षर ज्ञान नहीं है पर उपयोगिता प्रमाण पत्र में एक दो को छोड़ सभी का दस्तखत दिख रहा. सोरी ने इस दस्तखत को फर्जी बताया है. सभी बोरो की माप दोबारा लेने की मांग भी करेंगे.

 आमझर में अधिकांश बोर बन्द पड़े

आमझर निवासी मेहत्तर कमार व रतन राम का सोलर व पम्प दो माह से बन्द पड़ा है. पानी के अभाव में सूखे फसल को दिखाते हुए किसानों ने कहा बोर का पुर्जा पुर्जा निकाल ले गए. लेकिन दोबारा कोई बनाने नहीं पहुंचा, पोटिया, खड़मा, धरमपुर, जोगिडिपा, केडीआमा जैसे 10 गांव में 15 से ज्यादा बन्द पड़े बोर बता रहे हैं कि जिस उद्देश्य के लिए रुपये दिए गए जमीनी स्तर पर योजना कितना सार्थक है.

बोरवेल के दर में दोहरा मापदण्ड

किसान समृद्धि योजना तहत बोरवेल खनन में यही कृषि विभाग किसानों को अनुदान देती है. सरकारी फाइलों में लगे बिल बताता है कि किसान 95 रुपेय से लेकर अधिकतम 110 रुपेय में खनन व अधिकतम 250 रुपए प्रति फिट केसिंग के लिए भुगतान करते है. लेकिन जब विभाग को खनन करवाना था तो उसने 160 रुपये ड्रिलिंग व 455 रुपये केसिंग का बिल भुगतान किया. लोरिंग, कैप सॉकेट व बेल्डिंग के लिए भी बाजार भाव से दोगुना दाम का भुगतान कर दिया. कन्हैया मांझी ने कहा कि बोरवेल खनन के लिए न तो कोई कोटेशन लिया गया न ही टेंडर जारी किया गया. जनजातियों के नाम आए रूपयों का बंदरबाट करना था इसलिए फर्म व रेट विभाग के अफसरों ने तय कर दिया और कमीशन के तौर मोटी रकम ले लिया.

विभाग के पास नहीं पहुंची शिकायत

इस योजना में गड़बड़ी या कोलैप्स बोर के भुगतान की कोई शिकायत नहीं मिली है, कार्य 2019 का बता रहे हो तो फाइल देख कर ही बता सकता हूं कि बोर खनन करने टेंडर जारी हुआ था या नहीं, अचानक से ऐसे सवाल करोगे तो बिना देखे कोई कैसे जवाब दे सकता है.

फागुराम कश्यप, उपसंचालक कृषि

कुनाल एग्रो के बील में दिये गए नम्बर पर हमने जब बात किया तो संचालक मुकेश साहू से बात हुई. बाजार मूल्य से ज्यादा दर के सवाल पर संचालक ने कहा कि मैंने जितना काम किया उतना ही लिया है. ज्यादा कुछ पूछना हो तो (गरियाबन्द के एक कांगेस नेता का नाम बताया) उनसे पूछ लो. वो जैसे बोले मैंने वैसा किया है.