छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर साहित्य एवं भाषा-अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ‘छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य, अउ संस्कृति‘ विषयक संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य, अउ संस्कृति के मान सम्मान हमर मान सम्मान हे। हमर इहां हर मौसम अउ हर तीज-तिहार के लोक गीत अलग-अलग हे।’’ धान के कटोरा म छत्तीसगढ़ी भासा-साहित्य के भंडार हे, ये हमर संस्कृति, अस्मिता, सुवाभिमान अउ चिन्हारी हरय. भाषा-साहित्य अउ संस्कृति के पठन-पाठन कैसे किया जाए़ ? ताकि उसका प्रचार प्रसार बढ़े स्तर पर हो सके। छत्तीसगढ़ी साहित्य के अध्ययन के लिए लइका मन ला प्रेरित करना है। ताकि छत्तीसगढ़ी भाषा-संस्कृति, समृद्ध हो सके।

माई पहुना प्रो. चितरंजन कर ने छत्तीसगढ़ी लोक भाषा : दशा अउ दिशा पर व्याख्यान दिया। उनका कहना था कि ‘‘लोक कभी नई विलुप्त होवय। शब्दकोश ओर व्याकरण भाषा की रीढ़ है।’’ भवानी प्रसाद मिश्र के उद्धरण को बताते हुए कहा कि शब्द हा कवि ला चुनथे। जिनको मातृभाषा नहीं आती उसे किसी दूसरी भाषा का सुव्यवस्थित ज्ञान नहीं होता। साथ ही मानकीकरण के विषय में बोलते हुए कहा कि दूसरे भाषा से छत्तीसगढ़ी में शबद लेने से छत्तीसगढ़ी समृद्ध होगी।

कार्यक्रम के खास पहुना श्री रामनाथ साहू जी ने छत्तीसगढ़ी में उपन्यास लेखन परम्परा के विस्तृत चर्चा कर हुए हीरू की कहनी की चर्चा की, चंदा अमरित बरसाइस, कहाँ बिलागे मोर धान के कटोरा, आवा, उढ़रिया, भुईयां आदि के कथानक और संस्कृति के विषय वस्तु को विस्तार से बताया।

कार्यक्रम के पहुना डॉ. अनिल भतपहरी जी ने प्रागैतिहासिक काल के कबरा पहाड़, जोगीमारा गुफा से लेकर आर्य, अनार्य, द्रविड़ संस्कृति के समागम की चर्चा की तथा मौखिक गाथा के प्राचीन और अर्वाचीन स्वरूप पर विस्तृत चर्चा की। छत्तीसगढ़ी को पाली, प्राकृत, अपभंश से जोड़ते हुए उसके आधुनिक स्वरूप को विस्तार से बताया।

खास पहुना प्रो. राजन यादव जी ने छत्तीसगढ़ी लोक भाषा की ताकत और लोक गीत के विकास और समृद्धि को उदाहरण सहित उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि साहित्य में गेयता ही हमारे जीवन में महत्व रखती है। गोरखनाथ की बानी से लेकर जन्म गीत, विवाह गीत, सुआ गीत, भोजली गीत देवार गीत के शब्दों को व्याख्यायित किया। निर्गुण और सगुण रूप का वर्णन करते हुए सस्वर कविता एवं गीत की प्रस्तुति दी। जो छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य की प्रसिद्ध परंपरा को अभिव्यक्त करते है। छत्तीसगढ़ की लोक उत्सवधर्मिता से सभी को परिचित करवाया।

कार्यक्रम के संयोजक प्रो. शैल शर्मा ने सभी का स्वागत करते हुए विभाग तथा संगोष्ठी का परिचय दिया कार्यक्रम का संचालन डॉ. स्मिता शर्मा और डॉ. गिरजा शंकर गौतम ने किया। विभाग की प्राध्यापक सहसंयोजक डॉ. मधुलता बारा ने कार्यक्रम का समाहार प्रस्तुत करते हुए धन्यवाद ज्ञापन दिया। दीपमाला शर्मा तथा उनके सहयोगियों ने राजगीत तथा संगीतमय लोक गीत प्रस्तुत किया।

डॉ. कौस्तुभ मणि द्विवेदी, डॉ. आरती पाठक, डॉ. कुमुदिनी घृतलहर,े श्री प्रीतम दास, हितेश तिवारी तकनीकी सहयोग में मुख्य भुमिका निभाई। ई-संगोष्ठी में भारत के लगभग सभी प्रदेशों से रशिया, अंडमार निकोबार, उ. प्र., म. प्र., हिमाचल प्र. राजस्थान, पंजाब, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, अरूणाचल प्र. असम, ओड़िसा कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, झारखंड बिहार, कर्नाटक, आदि राज्यों के साथ अंडमान निकोबार द्वीप समूह के अतिरिक्त विदेशों से भी जुड़े रहे। इस कार्यक्रम से शोधार्थी, छात्र छात्राए भाषा प्रेमी लाभान्वित हुए।