रायपुर। आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता के मुखिया के रुप में एक अलग पहचान बनाई है. उन्होंने अपनी छवि एक ऐसे राजनेता की गढ़ी है, जो बड़े फैसले लेने में नहीं झिझकता. जनता के हितों को सबसे ज़्यादा तरजीह देता है. अपनी मिट्टी, अपनी पहचान और अपनी संस्कृति से प्रेम करता है. 59 साल के भूपेश बघेल करीब पौने दो साल के मुख्यमंत्री के रुप में बीता चुके हैं. लेकिन उनकी सहजता और अपनों से आत्मियता ज्यों की त्यों है. वे आज ठेठ देसी छत्तीसगढ़िया हैं. छोटे से कार्यकाल में भूपेश बघेल ने जो फैसले लिए, उन फैसलों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कर दिया.

मुख्यमंत्री के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी बताते हैं कि उनकी संस्कृति के बारे में उनकी कलाओं के बारे में उनकी योग्यताओं के बारे में जो छत्तीसगढ़ के लोगों को स्थान नहीं मिल पाता था वो स्थान मिल रहा है. छत्तीसगढ़ की बोली, भाषा को लोग बहुत सहजता के साथ इसका प्रयोग होने लगा है. अब उसको का दृष्टि से नहीं देखते पहले छत्तीसगढ़ के गांव का आदमी जाता था छत्तीसगढ़ी में बात करता था तो अधिकारी उनको दुत्कारते थे, लेकिन आज किसी भी अधिकारी की ये हिम्मत नहीं कि कोई गांव का आदमी छत्तीसगढ़ में बात करे तो उसे भी मजबूरन छत्तीसगढ़ी सीखनी पड़ रही है.

इस फैसले सरकार के मुखिया के तौर पर भी उन्होंने किये और राजनीतिक मोर्चे पर भी लिए. डेढ़ साल बाद राज्य का विपक्ष को वो ज़मीनी मुद्दा नहीं मिल रहा है. जिसके बूते उसे घेरा जा सके. मुख्यमंत्री बनने के बाद बघेल ने कई अहम काम सांस्कृतिक और धार्मिक मोर्चे पर भी किया. उन्होंने छत्तीसगढ़ की जातीय और सांस्कृति चेतना को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई. मुख्यमंत्री के तौर पर भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़े के सांस्कृतिक और लोकजीवन से जुड़ी गतिविधों- भंवरा नचाने, बैलगाड़ी चलाने और गेड़ी चढ़ने को उन्होंने अपमार्केट और पापुलर कर दिया.

भूपेश बघेल के करीबी नेता आरएन वर्मा बताते हैं कि जब कभी ग्रामीण क्षेत्रों में हम प्रदर्शन में जाते थे, तो मुख्यमंत्री किसानों की फसल देखने खुद खेतो में चले जाते, तो कभी पेड़ पर चढ़ना, नदी में छलांग लगाकर तैराकी करना ये सब उनके लिए आम बात है शायद यही वजह है उनमें गजब की स्फूर्ति है. वो बताते है कि शुरू से ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को छ:ग. की संस्कृति से लगाव रहा है उनके रग रग में यहाँ की संस्कृति घुली हुई है. उनके मन मे यहां की भूमि,भाषा और लोगों के लिए अगाथ प्रेम है इसीलिए वो इस मिट्टी और यहाँ से जुड़े हुए लोगो के लिए संघर्ष करने से भी पीछे नही हटते.

इस दौरान भूपेश बघेल अपनी सरकार के कामकाज के साथ विकास के नए मॉडल के साथ देश को एक उम्मीद भी दिखा रहे हैं. कांग्रेस ने तमाम राज्यों के चुनाव में इसे भुनाने की कोशिश भी की है. यहां भूपेश सरकार के विकास के मॉडल को एक विकल्प के तौर पर पेश किया गया है.

भूपेश बघेल ने एक किसान नेता के तौर पर अपनी देशव्यापी छवि गढ़ी है. एक ऐसे नेता की छवि जो फौरन फैसले लेता है. जो विशिष्ठता नहीं सामान्य बने रहने में यकीन रखता है. भूपेश बघेल सीएम बनने के कोई दो साल बाद भी लोगों को उसी तरह से पहचानते हैं जैसे पहले पहचानते थे. उन्होंने अपने विकास के नज़रिए से राष्ट्रीय स्तर पर धाक जमाई है. वे अपने काम से लेकर विचारधारा के स्तर पर स्पष्ट राय रखते और मानते हैं.

59 के भूपेश का सफरनामा : जब भूपेश बघेल को उनके शिक्षक ने कहा था- ‘कइसे रे भूपेश तैं नेता बन जाबे का रे’ 

प्रदेश महामंत्री राजेंद्र साहू कहते हैं कि उनकी सोच गांव, गरीब, मजदूर और किसानों के प्रति साफ दिखाई देती थी और उनके इसी सोच को देखकर लगता था कि वो एक दिन जब मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होंगे तो जरूर इन वर्गो के लिए कोई बड़ा काम करेंगे और आज भूपेश बघेल ने अपनी योजनाओं से साबित कर दिया कि उनके मन मे आज भी गाँव , गरीब , मजदूर और किसानों के लिए वही भाव है और जिन योजनाओं के चलते इन वर्गों को लाभ मिल रहा है आगे भी मुख्यमंत्री इन वर्गों के लिए इसी तरह सतत प्रयास जारी रखेंगे.

दुर्ग नगर निगम सभापति राजेश यादव बताते हैं कि किसानों से लेकर छग की संस्कृति और कला को जो उन्होंने देखा और समझ कर कार्य किया है तो आज मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों के लिए योजना बनाकर वो किसानों के मसीहा के रूप में छः ग में अपने आप को स्थापित किये है. जब से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी किसानों के लिए कई ऐतिहासिक फैसले लिए गए है लगातार प्रदेश को विकास के रास्ते पर लेकर चल रहे है 20 महीने में जो काम हुआ है प्रदेश में आने वाले दशको तक इसका असर दिखाई देगा.

सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने करीब 36 वादे किये थे. जिसमें से भूपेश सरकार 22 वादे पूरा करने का दावा करती है. पौने दो साल में आधे से ज़्यादा वादों को पूरा करना कीर्तिमानुमा है. सत्ता में आते ही भूपेश बघेल ने किसानों के कर्जा माफ कर उन्हें धान के बदले 2500 रुपये देकर बड़ा काम किया. ये भूपेश के खाते में सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर दर्ज है. जब देश में किसानों का समर्थन मूल्य बढ़ाने को लेकर बात हो रही है तो भूपेश बघेल की सरकार के इस फैसले को कृषि के बड़े जानकार भी देश में राहत के तौर पर देखते हैं. देश के किसान जहां त्राहिमाम कर रहे हैं. वहीं छत्तीसगढ़ सरकार की ओर देखने से लगता है कि यहां किसानों की सरकार बन गई है.

छग कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल कहते हैं कि मुख्यमंत्री की जवाबदारी सौंपने के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी द्वारा चुनाव में जनता के बीच जो वादे किए थे. उन वादों को एक-एक कर पूरा करने का काम भूपेश बघेल ने शुरू किया. किसानों का कर्जा माफ, ₹2500 में धान खरीदी किया. भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गौठान और नरवा, गरवा, घुरवा और बारी का जो नारा दिया था. उस वक़्त तक वह नारा कई लोगों को समझ में नहीं आता था. लेकिन आज जनता को सब समझ में आ रहा है कि नरवा गरवा घुरवा और बारी इस प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधारना गांव के युवाओं को रोजगार देना और गरीबों की जेब में पैसा पहुँचाने वाली योजना है. देश में नोटबंदी हुई कोरोना का संकट काल आया जब हर जगह आर्थिक मंदी थी लेकिन हमारे प्रदेश में आर्थिक खुशहाली रही. व्यापार जगत भी खुशहाल रहा, उद्योग जगत भी खुशहाल रहा.यह भूपेश बघेल की सोच और दूरदृष्टि का प्रतिफल है.

फैसले लेने के स्तर पर सरकार ने जो काम किया है उसकी मिसाल कम ही देखने को मिलती है. भूपेश बघेल ने भरोसा कायम करने वाले कई कदम मुख्यमंत्री बनने के बाद उठाए. लेकिन भूपेश बघेल के कार्यकाल में जो सबसे बड़ी उपलब्धि दर्ज है कि उसने छत्तीसगढ़ की पूरी राजनीति को धान, किसान और छत्तीसगढ़िया के इर्द-गिर्द समेट दिया. भूपेश बघेल के कहते हैं कि उनके विकास के मॉडल के केंद्र में बिल्डिंग नहीं व्यक्ति है.

इसका आशय साफ है कि विकास का लाभ व्यक्ति को मिले. केवल इमारतें और दीवारे बनाने से उस विकास का फायदा व्यक्ति को नहीं मिल पाता. सरकार ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत राज्य में नरवा-गरवा, घुरवा-बारी को शुरु किया. ज़मीनी स्तर पर मंशाअनुरुप इसका असर दिखना शेष है. लेकिन इसे खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने और पर्यावरण को ठीक रखने के उपाय के तौर पर कृषि और पर्यावरण के जानकार देख रहे हैं. दिलचस्प बात है कि सरकार ने इसके एक लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते हुए गोबर खरीदी भी शुरु कर दी है. किसानों से दो रुपये किलो गोबर खऱीदा जा रहा है. इसका ज़्यादा फायदा भूमिहीन और छोटे किसानों को मिलेगा. गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर सरकार ने रासायनिक खाद के स्थान पर इसे प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन ये फैसला कई मायनों में अच्छा राजनीतिक कदम भी है. पहला इस फैसले के बाद दूसरे राज्यों के गौपालकों ने अपनी राज्य सरकारों से गोबर खऱीदी की मांग शुरु कर दी है. इससे छत्तीसगढ़ सरकार दूसरे राज्य में आदर्श के तौर पर सामने आ रही है. दूसरी बड़ा फायदा ये है कि इस फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी ये कहने लगी है कि भाजपा केवल गाय के नाम पर राजनीति करती है जबकि उनकी सरकार गायों और गौपालकों की बेहतरी के लिए काम कर रही है. इसका तीसरा बड़ा फायदा है कि कांग्रेस ये कह सकती है कि मोदी ने किसानों को जितने पैसे किसान कल्याण निधि में दे रहे हैं उससे ज्यादा भूपेश बघेल सिर्फ गोबर के बदले दे दे रहे हैं.

सरकार ने पौन दो साल में किसानो को 50 हज़ार करोड़ से ज्यादा की राशि दे दी है. इसी राज्य सरकार ने आदिवासी अंचल में रहने वाले की आय बढ़ाने के लिए तेंदुपत्ता संग्रहण का मूल्य ढाई हज़ार से बढ़ाकर 4 हज़ार कर दिया है. शहरी लोगों के लिए राज्य सरकार ने बिजली के बिल को आधा कर दिया. इसमें अधिभार भी शामिल है. हैरानी की बात है कि इस पर सरकार ने प्रचार भी नहीं किया. क्योंकि अन्य बड़े फैसलों के बीच शहरी आबादी के लिए ये बड़ा राहत छिपा रह गया. सरकार ने चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ काम ऐसे किए जिसे वो बता नहीं पाई. सरकार ने किसी बीमारी के इलाज के लिए सहायता राशि बढ़ाकर 20 लाख रुपये तक कर दी. सरकार ने बस्तर और सरगुजा के उन जगहों पर सैकड़ों डॉक्टरों की नियुक्ति कर दी, जिसके बारे में बीजेपी सरकार दस साल तक ये कहती रही कि वहां कोई डॉक्टर जाना नहीं चाहता है. शहरी क्षेत्र में भूपेश बघेल ने तीन डिसमिल से कम की रजिस्ट्री पर लगी रोक हटवाई ताकि लोग छोटे-प्लॉट खरीदकर मकान बना सकें. भूपेश बघेल की सरकार ने पीडीएस को सर्वभौमिक बना दिया. अब हर कोई पीडीएस में राशन ले सकता है चाहे वो गरीब हो या अमीर.

भूपेश बघेल हर तरफ सोच रहे हैं. कृषि और संस्कृति के साथ वे उदयोगों को बढ़ावा देने के लिए नई औद्योगिक नीति लेकर आए हैं. इसी साल के आखिरी से दुर्ग जिले में एक रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी अपना काम शुरु करेगी. ये बात समझने की है कि जब औद्योगिकीकरण होता है जो संस्कृति की उपेक्षा होती है. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार के ये दोनों फैसलों का कांबिनेशन बेहद दुर्लभ है. नौकरशाही को पौने दो साल में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दे दिया है कि न कोई यहां सुपर सीएम बन सकता है न ही कोई गलत करने पर सरकार से बच सकता है. उम्मीदों पर खरा न उतरने की वजह से सरकार के बड़े-बड़े नौकरशाह बदले जा चुके हैं. जल, जंगल, ज़मीन और माइन्स को लेकर भूपेश बघेल ने कुछ ऐतिहासिक फैसले लिए. भूपेश बघेल ने सत्ता में आते ही लोहांडीगुड़ा में किसानों की करीब 17 हज़ार वो ज़मीन वापिस दे दी जिसे टाटा के लिए अधिग्रहित किया गया था. सरकार ने नंदराज पर्वत में खनन के खिलाफ 25 हज़ार आदिवासियों के आंदोलन का सम्मान करते हुए उस पर रोक लगा दी. ये ऐसे फैसले हैं जिनकी मिसाल हिंदुस्तान के किसी दूसरी सरकार के कार्यकाल में नहीं मिलता. भूपेश बघेल की सरकार ने अपने एक साल के कार्यकाल में वन्यजीवों और जंगल को लेकर कुछ सकारात्मक कदम उठाए. सरकार ने गरियाबंद में सालों से चल रहे अवैध कटाई के खेल का भंडाफोड़ किया. जबकि हाथियों के लिए रिजर्व लेमरु का क्षेत्रफल चार गुना बढ़ाकर करीब 2 हज़ार किलोमीटर कर दिया. इससे कई कोल माइन बचे रह गए.

भूपेश सरकार की सबसे बड़ी खूबी है कि ये अपनी गलतियों से सीखती है. गलतियों को दुरुस्त करते जाती है. राजनीतिक मोर्चे पर भी भूपेश बघेल ने कई बार साबित किया है कि वे सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों में सबसे सही राजनीतिक कदम उठाने की योग्यता रखते हैं. उन्होंने रायपुर को राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े राजनीतिक केंद्र के रुप में विकसित किया जहां से बिना दबाव के केंद्र के खिलाफ आवाज़ बुलंद हो सकती है. एक मजबूत राजनेता के रुप में जहां भूपेश को केंद्र से लड़ना लड़ना पड़ा वे लड़े. जहां केंद्र को मनाना पड़ा, मनाया.जब छत्तीसगढ़ सरकार का चावल खरीदने से केंद्र ने मना कर दिया तो उन्होंने दिल्ली कूच करने का बयान देकर दिल्ली की सल्तनत की नींदे उड़ा दी थी.

इसके बाद लगातार केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रखा. लेकिन जब केंद्र अड़ी रही. तो उन्होंने राजीव गांधी किसान न्याय योजना लाकर अपने वादे को पूरा किया और केंद्र को भी चावल खरीदने पर मजबूर कर दिया. जब सीएए और एनआरसी को लेकर केंद्र सरकार ने फैसला लिया तो भूपेश बघेल ने एनआरसी पर अपना स्डैंड स्पष्ट किया और फैसले का पूरज़ोर विरोध किया. वे लगातार बीजेपी और संघ के खिलाफ मुखर रहे हैं. लेकिन दूसरी तरफ राममंदिर से पहले उन्होंने राम गमन पथ और कौशल्या मंदिर बनाकर उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव खेला. ये दांव जोखिम भरा था क्योंकि ये बीजेपी की पिच है. लेकिन फिर भी भूपेश ने जोखिम उठाते हुए ये दांव चला. क्योंकि जोखिम लेना उनका अंदाज ए सियासत है और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ये अंदाज़ जारी है.