रायपुर. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान की अनेक किस्में पाई जाती हैं. धान की कटाई और मिजाई के बाद खेतों में जो बचता है, उसे पैरा या पराली कहा जाता है. ये चारा के रूप में मवेशियों को खिलाया भी जाता है और यदि इसकी मात्रा अधिक रही तो किसान इसे जला भी देते हैं. कुल मिलाकर पैरा वेस्ट मटेरियल है, लेकिन छत्तीसगढ़ के चूड़ामणी सूर्यवंशी ने वेस्ट को बेस्ट बनाकर दिखाया.
चूड़ामणी ने पैरा से इतनी खूबसूरत तस्वीरें उकेरी कि हर कोई देखता ही रह गया. किसी ने सोचा नहीं होगा कि पैरा से भी आर्ट बनाया जा सकता है, लेकिन जांजगीर के चूड़ामणी ने ये कर दिखाया और अब तक वे हजारों युवाओं को इसकी ट्रेनिंग भी दे चुके हैं.
चूड़ामणि बताते हैं कि वे गांव में अक्सर देखा करते थे, खेतो से बड़ी संख्या में पैरा इकट्ठे तो किए जाते थे, लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं होता था. उन्हें बचपन से ही ड्राइंग का शौक था. उन्होंने छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड के ट्रेनिंग प्रोग्राम में चूड़ामणी ने पैरा आर्ट की ट्रेनिंग ली. इसके बाद उन्होंने युवाओं को भी आर्ट सीखाकर उन्हे आत्मनिर्भर बना रहे है. पैरा से स्केच बनाने में लगभग 100 से 200 रूपए का खर्च आता है.
कैसे तैयार होता है पैरा आर्ट-
सबसे पहले पैरा की कटिंग की जाती है. फिर ब्लेड की मगग से उसे सपाट किया जाता है. पेपर में स्कैच तैयार कर उसमें पैरा चिपकाया जाता है. पैरा आर्ट के लिए अक्सर काले रंग को बैकग्राउंड में रखा जाता है. जिससे बनाया गया आर्ट अच्छे से उभर कर दिखे. खास बात ये है कि इसके लिए पैरा में किसी भी तरह के कलर का इस्तेमाल नहीं किया जाता. बल्कि पैरा में सफेद भूरा और पीला कलर पाया जाता है. जो नेचुरल है.
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