नई दिल्ली। ये कैसा समय आ गया है. ये कैसी महामारी है, जो न रिश्ते देख रही है, न मासूमियत. बस अपनों को अपनों से जुदा करते जा रही है. इसे भयावह महामारी कहूं कि बिन इलाज की बीमारी, जो बस रिश्ते-नातों पर अपना कटार चला रही है. जिधर देखो बस हर रोज, हजारों की तादाद में कत्लेआम मचा रही है. ये बेरहम कोरोना के लिए इंसान आज बस मिट्टी हो गया है, जिसमें मिलते जा रहा है. इस कातिल कोरोना के लिए रिश्ते-नाते केवल लिबास हो गए हैं. उनकी कोई अहमियत नहीं रही. बस राख, खाक और आग ही बच रहा है. लोगों को बिलखता, चिल्लाता और तड़पता छोड़ रहा है. कुछ ऐसी ही तस्वीरें गाजियाबाद से आई हैं, जो अपनी पीड़ा हर किसी को चीख-चीखकर सुना रही हैं.

छीन ली 4 जिंदगियां

दरअसल, गाजियाबाद में रहने वाले एक परिवार के लिए दूसरी लहर मानो कयामत बनकर आई है. परिवार में 6 सदस्य थे, जिनमें 8 साल की दो बच्चियां भी हैं. चार लोगों की संक्रमित होने के बाद मौत हो गई. अब केवल दो बच्चियां ही बची हैं.

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के तमाम जुमले ऊषा और आशा (काल्पनिक नाम) के लिए बेमतलब हैं। WHO की चिट्ठी लेकर भले ही सरकार अपनी पीठ थपथपा कर खुद में मग्न होती रहे, लेकिन इन दोनों बच्चियों की आंखों में उम्मीद की रोशनी पैदा नहीं की जा सकती. कोरोना ने उनको पूरी तरह से तहस नहस कर दिया है. उनसे वो सहारे ही छीन लिए, जिनके साए तले वो पल रही थीं.

जानकारी के मुताबिक अप्रैल के शुरू तक परिवार में सब कुछ ठीक था, लेकिन अचानक मानो भूचाल आ गया. कोरोना का सबसे पहला हमला परिवार के सबसे उम्रदराज दुर्गा प्रसाद पर हुआ. वो कोरोना वायरस की चपेट में आ गए. दुर्गा प्रसाद रिटायर्ड शिक्षक थे. सामाजिक तौर पर काफी सक्रिय रहने वाले इस व्यक्ति में जब कोरोना के लक्षण दिखे, तो उन्होंने उसे सामान्य तौर पर लिया. घर के एक कमरे में बंद होकर वो बाजार में मौजूद दवाओं के सहारे ठीक होने की कोशिश में लग गए.

होनी को कुछ और ही मंजूर था

दुर्गा प्रसाद के संक्रमित होने के बाद पता चला कि उनकी पत्नी के साथ बेटा अश्विन और उसकी पत्नी भी कोविड-19 की चपेट में आ गए हैं. परिवार के लिए उस समय तक भी हालात उतने खराब नहीं थे, लेकिन 27 अप्रैल को रिटायर्ड शिक्षक की मौत हो गई. हालात यहीं पर नहीं संभले. एक सप्ताह बाद अश्विन भी जीवन की लड़ाई हार गया. परिवार में बची थीं केवल दो महिलाएं. दोनों बच्चियां उनके सहारे किसी तरह से खुद को संभाल रही थीं.

बच्चियों को अनाथ नहीं होना पड़ता ?

परिवार पर कहर तब टूटा जब दोनों महिलाओं की भी एक के बाद एक करके मौत हो गई. बच्चियां सब कुछ अपनी आंखों से देख रही थीं, लेकिन उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. फिलहाल वो बरेली में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के पास हैं. उधर जिस हाउसिंग सोसायटी में दुर्गा प्रसाद का परिवार रहता था. वहां भय का माहौल है. लोगों का कहना है कि आत्ममुघता में मस्त योगी सरकार अगर इन लोगों को इलाज दे पाती तो बच्चियों को अनाथ नहीं होना पड़ता ?

read more- Corona Horror: US Administration rejects India’s plea to export vaccine’s raw material

दुनियाभर की कोरोना अपडेट देखने के लिए करें क्लिक