हेमंत शर्मा, इंदौर। कहा जाता है कि मध्य प्रदेश की सबसे स्मार्ट पुलिस इंदौर में है। लेकिन कुछ समय से इंदौर पुलिस की स्मार्टनेस को टक्कर दे रहे बदमाश उनसे दो कदम आगे चल रहे हैं। ऑनलाइन ठगी के ऐसे कई मामले सामने आ चुके, जिसमें पुलिस ने अब तक एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया है। थाने में 4 महीने में 2 हजार से अधिक ऐसी शिकायतें आई, जिसमें लोग चार करोड़ से ज्यादा की ऑनलाइन ठगी के शिकार हुए हैं।

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इन मामलों में पुलिस ने फरियादियों को लगभग सवा करोड़ रुपए वापस भी लौट आए हैं। लेकिन उन आरोपियों तक पुलिस नहीं पहुंच सकी है। जो दूर कहीं बैठकर ऑनलाइन के माध्यम से लोगों को अपनी ठगी का लगातार शिकार बना रहे हैं। ऐसे मामलों में कई बार पुलिस ने जब ठगों से बात करने की कोशिश की, तो वह पुलिस को भी आपशब्द कहते हुए नजर आ चुके हैं। जिससे पुलिस साफ तौर पर मान चुकी हैं इन्हें पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

जिसके चलते अब क्राइम ब्रांच या साइबर सेल में आने वाले फरियादी को पुलिस यह कहकर टाल देती है कि आप अवेयर नहीं थे इसलिए आपके साथ धोखाधड़ी की घटना हुई। फिर आवेदन लेकर फरियादी को लौटा दिया जता है। वहीं जब तक फरियादी दबाव डाल कर मामले की शिकायत करता है। तब तक ट्रांसफर किया हुआ पैसा आरोपियों द्वारा विड्रॉल भी कर लिया जाता है। बतादें कि, कई मामलों में पुलिस ने विड्रॉल के पहले ही पैसे को ऑनलाइन होल्ड करवा दिया है। जिससे कुछ लोगों को उनका पैसा वापस मिल चुका है।

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बंधक बनाकर 8 लाख से ज्यादा की ठगी
इंदौर के रहने वाले एक डॉक्टर दंपति से पिछले कुछ दिनों पहले ही ठगों ने 8 लाख से ज्यादा की ठगी की घटना को अंजाम दिया था। जिसमें डॉक्टर दंपति को 48 घंटे तक ऑनलाइन बंधक बना कर रखा गया। इसके साथ ही आरोपियों ने दंपति को इतना डरा दिया था कि उन्हें ऑर्गन ट्रांसप्लांट मामले में भी फसाने की धमकी दे डाली। इसके बाद डॉक्टर दंपति इतना ज्यादा डर गए कि आरोपियों द्वारा कही जाने वाली हर बात मानने लगे।

डाटा आने में 1 से 6 महीने का लगता है वक्त
जब इस पूरे मामले में इंदौर क्राइम ब्रांच एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया से बात की गई तो उन्होंने बताया कि, ऑनलाइन ठगी के मामलों में डाटा मांगने में 1 से 6 महीने तक का वक्त लग जाता है। अगर यह डाटा समय पर मिलने लगे तो आरोपियों को जल्द पकड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि, डाटा देरी से आने के बाद भी दो गैंग को अब तक पुलिस ने गिरफ्तार किया है। जिसमें 12 सदस्य शामिल है।

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लेकिन पुलिस ने जिन्हें पकड़ा वो ऑनलाइन के माध्यम से ठगी की जाने वाले एक भी ठग नहीं है। यह सभी कम पढ़े लिखे हैं और पुलिस से एक कदम आगे रहते हैं। पैसा विड्रोल करने के बाद ठग उसे अकाउंट को परमानेंट बंद कर देते और फिर नया अकाउंट ओपन कर लेते। फिर नया शिकार ढूंढ लेते हैं। ऐसे ही क्रेडिट कार्ड के भी कई ठगी के मामले सामने आ चुके हैं। जिसमें बिना ओटीपी के लोगों को अपना लाखों रुपए गवाना पड़ गया।

बैंक के एक फोन से ग्राहक हो सकता है सतर्क
ऐसे में लगातार बढ़ रहे साइबर ठगी के मामलों में रोक लगाने के लिए बैंकों को सेटलमेंट के लिए 24 घंटे का समय देना चाहिए। जिससे अगर क्रेडिट कार्ड के माध्यम से कोई ठगी करता है तो उस पैसे को होल्ड किया जा सके। लेकिन बैंकों के पास से लाखों रुपए क्रेडिट कार्ड के ट्रांसफर होने के बावजूद भी फोन नहीं आ रहे हैं कि उन्होंने यह ट्रांसफर किया या नहीं जबकि बैंक से या फोन आने के बाद ग्राहक सतर्क हो सकता है और उसके साथ लाखों की ठगी होने से भी बचा जा सकता है।

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