दही-चूड़ा महोत्सव: पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव गौडीय संप्रदाय में मनाया जाने वाला उत्सव है. जो श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी पर स्वामी नित्यानंद प्रभु की विशेष कृपा को दर्शाता है. पश्चिम बंगाल के पानीहाटी में वार्षिक दही- चूड़ा महोत्सव शुरू हो चुका है. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आयोजित पानीहाटी दही चूड़ा महोत्सव का विशेष प्रसाद पाने के लिए भक्तों का हजूम जुड़ जाता है. मान्यता है कि विशेष प्रसाद के ग्रहण करने से गुरूभक्ति की कुडलिनी जागृत होती है. यह महोत्सव इस बार दो जून को मनाया जाएगा.

गंगा तट पर एक साथ लाखों लोग दही-चूड़ा का लुत्फ उठाएंगे और प्रभु के गुण गाएंगे. उत्तर 24 परगना जिले में स्थित पानीहाटी में देश-विदेश से आगंतुकों की भीड़ जुटना शुरू हो गई है. श्री चैतन्य महाप्रभु के अनन्य भक्त रघुनाथ दास गोस्वामी द्वारा करीब 500 साल पहले शुरू किए गए दही-चूड़ा महोत्सव की ख्याति इतनी है कि आज भी लाखों भक्त एकत्र होते हैं. मेले की साज-सज्जा से लेकर गंगा तट पर सार्वजनिक दही-चूड़ा का भोज यहां आने वालों को खूब रास आता है.

एक कथा के अनुसार इस तरह शुरू हुआ महोत्सव

चैतन्य प्रभु के भक्त रघुनाथ दास का सामाजिक बंधनों में मन नहीं लगता था. उनके इस स्वभाव को देखते हुए पिता ने उनकी बाल्यावस्था में ही शादी करा दी थी, लेकिन वे जगन्नाथ पुरी जाकर चैतन्य महाप्रभु की संगति व सेवा में शामिल होना चाहते थे. पिता ने उन्हें ऐसा करने से रोका. कई बार अपने प्रयासों में असफल होने के बाद उन्हें एक दिन सूचना मिली कि भगवान बलराम के अवतार नित्यानंद प्रभु पानीहाटी पहुंचे हैं. रघुनाथ वहां जा पहुंचे और छिपकर दर्शन कर ही रहे थे कि प्रभु नित्यानंदजी ने उन्हें देखकर आवाज लगाई. इसके बाद प्रभु ने उन्हें सभी को दही-चूड़ा खिलाने का आदेश देते हुए कहा कि आप जमींदार घराने से हैं, सो आपको दंड स्वरूप दही-चूड़ा खिलाना होगा. रघुनाथ ने तुरंत वैष्णवों के लिए दही-चूड़ा की व्यवस्था कराई और सैकड़ों संतों को भोजन कराया. भोजनापरांत भगवान नित्यानंद ने उन्हें आशीर्वाद दिया. तभी से ‘दही-चूड़ा महोत्सव’ की शुरुआत हुई.

मिथिलांचल क्षेत्र में दही-चूड़ा बेहद लोकप्रिय व्यंजन

बिहार में ज्यादातर लोग सुबह के नाश्ते में इसे लेते हैं. नाश्ता ही नहीं, काफी लोग तो दही-चूड़ा को दोपहर के भोजन के तौर पर भी लेते हैं. वैसे भी यह एक सुपाच्य और पौष्टिक भोजन है जिसे तैयार करने के लिए कोई खास श्रम नहीं करना पड़ता है और शरीर के लिए भी बेहद फायदेमंद है. इसे पकाने का कोई झंझट ही नहीं है. बस चूड़े या पोहे को कुछ देर भिगोने के बाद उस पर दही और स्वादानुसार चीनी या केला आदि डालकर व्यंजन तैयार हो जाता है.
महान संत रघुनाथ दास गोस्वामी बाद में वृन्दावन आए और वृन्दावन से राधाकुण्ड आये. जहां पर अपनी भजनकुटी में उन्होंने लम्बे समय तक न केवल भजन किया बल्कि गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के कई ग्रन्थ लिखे थे.

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