सुशील सलाम, कांकेर। एक बेटी अपने पिता से मिलने के लिए 120 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर पहुंची और दोनों की मुलाकात महानदी के बीच हुई. पिता-पुत्री के रूप में देवी-देवता के इस मिलन के साक्षी बनने के लिए आसपास से काफी संख्या में लोग नदी पर पहुंचे. बेटी के पहुंचने की सूचना मिलते ही गांव में मेले जैसा माहौल बन गया.

हम बात कर रहे है कांकेर जिले के ग्राम पलेवा की. यहां के ग्रामीणों को बुधवार को लहरी (राजकुंवर) के आने की सूचना मिली, जो कि राजनांदगांव के पानाबरस क्षेत्र के ग्राम कुजांमटोला से 120 किलोमीटर लम्बा पैदल सफर कर अपने पिता से मिलने पहुंची. गांव में मुनादी पड़ते ही देवी-देवताओं के इस अनूठे मिलन को देखने लोग काफी उत्साहित थे. लोगों की भीड़ एकत्र होनी शुरू हो गई.

मंदिर में विरामान देव पटवन मुदिया देव (पिता) अपनी छोटी बेटी लहरी (राजकुंवर) के आगमन पर स्वागत के लिए बाजे-गाजे के साथ पांच किलोमीटर का पैदल सफर तय कर कुरना महानदी तट पहुंचे. जहां छोटी बेटी लहरी (राजकुंवर) महानदी के दूसरे छोर तक पहुंची हुई थी. इस दौरान महानदी में पूजा-अर्चना के बाद सर्वप्रथम नदी में पिता ने प्रवेश किया. देव पिता को अपनी ओर आता देख देवी रूपी बेटी भी नहीं रूकी और सीधे अपने पिता के चरण में झुक गई.

बेटी की तरह करते हैं देवी का सम्मान

बता दें कि पिता-पुत्री दोनों आंगादेव के रूप में हैं. पिता और बेटी के इस अद्भुत मिलन को जिसने भी देखा अपने आप को नहीं रोक पाये और मोबाइल के कैमरे से दुर्लभ नजारे को कैद करने लगे. इनमें से कुछ की आंख में पिता और बेटी के मिलन को देख खुशी के आंसू भी छलक पड़े, जिसके उपरांत लोगों ने पिता-पुत्री के रूप में दोनों आंगादेव को पुजारियों सहित भव्य स्वागत करते बाजे-गाजे के साथ अपने साथ लेकर चले गये. ग्रामीणों ने कहा कि यह हमारे देव की बेटी है तो हमारी भी बेटी है, हमने बेटी के समान ही देवी का सम्मान किया है.

तीन बेटियों में छोटी बेटी है लहरी

ग्रामीण हरीराम गोटी, जयतराम जुर्री ने बताया कि जीमेदारिन याया मंदर में विराजमान देव पटवन मुदिया की तीन बेटियां है, जिसमें पहली बेटी मानकुवंर, मंझली देवकुंवर जो कि कुरना में विरामान है. और छोटी बेटी लहरी (राजकुंवर) जो कि राजनांदगांव के पानबरस क्षेत्र के कुंजामटोला में विराजमान है.

रास्ते में केवल दो जगहों पर होता है विश्राम

ग्रामीण गजानंद कुंजाम, सुखदेव कुंजाम ने बताया कि लहरी (राजकुंवर) राजनांदगांव जिले के कुंजामटोला से 120 किलोमीटर का सफर तय कर पलेवा अपने पिता से मिलने पहुंचती है. पैदल यात्रा के दौरान वह केवल दो जगहों पर ही विश्राम करती है, जो कि ग्राम चिहरो और सिरसिदा है. यहां पहुंचने में लगभग ढाई से तीन दिन लगते है. पलेवा अपने पिता से मिलने के लिए भी लहरी (राजकुंवर) 8 मार्च सोमवार से निकली थी.

उफनती नदी को पार कर गई थी आंगादेव

स्थानीय घनश्याम जुर्री, हरीराम गोटी, जयतराम जुर्री आदि ने बताया कि वर्ष 2001 में सावन में नदी उफान पर थी. आंगादेव के रूप में लहरी (राजकुंवर) को नदी पार करनी थी, जो नदी के तेज बहाव में कूद गई और कुछ मिनट में नदी पार कर निकल गई.

देखिए वीडियो 

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