पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबन्द। लाल आतंक के साए में आदिवासी अंचल का विकास उलझ गया है. 27 किमी सड़क के निर्माण के लिए 7 साल में 24 बार टेंडर जारी किया गया, लेकिन दहशत ऐसी कि कोई भी ठेकेदार काम नहीं करना चाहता है. नतीजा दुर्गम पहाड़ी में बसे 2 पंचायत के 7 गांव में रहने वाले 2000 लोग सुविधाओं को तरस रहे हैं.

कभी अपनी सुंदर मनोरम क्षटा के लिए विख्यात आमामोरा को जिले का शिमला कहा जाता था, लेकिन अब इस इलाके में लाल आतंक का साया मंडराता है. यह हम नहीं सरकारी रिकार्ड बता रहा है. धवलपुर से कुकरार तक 31.65 किमी लंबी सड़क के लिए 2008 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना विभाग से 9 करोड़ 20 लाख की मंजूरी मिली थी. ठकेदार संजय अग्रवाल ने काम भी शुरू कर दिया था. 2009 से 2011 तक ठेका कम्पनी ने बड़ी मुश्किल से जरण्डी तक 4.70 किमी की सड़क बना पाया. इसी समय आमामोरा इलाके में लगातार नक्सली वारदात हुए. दहशत इतनी की ठेका कम्पनी अनुबंध के शर्तों को भारी नुकसान की परवाह किए बगैर तोड़ दिया. 26.95 किमी कार्य को अधूरा छोड़ मैदान छोड़ दिया.

तब से लेकर आज तक उक्त अधूरे काम के लिए मुख्य अभियंता, छत्तीसगढ़ ग्रामीण सड़क अभिकरण गरियाबन्द द्वारा 24 बार निविदा जारी किया गया, लेकिन कोई भी ठेका कम्पनी निविदा नहीं भरा. मामले में जिले के नए कलेक्टर प्रभात मलिक ने कहा कि उक्त अधूरे सड़क को प्राथमिकता में लेकर पूरा कराया जाएगा. जो भी ठेका कंपनी निविदा भरेगी उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी. इसके पूर्व भी संवेदनशील क्षेत्र के सड़कों को पुलिस प्रशासन की मुस्तैदी से सफलतापूर्वक पूर्ण कराया जा चुका है.

योजनाओं के पहुंच में सड़क बाधा

पहाड़ों के ऊपर आमामोरा व ओढ़ पँचायत मौजूद है. इनके आश्रित ग्राम कुकरार, नगरार, ओढ़, हथौड़ा डीह, मण्डलौर, जोकपारा में जनजातियों के 2000 लोग रहते हैं. यहां पहुंचने सड़क के नाम पर बड़े पत्थरों के ढेर व गड्ढों से गुजरना होता है. कुछ जगह अभी केवल पगडंडी है. सड़क के अभाव में इन तक सरकारी योजनाएं बड़ी मुश्किल से पहुंच पाती है. इन जगहों पर पदस्थ सरकारी कर्मी जाना नहीं चाहते. बरसात में राशन, पानी व स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भारी मशक्कत उठानी पड़ती है.

विकास की चुनौतियां

नक्सल प्रभावित इलाका

मंगलवार को गरियाबन्द जिले के सीमा से लगे भैसादानी कैम्प से कुछ ही दूरी पर नक्सलियों के हमले से 3 जवान शहीद हो गए थे. इस हमले के बाद एक बार फिर नक्सलियों ने इस इलाके में अपनी सक्रियता का प्रमाण दे दिया है. पिछला रिकार्ड देखे तो आमामोरा में 23 मई 2011 को नक्सली हमले से एडिशनल एसपी समेत 9 जवान शहीद हुए थे. जिले का यह सबसे बड़ा नक्सली हमला था. 2013 में आमामोरा के पूर्व सरपंच काजलसिंह को नक्सलियों ने मार दिया. 2 मई 2016 को नक्सली विस्फोट से 2 जवान शहीद हो गए थे. पहाड़ी इलाका व घने वनों के साथ साथ ओडिशा नुवापडा का सीमा क्षेत्र होने के कारण इस इलाके में हमेशा नक्सलियों की मौजूदगी रहती है.

लागत 200 गुना बढ़ा

31.65 किमी लंबी सड़क के लिए 2008 में 9.20 करोड़ मिली थी, जिसमें 4.70 किमी निर्माण में ठेका कम्पनी ने 4 करोड़ खर्च कर दिया. वर्तमान दर में बचे रुपये में बमुश्किल 4 किमी सड़क ही बन सकेगा. मशीनरी से लेकर मटेरियल का दर 200 गुना बढ़ गया है. 2019 में महज 10 फीसदी दर बढ़ा कर रिटेंडर किया गया तो विभाग ने इसे अस्वीकृत कर दिया.

आबंटन कौन देगा यह तय नहीं

काम को कराने के लिए सबसे जरूरी पैसा है, लेकिन यह कहां से आएगा, यह तय नहीं हुआ है. दरअसल, केंद्र सरकार एक बार ही इस योजना के लिए आबंटन जारी करती है. विभागीय अफसरों के मुताबिक, कार्य 7 साल पुराना है. बचे हुए 27 किमी को बनाने 16 करोड़ लगेंगे. योजना के इस पैकेज मद में साढ़े 5 करोड़ ही है. काम में विलंब हुआ तो अंतर की राशि राज्य सरकार के मद से आता है. ऐसे में अब तक राज्य सरकार से मद जोड़ने का कोई पहल नहीं हुआ है. राज्य सरकार से मंजूरी मिली तब जाकर काम पूरा हो सकेगा.

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