लक्ष्मीकांत बंसोड़, डौंडी। डौंडी ब्लॉक के देवपाण्डुम ग्राम प्रकृति की खुबसूरती और प्राचीन रहस्य को आपस में समेटे हुए हैं. एक तरफ बारहों महीने बहने वाला पानी बरसात के दिनों में झरने की शक्ल लेकर प्रकृति का अद्भुत नजारा पेश करता है. तो वहीं दूसरी ओर झरने की पीछे स्थित गुफा में धन गड़े होने की बात भी कही जाती है, जिसे पाने के लिए कई लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं.
ग्राम पंचायत रजही के आश्रित ग्राम देवपाण्डुम के ग्रामीण रामाधीन कुरेटी, झगरू राम कुरेटी बताते हैं कि पत्थरों के बीच बहता झरना पूर्णरूप से प्राकृतिक है. धोबी घाट से पानी का स्रोत बारह महीने प्रवाहित होता आ रहा है. झरना के नीचे देवदाहरा व आगे को धुटा मारदी नदी के नाम से जाना जाता है, जो खरखरा जलाशय में जाकर समाहित होता है. झरना के ऊपर दुर्गम पहाड़ में शीतला व दूसरे छोर पर दंतेश्वरी मूर्ति व अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गई है, लेकिन मंदिर का निर्माण नहीं किया गया है. आसपास के गांव के लोग पुरखों से इन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं.
गुफा के सामने स्थापित देवताओं की मूर्तियां
इस झरना के ठीक पीछे दो किमी दूर जंगल में एक और पत्थर के बीच से छोटी नदी बारह माह बहती रहती है. ऊपर पत्थरों के बीच सुरंग वाली गुफा है, इस गुफा के आरपार आज तक कोई नही जा पाया चूंकि अंदर घनघोर अंधेरा है, गुफा के अंदर दस मीटर साइड में एक सुरंग से लोग अंदर बाहर निकलने का आनंद लेते है, लेकिन मुख्य सुरंग कहा से कहा तक बना हुआ है इस रहस्य का राज- राज ही है. यह गुफा प्राकृतिक है अथवा इसे ब्रिटिश काल मे बनाया गया हो इसकी जानकारी किसी के पास नही है. इस गुफा सामने देवपाण्डुम ग्रामीण जोड़ा गरदा पाठ देव मूर्ति स्थापित कर ग्रामीण हरेली – होली पर्व व गांव बनाने वक्त सदियों से पूजा अर्चना करते आ रहे है.
गड़े धन का आज तक नहीं सुलझा रहस्य
देवपाण्डुम गांव से रामाधीन व झगरुराम के अनुसार उनके पीढ़ी दादा- परदादा व पिता द्वारा उन्हें अवगत कराया गया कि ब्रिटिश काल में राजा महाराजा और अंग्रेजों के मध्य छिड़ी जंग में उस समय राजा महाराजा द्वारा इस झरने में सोने-चांदी और धन को छिपा दिया था. यही वजह है गाहे-बगाहे लोग इन धन को हासिल करने के लिए खोजबीन करने पहुंच जाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि गांव के कुछ लोग गड़ा धन निकालने खुदाई करने लगे इस दौरान एक व्यक्ति पर देवता सवार हो गए, और तेल व तिल की मांग करते हुए कहा कि यदि गड़ा धन चाहते हो तो मानव नर की बलि देनी पड़ेगी. तब से लोगों ने मान लिया कि यहां देवताओं का वास है, तभी से देवपाण्डुम व 12 ग्राम के लोगों की आस्था देवी-देवताओं पर बनी हुई है.
पर्यटन स्थल बनाए जाने की हो रही मांग
कांक्रीट जंगल से निकल लोग प्राकृतिक जंगल में जाने की लोगों की बढ़ती लालसा की वजह से स्थल की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. देवपाण्डुम औैर आसपास के गांव के लोग भी चाहते हैं कि लोग इस प्रकृति के अद्भुत नजारे को स्वमेव आकर देंखे. यही वजह है कि स्थल को पर्यटन स्थल बनाए जाने की मांग की जा रही है. मंत्री अनिला भेड़िया के प्रतिनिधि पीयुष सोनी ने ग्रामीणों की भावनाओं से सहमति जताते हुए कहते हैं कि देवपाण्डुम को पर्यटन स्थल बनाया जाना चाहिए. इसके लिए शासन-प्रशासन की ओर से प्रयास किया जाएगा, जिससे जो धरोहर है, वह सुरक्षित रहे.