रायपुर. 24 फरवरी से शुरू होने जा रहे छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में निःशक्तजन घोटाला प्रकरण जोर-शोर से उठ सकता है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद राज्य शासन की ओर से दाखिल की गई रिव्यू पिटीशन पर सवाल उठाने वाली बीजेपी की भले ही सदन में सरकार को घेरने की रणनीति बन रही हो, लेकिन भीतरखाने से आ रही जानकारी कहती है कि सरकार ने उन तमाम दस्तावेजों का पुलिंदा तैयार कर रखा है, जिसमें तत्कालीन बीजेपी सरकार के कई रसूखदारों की भूमिका इस घोटाले के इर्द गिर्द पायी गई है. सूत्रों की माने तो इस प्रकरण से जुड़े तथ्य जिस तरीके से सामने आ रहे हैं. यह बहुचर्चित नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले की तरह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनता दिखाते हैं.

बताते हैं कि राष्ट्रीय विकलांग पुनर्वास कार्यक्रम के तहत राज्य श्रोत केंद्र की स्थापना किए जाने की नोटशीट साल 2002-03 में ही चलनी शुरू हो गई थी. तब सूबे में जोगी सरकार थी, लेकिन इस केंद्र का गठन साल 2004 में सत्ता में रमन सरकार के आने के बाद मुमकिन हो सकाण. राज्य श्रोत केंद्र के गठन के लिए तत्कालीन विभागीय मंत्री रेणुका सिंह, तत्कालीन वित्त मंत्री अमर अग्रवाल के साथ-साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह ने भी अपनी सहमति दी थी. दस्तावेजों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री के दस्तखत से राज्य श्रोत निःशक्तजन संस्थान की प्रबंध कार्यकारिणी समिति में सच्चिदानंद उपासने, प्रफुल्ल विश्वकर्मा, सुधीर देव और दामोदर गणेश को अशासकीय सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था. ऐसे में दस्तावेज में सामने आ रहे तमाम नाम भी सीबीआई जांच की जद में आ सकते हैं.

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राज्य श्रोत केंद्र के बायलाॅज के मुताबिक विभागीय मंत्री को ही अध्यक्ष होने के नाते प्रबंध कार्यकारिणी की बैठक आहूत किए जाने का अधिकार है. इसका गठन साल 2004 में छत्तीसगढ़ समाज कल्याण विभाग की तत्कालीन मंत्री रेणुका सिंह के अनुमोदन से किया गया थाण. साल 2005 में तत्कालीन राज्य मंत्री लता उसेण्डी ने कार्यकारिणी की बैठक ली थी. इसके बाद अध्यक्ष द्वारा बैठकों में समय न दिए जाने के कारण संस्थान की बैठकें आयोजित नहीं हो सकीण् साल 2018 में तत्कालीन विभागीय मंत्री रमशीला साहू ने लंबे अंतराल के बाद बैठक बुलाई थी. सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारी बताते हैं कि शपथ पत्र में इस संस्था को कागजों पर चलना बताया गया है, जबकि याचिकाकर्ता स्वयं इस संस्था में बाबू के पद पर कार्यरत था. विभाग से याचिकाकर्ता की पत्नी द्वारा संचालित स्वैच्छिक संस्था को प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ का राज्य अनुदान दिया जाता है. अनुदान की राशि में हेरफेर की शिकायत के बाद की गई जांच में गबन का मामला सामने आया था. सरकारी तंत्र की दलील है कि याचिकाकर्ता की पत्नी द्वारा संचालित स्वैच्छिक संस्था में हो रही घटनाओं का अधिकारियों द्वारा संज्ञान में लिए जाने और इस स्वैच्छिक संस्था के विरूद्ध कार्यवाही को रोकने तथा उच्च अधिकारियों और विभागीय अधिकारियों को बदनाम करने के लिए यह सोचा समझा षड़यंत्र रचा गया है.

गौरतलब है कि बिलासपुर हाईकोर्ट ने बीते 30 जनवरी को एक हजार करोड़ रूपए के घोटाला प्रकरण में सात आईएएस समेत 12 अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश सीबीआई को दिया था. इन अधिकारियों पर राज्य श्रोत केंद्र (एसआरसी) तथा फिजिकल रेफरल रिहैबिलेशन सेंटर (पीआरआरसी) के फंड से बीते दस सालों में करीब एक हजार करोड़ रूपए गलत तरीके से निकालने का आरोप लगा था. जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस पीपी साहू की खंडपीठ ने कुंदन सिंह ठाकुर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था. खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि सीबीआई एक हफ्ते के भीतर एफआईआर दर्ज कर संबंधित विभाग, संगठन व कार्यालयों के असली रिकार्ड अपने कब्जे में ले ले. हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने भोपाल में अपराध कायम कर जांच शुरू कर दी है.