रायपुर। पेसा कानून के नियम बनाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की यह पहल बहुत ही अच्छी हैं. जिसके तहत पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के निवासियों के साथ परामर्श की प्रक्रिया अपनाई जा रही हैं. मंत्री टीएस सिंहदेव के नेतृत्व में विशेषरूप से आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों, समाज के मांझी मुखियाओं के साथ बस्तर के कांकेर और फिर दंतेवाड़ा में सम्मेलन कर चर्चा की गई. इस परिचर्चा में पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव और स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम शामिल हुए.

मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि 1996 में कांग्रेस की सरकार ने स्थानीय स्वाशासन की इकाई गांव समाज अर्थात ग्रामसभा को मजबूत करते हुए आदिवासी समाज के पारंपरिक व रूढ़िगत अधिकारों, संस्कृति और आजीविका की रक्षा के लिए पेसा कानून बनाया था. हम जानते है कि विभिन्न कारणों से इसके नियम नहीं बनाए जा सके. पिछले 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार ने तो इस कानून के पालन की बजाए, इस कानून के प्रावधानों के विपरीत कार्य किया. लेकिन हमारी सरकार न सिर्फ पेसा कानून के पालन के लिए प्रतिबद्ध हैं, बल्कि आपके साथ व्यापक विचार विमर्श कर इसके नियम बना रही है, ताकि पेसा कानून की मूल मंशा धरातल पर उतर सके.

उन्होंने कहा कि पेसा कानून के नियम बनाते समय यह बात ध्यान रखनी होगी कि समाज के रूढ़िगत व्यवस्थाएं और मान्यताओं के अनुसार गांव की व्यवस्था, आपसी विवाद निपटाने की प्रक्रियाओं, संसाधनो के प्रवंधन के जो बेहतर उदहारण है. उन्हें नियमों में और अधिक ताकत दी जाए. ग्रामसभा का संचालन कैसे हो उसे कानून के मुताबिक अधिकार सम्पन्न बनाने के प्रावधान नियमों में स्पष्ट रूप आने चाहिए.

स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पेसा कानून और वन अधिकार मान्यता कानून दोनों में यह प्रावधान है कि ग्रामसभा का गठन पारा और टोला के स्तर पर होना चाहिए. इसके आदेश भी है, लेकिन अभी भी इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया. पेसा कानून के नियम में इस प्रावधान को और बेहतर और ठोस तरीके से रखा जाएगा, तो न सिर्फ इसका पालन होगा, बल्कि प्रशासनिक स्तर पर इसकी समझ बढ़ेगी. मुझे उम्मीद है आप लोगों की बातों को नियम की ड्राफ्टिंग करते समय सही तरीके से शामिल किया जाएगा.