रायपुर. मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित हुई डीकेएस घोटाले की जांच रिपोर्ट में कई चौकाने वाले खुलासे सामने आए है. इन खुलासों के बाद पूरे घोटाले की रिपोर्ट अब ईओडब्ल्यू के हवाले कर दी गई है. इस जांच में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के दामाद डॉ पुनीत गुप्ता में मुख्य रूप से दोषी ठहराया गया है और पूर्व जांच रिपोर्ट जिसमें उन्हें 50 करोड़ रुपए के घोटाले के संबंध में निलंबित किया गया था, इस जांच रिपोर्ट में मामला इससे (50 करोड़ से) कहीं अधिक का बताया गया है.

जांच रिपोर्ट के मुताबिक 50 करोड़ से अधिक की परियोजना होने के बावजूद विभाग द्वारा इस परियोजना का वित्तीय तथा अन्य कार्यों का किसी भी स्तर पर परीक्षण नहीं किया गया है. इतना ही नहीं इस प्रक्रियाधीन कार्यों की समक्षा भी नहीं की गई. नस्ती में संलग्न डीपीआर कब बनाया गया, यह जांच के बाद भी स्पष्ट नहीं हो सका. जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि डीपीआर में राशि रू. 104 करोड़ का उल्लेख है और लोन की राशि भी रूपये 64 करोड़ है जो 50 करोड़ रुपए से अधिक है, इसके बावजूद भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा मुख्य सचिव के अध्यक्षता में गठित PFIC (Project Formulation & Implementing Committee) के समक्ष अनुमोदन हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया.

अधिकारियों ने नहीं निभाई अपनी जिम्मेदारी

इस परियोजना की प्रांरभिक परिकल्पना 24.09.2013 के मंत्रिपरिषद में विषय / प्रस्ताव रखने से पूर्व तैयार किया गया, जिसमें मंत्रिपरिषद द्वारा बैठक 26.08.2015 विभागीय प्रस्ताव पर सैद्धांतिक सहमति दी गई. विभाग द्वारा मंत्रिपरिषद की बैठक 26.08.2015 में लिए गए निर्णय जिसमें सार्वजनिक निजी साझेदारी के आधार पर प्रदाय की जाने वाली सुविधाओं का मॉडल निर्धारित कर विभाग द्वारा मंत्रिपरिषद् को अवगत कराने के निर्देश दिए गए थे. लेकिन अधिकारियों ने इस आदेश का पालन नहीं किया. जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए तत्कालीन विभागीय अधिकारी जिम्मेदार हैं, परियोजना का मुख्य उद्देश्य सुपर स्पेश्यिलिटी अस्पताल बनाने के साथ-साथ पोस्ट ग्रेजेएट इंस्टीट्यूट एवं रिसर्च सेंटर बनाने का भी था, लेकिन इस संदर्भ में भी विभाग द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की और खाली, क्रय और सिविल कार्य पर ध्यान दिया गया. सीजएमएससी द्वारा बजट की उपलब्धता से अधिक के सामग्री की आपूर्ति की सामग्री का भी उचित मिलान किए बिना तथा नियमानुसार कटौती किए बिना करोड़ों रुपए का भुगतान किया गया.

बिना गुणवत्ता परीक्षण के सीजीएमएससी ने किया सिविल वर्क

डीकेएस निर्माण में सीजीएमएससी. द्वारा सिविल वर्क और उपकरणों की खरीदी की गई. लेकिन इसमें सीजीएमएससी द्वारा न तो कार्य की गुणवत्ता का परीक्षण उचित प्रकार से किया, न ही किए जाने वाले कार्रवाई और कार्यों का पर्यवेक्षण किया गया.

 डॉ पुनीत गुप्ता ने चलाई अपनी मनमानी

जांच रिपोर्ट में ये स्पष्ट लिखा गया है कि उपलब्ध अभिलेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि सीजीएमएससी या विभाग द्वारा कभी इसकी गंभीरतासे समीक्षा नहीं की और सीजीएमएससी और अस्पताल अधीक्षक (डॉ पुनीत गुप्ता) द्वारा ही अपने विवेक/इच्छा से परियोजना का कियान्वयन किया.

 50 करोड़ से कहीं अधिका का है ये घोटाला

मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली इस कमेटी की जांच रिपोर्ट कहती है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा गठित जांच समिति के जांच प्रतिवेदन में पूर्व अधीक्षक डॉ. पुनीत गुप्ता ने  अपने कार्यकाल में पद का दुरूपयोग कर 50 करोड़ रूपये की आर्थिक अनयमितता किए जाने के आधार पर आरोप लगाया गया है एवं तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया है जबकि पूरी परियोजना में राशि इससे बहुत अधिक है और इसके लिये वह मुख्य रूप से दोषी है.