रायपुर. अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कोरबा जिले के राताखार से सामाजिक बहिष्कार की घटना को लेकर गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को पत्र लिखा है. डॉ. मिश्र ने कहा कि कोरबा जिले में एक परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है, जिसके कारण यह परिवार परेशानी में फंस गया है. डॉ. मिश्र ने परिवार को न्याय दिलाने और शासन से सामाजिक बहिष्कार के विरोध में एक सक्षम कानून बनाने की मांग की है.

डॉ. दिनेश मिश्र ने बताया कि कोरबा के राताखार क्षेत्र में रहने वाले कहरा परिवार वह समाज ने बहिष्कृत कर रखा है. इसके कारण कई प्रकार की समस्याएं पेश आ रही है. परिवार के सदस्यों ने इस मामले को लेकर शिकायत की, लेकिन अब तक परिवार को कोई राहत नहीं मिल पाई है. डॉ दिनेश मिश्र ने जानकारी दी कि कोतवाली पुलिस थाना के अंतर्गत आने वाले राताखार क्षेत्र में गीता कहरा और उसके परिवार का समाज के द्वारा बिना किसी उचित कारण के कुछ महीने पहले बहिष्कृत कर दिया. गीता ने बताया कि स्थानीय स्तर पर शिकायत करने पर कहा गया कि बहिष्कार समाप्त कर दिया गया है, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. समाज द्वारा अब नई शर्त रखी जा रही है कि जुर्माना दिया जाए और सभी सदस्यों के पैर छूकर माफी मांगी जाए. बहिष्कार के कारण परिवार के सामने सामाजिक समस्याएं पेश आ रही हैं. उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों में नहीं बुलाया जाता और कहा जाता है कि वे समाज से छूटे हुए लोग हैं.

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि हमारे यहां सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. ग्रामीण अंचल में ऐसी घटनाएं बहुतायत से होती है, जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है व उसका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है. कुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर, तो कहीं आर.टी.आई. लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है. पूरे प्रदेश में 30 हजार से अधिक व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के शिकार हैं. इसी प्रकार हमारे प्रदेश में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है.

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डॉ. मिश्र ने कहा कि सामाजिक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका परिवार गांव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है. पूरे गांव-समाज में कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत परिवार से न ही कोई बातचीत करता है और न ही उससे किसी प्रकार का व्यवहार रखता है. उस  बहिष्कृत परिवार को हैन्ड पम्प से पानी लेने, तालाब में नहाने व निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, पंगत में साथ बैठने की मनाही हो जाती है. यहां तक उसे गांव में किराना दुकान में सामान खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है, जिसके कारण वह परिवार गांव में अत्यंत अपमानजनक स्थिति में पहुँच जाता है तथा गाँव में रहना मुश्किल हो जाता है. सामाजिक पंचायतें कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुर्माना, अनाज, शारीरिक दंड व गाँव छोड़ने जैसे फरमान जारी कर देती है.

डॉ. मिश्र ने आगे कहा कि सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या, प्रताडऩा व पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती रहती है. इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है इसलिए ऐसे मामलों में कोई उचित कार्रवाई नहीं हो पाती है न ही रोकथाम का कोई प्रयास होता है. सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आंकड़े को लेकर नेशनलक्राइम रिकार्ड ब्यूरो, राज्य सरकार, पुलिस विभाग के पास कोई अब तक रिकार्ड जानकारी नहीं है ऐसी जानकारी सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई है. जबकि ऐसी घटनाएं लगातार होती है. इस संबंध में सरकार सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम को आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के लिए पहल करें, ताकि अनेक प्रताडि़तों को न्याय मिल सके.

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