पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद. बात परेशानी की, बात विकास की और बात वादे की. कहानी गरियाबंद के 4 पुल, 15 साल, 35 करोड़ और 2.5 लाख वोटर्स की. जनता नेताओं को खरी-खोटी सुनाने बैठी है. ठेकदार सुस्त और नेता, अधिकारी मस्त हैं. करोड़ों रुपये ढांचे में तब्दील है और सरकारी खजाने को दीमक चाट रहा. बात उन इलाकों की है, जहां से जिला मुख्यालय काफी दूर है. 80 से ज्यादा आदिवासी गांव हैं, लेकिन मजाल है कि इन लोगों को मूलभूत सुविधाएं मिल जाएं. जनता त्रस्त है.ऐसे में अब नेताओं की मुश्किलें बढ़ेगी. वोटर्स किसी को वोट नहीं देने की चेतावनी भी दे रहे हैं. अब सवाल ये है कि 35 करोड़ स्वीकृत और निकासी के बाद भी आखिर पुल क्यों नहीं बन रहे हैं ?

नेताओं ने लुभाकर निकाल लिया काम

दरअसल, पुल के अभाव में परेशानी झेल रही जनता अब तीखे सवाल और जवाब के साथ बैठ गई है. मतदाताओं को मुख्यालय से जोड़ने वाले 35 करोड़ की लगात से बने रहे 4 महत्वपूर्ण पुल इस बार भी पूरे नहीं हुए. आरोप है कि नेताओं ने पिछली चुनाव में आश्वासन देकर अपना काम निकाल लिया था. इस बार फिर अब नेताओं को प्रश्न से गुजरना होगा.

बिंद्रानवागढ़ के मतदाता के तीखे सवाल

विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है. पार्टियां पब्लिक के बीच जाने से पहले घोषणा पत्र भी तैयार करने में लगे हैं. ऐसे ही तैयारी बिंद्रानवागढ़ के मतदाता भी कर रहे हैं, क्योंकि पिछले चुनाव में तेलनदी के सेनमूडा घाट के जिस पुल को पूरा करने चुनाव का बहिष्कार किया था. अमलीपदर रपटे पर पुल का वादा लिया था. खड़का नाले पर पुल निर्माण, बेलाट और चिखली नाले पर नए पुल की मंजूरी का वादा किया गया था. वह आज भी अधूरे ही नहीं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव के पहले तक पूरे हो जाएं, उस हाल में नही हैं.अधूरे पुल को लेकर मतदाताओं में आक्रोश है, जिसकी भड़ास वोट मांगने वाले नेताओं पर निकलेगी.

35 गांव के लोगों को हो रही परेशानी

अमलीपदर सुखतेल नदी के पार बसे आदिवासी बाहुल्य 35 से भी ज्यादा गांव में
बिंद्रानवागढ के लगभग 40 हजार मतदाता रहते हैं. 2018 में मतदाता से किए गए वायदे के बाद 2022 में कांग्रेस सरकार ने पुल निर्माण के लिए 7 करोड़ की मंजूरी दे दी. पीडब्ल्यूडी सेतु निगम के देख देख में काम एन जी एम्फिटेक नाम के ठेका कम्पनी को काम मिला.

जून 2023 में पूरा करना था पुल, ठेकेदार और जिम्मदार काट रहे मलाई

6 स्पॉन वाले 150 मीटर लंबी पूल को जून 2023 में ही पूरा कर लेना था. अनुबंध में मिले अवधी में कंपनी ने केवल 20 फीसदी काम ही पूरा किया है. कंपनी अब तक पुल का पूरा फाउंडेशन भी तैयार नहीं कर सकी है. शुरू में अफसर भी ठेका कम्पनी के सुस्त चाल पर पर्दा डालते रहे, लेकिन अब कम संसाधन वाले इस ठेका कंपनी की करनी से उठी सिर दर्द को विभाग नहीं झेल पा रहा है.

ठेकेदार डकारता गया रकम, मौत से रोजाना दो-दो हाथ

दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है विभाग के पास ऐसे में कछुआ गति पर विभाग की भी मौन सहमति बनी हुई है. काम शुरू करने से पहले ठेका कम्पनी को मजबूत वैकल्पिक मार्ग बनाना था, जिसके लिए 35 लाख का प्रावधान था. ठेकेदार ने वो भी नहीं किया. अब अधूरे रपटे में आए दिन भारी वाहनों का फंसना और दुर्घटना आम बात हो गई है.

2018 में चुनाव बहिष्कार हुआ था, सेनमुडा घाट पर पुल नहीं

देवभोग ब्लॉक के 10 पंचायत को मुख्यालय से जोड़ने के अलवा ओडिसा सीमा को सुगम करने वाला तेलनदी के सेनमुडा घाट पर बन रहे पुल भी 7 साल में पूरा नहीं हो सका है. 2016 में मंजूरी के समय 8 करोड़ लागत थी. रिवाइज स्टीमेट बना तो 325 मीटर लंबी पुल की लागत अब 11 करोड़ पार कर गई. 12 पिल्हर खड़े होने थे. इस बरसात तक 60 फीसदी काम पूरा हो गया है.

सिर्फ दावे का झुनझुना दे रहा विभाग

4 पिल्हर और स्लैब की ढुलाई हुआ नहीं है. विभाग का दावा है कि बरसात खत्म होते ही इस साल के दिसंबर माह तक काम पूरा हो जाएगा. इस पुल निर्माण के लिए पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव का ग्रामीणों ने बहिष्कार किया था.

ठेकदार ने सुपेबेड़ा को भी नहीं बख्शा

इसी तरह सुपेबेड़ा मार्ग पर खड़का नाला पर पीडब्ल्यूडी द्वारा 1 करोड़ 51 लाख के लागत से बन रहे पुल इस बरसात के पहले बन जाना था, लेकिन विभागीय उदासीनता के चलते अधूरा पड़ा है. इस बार चुनाव से पहले पुल नहीं बन सका तो फिर से नेता और जनप्रतिनिधि को ग्रामीण घेरेंगे.

बेलाट पर होगा बवाल, हेड के पेच में जा फंसा पुल

बारिश के दिनो मे 36 गांव के लोगों को अनुविभाग मुख्यालय आने में बेलाट नाला बाधा बन जाता है. इस नाले पर पुल के लिए लम्बे समय से मांग हो रही थी. समाज सेवक और तत्कालीन जनपद सदस्य स्वर्गीय राजेश पांडेय समेत दर्जन भर नेताओं ने पुल की मांग की. कांग्रेस सरकार ने मांग पूरी करने रुचि दिखाई. सरकार के निर्देश पर सेतु निगम ने 4 करोड़ 87 लाख का स्टीमेट भी बनाया.

पुल को ट्राइबल मद में लिया

2020 को घोषित बजट में पुल का नाम शामिल भी हो गया. पुल 2018 के चुनाव का बड़ा मुद्दा था. लिहाजा बजट में आते ही भूमिपूजन भी हो गया. बजट के बाद आगे की कार्यवाही लटक गई. सूत्र बताते हैं कि सामान्य ब्लॉक में बनने वाले पुल को ट्राइबल मद में ले लिया गया, जब आबंटन की बारी आई तो इसी हेड की तकनीकी त्रुटि का भेंट बेलाट जोर चढ़ गया. इस बार के चुनाव में नेता फिर से इस पुल को लेकर घिरे नजर आएंगे.

चिखली नाला पर पुल बनाने वाले को करेंगे वोट

निर्माणाधीन व बजट में आ चुके पुल के धरातल में आना बाकी है, लेकिन इस बीच चुखली नाला का पुल भी जनता का मुद्दा बना हुआ है. 4 साल पहले रपटा टूट जाने के बाद बरसात में चिखली नाला पार करने में घंटो फंसे रहना पड़ता है. आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में मतदान के पहले ग्रामीण संगठित हो जाते हैं. बताया जाता है कि पिछली बार के प्रत्याशियों ने टूटने के कगार पर मौजूद रपटे के बदले नए पूल का वादा किया था. अब रपटा टूट चुका है. इसलिए इस इलाके में मतदाता चिखली पुल को लेकर एक बार फिर नेताओं को घेरेंगे.

क्या कहते हैं नेताजी ?

BJP विधायक डमरूधर पुजारी ने कहा कि यहां की जनता भाजपा पर विश्वास जताती है. इसलिए सरकार बिंद्रानवागढ के साथ भेदभाव करती है. अधूरे पुल इस बात का प्रमाण भी है. जनता को हम बताएंगे कि सरकार की नाकामी है.

पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी संजय नेताम उपाध्यक्ष जिप ने कहा कि जनता को मांग के अनुरूप सरकार ने उन पुल पुलियों की भी मंजूरी दे दी, जिसके लिए भाजपा सरकार चक्कर लगाती थी. काम की मंजूरी दिलाकर हमने और हमारी सरकार ने वादा पूरा किया है. काम पूर्ण कराने की जवाबदारी अफसरों की थी.

जिम्मेदार बोले अधिकृत नहीं बोलने के लिए

अमलीपदर में निर्माणाधीन पुल को लेकर हमने पीडब्ल्यूडी सेतु निगम के कार्यपालन अभियंता वीके शुक्ला से बात की गई. उन्होंने मीडिया में अधिकृत बयान देने के लिए अपने आप को अधिकृत नहीं होना बताया, लेकिन उन्होंने कहा कि कार्य में विलंब के कई कारण हो सकते हैं, फिर भी विलंब को लेकर 6 प्रतिशत की पेनाल्टी ठेका कंपनी को लगया गया है.

मानकीगुड़ा में खड़का नाला पर बन रहे पुल को लेकर पीडब्ल्यूडी देवभोग एसडीओ मोहित साहू ने कहा कि काम अगस्त तक पूरा होना था. अनुबंध के मुताबिक स्लो प्रोग्रेस को लेकर पेनाल्टी की कार्यवाही की जा रही है.

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