अजयारविंद नामदेव, शहडोल। आदिवासी बाहुल्य जिले शहडोल में आज भी झाड़ फूंक, और गर्म सलाखों से दागने की कुप्रथा जारी है। अंधविश्वास के चलते इलाज के नाम पर मासूम बच्चों को गर्म सलाखों से दागने के दर्जनों मामले जिले से सामने आ चुके हैं। जिनमें 10 से अधिक मासूम अंधविश्वास की भेंट चढ़ चुके है। ऐसा ही एक मामला जिले के जनपद पंचायत सोहगपुर क्षेत्र  हरदी गांव से सामने आया है। यहां निमोनिया व सांस लेने में तकलीफ होने पर डेढ़ माह के बीमार मासूम दुधमुंहे बच्चे को 51 बार गर्म सलाखों से पेट , पीठ, चेहरे व हाथ पांव में दागा गया। इस वजह से बच्चे की हालत और गंभीर हो गई। हालात ज्यादा बिगड़ने पर मेडिकल कॉलेज शहडोल में बच्चे को भर्ती कराया गया जहां उसका उपचार जारी है।

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यह पूरा मामला जिले के जनपद पंचायत सोहगपुर के  ग्राम हरदी से सामने आया है। जहां डेढ़ माह का मासूम बच्चा प्रेम लाल को सांस लेने व पेट फूलने पर उसके बेरहम पिता प्रदीप बैगा ने 51 बार गर्म सलाखो से शरीर के हर एक अंग को दगवाया। जिससे मासूम प्रेम लाल की हालत ज्यादा बिगड़ गई। उसे आनन-फानन में उपचार के लिए मेडिकल कॉलेज शहडोल में भर्ती कराया गया, जहां मासूम जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है। आपको बता दे कि मासूम को डेढ़ माह के अंदर उसके परिजनों ने अंधविश्वास के फेर में  दूसरी बार गर्म सलाखो से दगवाया है। 

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वहीं  इस मामले में मासूम प्रेम लाल के पिता प्रदीप का कहना है कि बच्चे की तबियत खराब होने पर घर के बड़े बुजुर्ग पुरानी सोच रखने वालो ने बच्चें को गर्म सलाखो से दगवाया था। जिससे बच्चे की हालत बिगड़ने पर उसे उपचार के लिए मेडिकल कालेज लाया गया है।  

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बता दें कि इस तरह से बच्चों को शरीर पर जलाने को ग्रामीण-आदिवासी अंचल इलाकों में डॉम कहा जाता है, और यह एक अंधविश्वास है। जिसमें ग्रामीण मानते हैं कि यदि बच्चे को कोई बीमारी हो तो उसे डॉम लगा देने यानी गरम सलाखों या सुइयों से जलाने से बीमारी चली जाती है। और ऐसे मामले शहडोल में पहले भी कई बार सामने आ चुके है। गर्म सलाखों या सुइयों से जलाने के अंधविश्वास में कई बार बच्चों की जान आफत में आ चुकी है, लेकिन यह अंधविश्वास अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है।

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