पूरे छत्तीसगढ़ में हरेली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है । मनाया हमेशा से जाता था किन्तु पिछले दो वर्षों में इस त्यौहार को जो विस्तार मिला है , चाहे वह मनाने वालों की संख्या में हो , चाहे टाइप में -नागर जोतने वाले से लेकर आइ टी फ़र्म में काम करने वाले तक , चाहे भौगोलिक रूप से हो – सेंदरी से शिकागो तक , यह महत्वपूर्ण है । इस बार फ़ेसबुक पर मेरे पढ़े लिखे white collar जॉब वाले देश भर से परिचित भी हरेली मनाते हुए फ़ोटो डाल रहे हैं । शायद ही कोई WhatsApp समूह बचा हो जिसमें हरेली की शुभकामनाएँ न दी गयी हों ।छत्तीसगढ़ी गानों पर सूट बूट वाले भी सिर में पगड़ी बांध कर सड़कों पर नाच रहे हैं । छत्तीसगढ़ में उड़ीसा की संस्कृति क़ो मान्यता बड़ी उदारता से मिलती रही किंतु इस बार मशहूर सैंड कलाकार सुदर्शन पटनायक ने गोधन योजना को अपने सैंड आर्ट में प्रदर्शित करते हुए उड़ीसा के समुद्र तट पर हरेली का ज़िक्र भी कर दिया । इतना ही नहीं, बाज़ार भी संस्कृति का फ़ायदा लेने का प्रयास करने लगा है ।मैंने देखा कि एक मोबाइल रीचार्ज करने की दुकान वाले बंधु ने हरेली के अवसर पर विशेष छूट की भी घोषणा कर दी ।

संस्कृति एक सामाजिक विरासत है । संस्कृति की समृद्धि दरसल जीवन मूल्यों की समृद्धि होती है । संस्कृति को सशक्त करना मतलब अपनी पहचान को सशक्त करना होता है । पहचान जो आत्मविश्वास और मनोवैज्ञानिक मज़बूती देती है । एक प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत होने के बाद भी , अलग राज्य बनने के बाद भी , राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ एक सांस्कृतिक पहचान के लिए तरसता रहा। छत्तीसगढ़ के लोग ‘छत्तीसगढ़ी’के रूप में अपनी पहचान के लिए तरसते रहे ।

अर्थव्यवस्था के साथ इंटेग्रेशन और राजसत्ता का संरक्षण , लोकसंस्कृति को सार्वजनिक मान्यता के लिए आवश्यक हैं । अन्यथा लोकसंस्कृति अपनी पहचान और प्रतिनिधित्व के लिए गाँव और ग़रीबों तक ही सीमित रह जाती है । भूपेश बघेल जी ने लोकसंस्कृति को अर्थव्यवस्था का सहारा दिया और सरकार का संरक्षण भी।

गाय हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा इसलिए बनी रही क्योंकि वह अर्थव्यवस्था का हिस्सा भी थी । इस सरकार ने गाय को अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं । गाय के साथ किसानो को भी समृद्ध करने के महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं । प्रकृति से सहयोग वाली अर्थव्यवस्था ही सतत विकास दे सकती है और यही विकास जीवन मूल्यों को भी समृद्ध कर सकता है । दुर्भाग्यवश छत्तीसगढ़ बनने के बाद अपनाए गए प्राकृतिक संसाधनों के अधाधुँध उपयोग के मॉडल में यह सोच खो गयी थी । किसान न्याय योजना, गोधन न्याय योजना और इन आर्थिक सशक्तिकरण के प्रयासों को हरेली ज़ैसे त्योहारों से जोड़ कर इस सरकार ने प्रकृति सहयोगी विकास की दिशा में प्रशंसनीय कदम उठाए हैं ।

किंतु यह बात भी ध्यान रखनी होगी कि संस्कृति की सततता और सशक्तता आर्थिक समृद्धि के बिना सम्भव नहीं है ।और आज के समय में आर्थिक समृद्धि और विकास मात्र परम्परागत तरीक़ों से प्राप्त नहीं किया जा सकेगा ।

एक समय के बाद बिना राजसत्ता के संरक्षण के भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति , राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर पहचान बना सके । सिर्फ़ गाँव और ग्रामीणों की नहीं अपितु शहर और शहरियों की भी संस्कृति बन सके , इतनी सशक्त कि हम छ्त्तीसगढ़ी अमेरिका में भी जय जोहार से अपनी बात शुरू कर सकें , दुर्गा पूजा पर सुआ , कर्मा करें । इसके लिए ज़रूरी होगा कि छत्तीसगढ़ को आर्थिक रूप से भी समृद्ध बनाया जाए । कृषि को उद्योग में बदला जाए मैन्युफ़ैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर को भी बढ़ाया जाए और शिक्षा संस्थाओं की गुणवत्ता सुधारी जाए ।

बाबू रेवाराम जी ने 1838 में लिखा था
तिनमे दक्षिण कौसल देसा , जहां हरि औतु केसरी बेसा
तासु मध्य छत्तीसगढ़ पावन , पुण्य भूमि सुर मुनि मनभावन।

ऐसा छत्तीसगढ़ जहां देव ऋषि मुनि बसते हैं । आज हरेली के शुभ अवसर पर यही मनोकामना कि छत्तीसगढ़ आधुनिक विश्व की भी आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भूमि बने और छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया और सशक्त। जय छत्तीसगढ़ जय जोहार

लेखिका- डॉक्टर अनुपमा सक्सेना, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर