रायपुर। कांकेर में पत्रकार कमल शुक्ला और सतीश यादव के साथ हुई मारपीट की घटना की जांच के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सौंप दी है. 14 पन्नों के इस जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री ने बस्तर कलेक्टर और कांकेर कलेक्टर को प्रेषित कर दिया है. जांच रिपोर्ट में जहां पुलिस अधीक्षक की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं, वहीं मीडिया के लिए भी अपनी लक्ष्मण रेखा तय करने की बात कही गई है.
बता दें कि 26 सितंबर को कांकेर में पत्रकार कमल शुक्ला और सतीश यादव के साथ मारपीट की घटना हुई थी, मामले की जांच के लिए सरकार की ओर से एक अक्टूबर को पत्रकारों की छह सदस्यीय जांच समिति गठित की थी, जिसमें राजेश जोशी, रूपेश गुप्ता, अनिल द्विवेदी, शगुफ्ता शीरीन सुरेश महापत्र और राजेश शर्मा शामिल थे.
समिति की घटना, घटना की पृष्ठभूमि, तमाम पक्षों की संलिप्तता और भूमिका, एफआईआर और घटना का तथ्यात्मक विश्लेषण, पुलिस और प्रशासन की भूमिका और पब्लिक डोमेने में उपलब्ध सारे आरोपों की पड़ताल करना था. समिति ने सोशल मीडिया पर मौजूद पोस्ट और वीडियो को देखने के साथ 80 स्थानीय लोगों के बातचीत की. इसके बाद समिति ने अपनी 14 पन्नों की रिपोर्ट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को शनिवार को सौंप दी.
जांच समिति की सिफारिश
1. सतीश यादव और कमल शुक्ला के साथ हुई मारपीट की घटना बेहद गंभीर किस्म की है. खासकर कमल शुक्ला के मामले में जिस तरह के हालात में पूरा घटनाक्रम हुआ, उसका परिणाम कुछ भी हो सकता था. यह एक तरह से उत्तेजित भीड़ द्वारा हमले जैसी घटना थी. इस बात को ध्यान में रखते हुए मामले में और गंभीर धाराएं जोड़ने की जरूरत है.
2. पुलिस इस पूरे मामले में हालात को काबू करने में पूरी तरह से विफल रही. शहर में धारा 144 के दौरान कंटेनमेंट जोन में तीन घंटे तक सौ से ज्यादा लोगों की आक्रामक भीड़ जुटी रही. मारपीट हुई. थाने में मौजूद स्टाफ से मामले को संभालने में गंभीरतम चूक हुई दिखती है. पुलिस अधीक्षक का घटनास्थल्र पर अंत तक नहीं पहुंचना उनकी संवेदनशीलता को लेकर गंभीरतम सवाल खड़े करता है.
3. पत्रकार सुरक्षा कानून का अंतिम ड्राफ्ट प्रक्रियाधीन है. इस घटना ने कानून की जरूरत को एक बार फिर रेखांकित किया है. कानून को जल्द से जल्द लागू करने का प्रयास हो.
4. इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए एशसा लगता है कि पत्रकार कमल शुक्ला और सतीश यादव के खिलाफ आरोपियों द्वारा थाने में दर्ज करवाई गई एफआईआर अपने बचाव के लिए करवाई गई है.
मीडिया के लिए सिफारिश
इस बात को लेकर मीडिया के अंदर ही विमर्श होना चाहिए कि पत्रकार के रूप में लक्ष्मण रेखा कहां तक है. मीडिया का अपना दायित्व है, अपना दायरा है. लेकिन कांकेर में जो देखने को मिल्रा, उसमें कमल शुक्ला और श्री सतीश यादव ने पत्रकारिता से बेपटरी होकर अपनी निजी नाराजगी को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रस्तुत किया. इसके बाद ही दोनों के साथ गंभीर घटना घटित हुई, जो निंदनीय है.
समिति का सुझाव है कि मीडिया के अंदर भी इस पर विचार होना चाहिए कि पत्रकार के रूप में उनका दायरा कहां तक है, ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके. पूरे घटनाक्रम में अहं का टकराव स्पष्ट दिखता है. यह स्थिति संवादहीनता से से पैदा होता है. संवाद कायम करने की जिम्मेदारी प्रशासन, और शासन की होती है.