रोहित कश्यप, मुंगेली। देश में आपातकाल (Emergency) को लागू हुए आज 50 साल बीत चुके हैं, लेकिन उस दौर में हुए अत्याचार, नाइंसाफी और लोकतंत्र के गला घोंटने की कहानियां आज भी पीड़ितों के ज़ेहन में जिंदा हैं। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के मीसाबंदी द्वारिका जायसवाल उन्हीं चश्मदीद गवाहों में से एक हैं, जिन्हें 1975 में MISA के तहत गिरफ्तार किया गया था। आज भी उन 19 महीनों की यातनाओं को याद कर वह सिहर उठते हैं।


लल्लूराम डॉट कॉम न्यूज़ से खास बातचीत में द्वारिका जायसवाल ने बताया कि “मुझ पर रेलवे पटरी उखाड़ने का आरोप लगाया गया, जबकि मुंगेली में आज तक रेल पटरी है ही नहीं, न कभी ट्रेन आई, न स्टेशन बना।” लेकिन झूठे आरोप लगाकर उन्हें जेल भेजा गया। वहां की स्थिति अमानवीय थी। भोजन के नाम पर कंकड़-पत्थर से भरा चावल, सड़ी हुई दाल और बदबूदार सब्जी दी जाती थी, जिसे जानवर भी न खाएं।
गंभीर यातनाएं दी गई – मीसाबंदी
द्वारिका जायसवाल ने गंभीर शारीरिक यातनाओं का भी जिक्र किया। ये सब एक ऐसे देश में हो रहा था, जो लोकतंत्र और संविधान का रक्षक कहा जाता है। उन्होंने बताया कि उस दौरान मुंगेली जिले से 32 अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था।
इसलिए उठाई थी आवाज
द्वारिका जायसवाल ने कहा कि हमने देश के लोकतंत्र को ज़िंदा रखने के लिए आवाज़ उठाई थी, लेकिन उस समय की सरकार ने हमें देशद्रोही बना दिया। 19 महीने जेल की चारदीवारियों में बिताने के बाद भी उन्हें न माफ़ी मिली, न मुआवज़ा और न कोई सार्वजनिक क्षमा-याचना। वो कहते हैं, “शरीर से यातना मिट जाती है, लेकिन आत्मा पर जो चोट लगती है उसका निशान जीवनभर नहीं मिटता।”
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