फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को हर साल होली का पर्व मनाया जाता है. वहीं होली के ठीक एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन करने की परंपरा है और अगले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर रंगों की होली खेली जाती है. Holika Dahan को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इस साल होली का ये पावन पर्व 7 और 8 मार्च को मनाया जाएगा. हमारे पौराणिक आखायनो में दानव कुल में जन्मे ईश्वर भक्त बालक प्रहलाद की कथा से ही होली की शुरूआत हुई थी.

भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने हजारों वर्ष तक तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन किया था. उसकी तपस्या से प्रभावित होकर ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दिया था कि तुम ब्रह्मा जी द्वारा बनाए गए किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारे जाओगे, न रात में, दिन में, न धरती में, न आकाश में. Read More – Holi 2023 : क्या है Holika Dahan का महत्व, जानिए दहन में लगने वाली पूजन सामग्री, इसकी विधि और कथा …

इतने वरदान पाकर हिरण्यकश्यप देवताओं से अपने छोटे भाई हिरण्याक्ष के वध का बदला लेने के लिए परेशान करने लगा था. वह देवताओं का शत्रु मानकर देवताओं को तंग करने लगा. यज्ञ, कर्मकांड का विरोधी हो गया. जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को विद्या अध्ययन के लिए गुरुओं के पास भेजा. तो 5 वर्षीय बालक प्रहलाद भगवान श्री हरि का नाम स्मरण करने लगा. हिरण्यकश्यप को जब बालक प्रहलाद के इस व्यवहार का पता चला तो वह बहुत अधिक अचंभित हो गया.

भक्त प्रहलाद भगवान में बहुत आस्था रखता था और भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. उसके पिता हिरण्यकश्यप बहुत बड़े नास्तिक थे. वे भगवान को नहीं मानते थे. उसके पिता बहुत अकडू और घमंडी थे. वे खुद से बढ़कर किसी को भी नहीं मानते थे. जब उन्हें यह बात पता चली कि उनका बेटा प्रहलाद किसी विष्णु नाम के देवता की बहुत पूजा करता है, तो उन्हें यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई. उन्होंने प्रहलाद को बहुत बार समझाया कि वह विष्णु की पूजा करना छोड़ दे लेकिन प्रहलाद नहीं माना, क्योंकि उसके तो तन-मन व रोम-रोम में विष्णुजी बसे थे.

इस बात से आहत होकर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद को सबक सिखाना चाहते थे. जब सारी कोशिशों के बाद भी हिरण्यकश्यप प्रहलाद को विष्णु की भक्ति करने से रोक और उसे बदल नहीं पाए तो उन्होंने उसे मार देने की सोची. फिर उन्होंने एक दिन प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली.

होलिका को भगवान शंकर से वरदान मिला हुआ था. उसे वरदान में एक ऐसी चादर मिली थी, जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी. होलिका उस चादर को ओढ़कर और प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई. लेकिन वह चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई और प्रहलाद की जगह होलिका ही जल गई. इस तरह हिरण्यकश्यप और होलिका के गलत इरादे पूरे नहीं हो पाए. Read More – देश के आकर्षक और लोकप्रिय शहरों में से एक है अमृतसर, यहां घूमने लायक है बहुत सी जगह …

कौन थे प्रहलाद के दादा, दादी और माता

भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को तो हर कोई जानता है, लेकिन उनके दादा, दादी और माता के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. प्रहलाद के दादा का नाम कश्‍यप ऋषि और दादी का नाम दिति था. उनकी माता का नाम कयाधु था. माता विष्णु की भक्त थीं. कयाधु भक्त प्रहलाद की माँ ने अपने पति हिरण्यकश्यप से होशियारी से विष्णु का नाम जपवा लिया और इसके प्रभाव से ही कयाधु, ने प्रहलाद जैसे विष्णुभक्त को जन्म दिया.

क्या था पत्नि का नाम

भक्त प्रहलाद की पत्नि का नाम धृति था, जिससे महान पुत्र विरोचन का जन्म हुआ. विरोचन का विवाह बिशालाक्षी से हुआ था. जिससे महाबली और महादानी राजा बलि उत्पन्न हुआ, जो महाबलीपुरम के राजा बने. इन बालि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी. प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन से एक नई संक्रांति का सूत्रपात हुआ था. इंद्र से जहां आत्म संस्कृति का विकास हुआ वहीं विरोचन से भोग संस्कृ‍ति जन्मी. इसके पीछे एक कथा भी चलित है.

प्रहलाद की बुआ होलिका जहां आग में जलकर मर गई थी, वहीं दूसरी बुआ सिंहिका को हनुमानजी ने लंका जाते वक्त रास्ते में मार दिया था. भक्त प्रहलाद के तीन भाई थे- अनुहल्लाद, हल्लाद और संहल्लाद. भक्त प्रहलाद श्रीहरि विष्णु के परम भक्त होने के साथ ही महाज्ञानी और पंडित थे. भगवान नृसिंह के आशीर्वाद और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के मार्गदर्शन के चलते वे असुरों के महान राजा बन गए थे. प्रहलाद ने मोक्ष प्राप्त करके वैकुंठ में निवास किया.