रायपुर। आज महात्मा गांधी के साथ-साथ लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती है. लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे. वे 18 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे.

शास्त्री जी की 113वीं जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजय घाट जाकर उनकी समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की. उन्होंने ट्वीट कर कहा- ‘किसानों और जवानों को प्रेरणा देने वाले और राष्ट्र का कुशल नेतृत्व करने वाले शास्त्री जी को मेरा नमन. लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती पर याद कर रहा हूं.’ 

इनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था. पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद 9 जून 1964 को वे प्रधानमंत्री बने और अपनी मौत तक 11 जनवरी 1966 तक देश के पीएम रहे.

ईमानदारी के मिसाल थे लाल बहादुर शास्त्री

स्नातक करने के बाद वे भारत सेवक संघ से जुड़े. देशसेवा का संकल्प लेकर उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. वे गांधी जी के आदर्शों पर चलते थे. उन्होंने पूरा जीवन सादगी में बिताया. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. खासतौर पर 1921 के असहयोग आंदोलन, 1930 के नमक सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी अग्रणी भूमिका रही.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शास्त्री जी कई बार जेल भी गए. इलाहाबाद में रहते हुए वे पंडित जवाहरलाल नेहरू के निकट आए थे. जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में वे गृहमंत्री भी रहे.

भारत के आजाद होने के बाद शास्त्री जी उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव बने थे. गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में उन्हें पुलिस और परिवहन मंत्रालय सौंपा गया था. उन्होंने ही पहली बार महिला कंडक्टर्स की नियुक्ति की थी. साथ ही भीड़भाड़ को नियंत्रण में रखने के लिए लाठीचार्ज की जगह पानी की बौछार कराना शुरू किया.

1951 में वे अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी रहे.

जय जवान जय किसान

शास्त्रीजी ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया. इससे लोगों का मनोबल बढ़ा और देश एकजुट हो गया.

शास्त्री जी के प्रधानमंत्री रहते हुए हुआ भारत-पाकिस्तान युद्ध

जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे, तब भारत और पाकिस्तान का युद्ध 1965 में हुआ था. इसमें पाकिस्तान की करारी हार हुई थी. भारतीय सेना जीजान लड़ाकर लड़ी. भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने के लिए पाकिस्तान की सीमा के अंदर पहुंच गई थी. अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए युद्धविराम की अपील की थी.

रूस और अमेरिका ने उन पर काफी दबाव डाला. ताशकंद समझौते पर उन्होंने हस्ताक्षर किए, लेकिन जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे जमीन पाकिस्तान को वापस नहीं करेंगे. इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के रात में ही उनकी रहस्यमय परिस्थिति में मौत हो गई थी.

 

शास्त्री जी मौत का रहस्य आज भी बरकरार

ताशकंद समझौता भी इनके कार्यकाल में हुआ था. ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई थी. मौत का कारण हार्ट अटैक से होना बताया गया, लेकिन परिवार के लोगों ने इसे साजिश बताया और कहा कि उनकी मौत जहर देने से हुई. शास्त्री जी के निजी डॉक्टर आर एन चुघ और रूस के कुछ डॉक्टर्स ने उनकी मौत की जांच की, लेकिन सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है.

शास्त्री जी का अंत्येष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ की गई और इस जगह को विजय घाट का नाम दिया गया.

 

भारत रत्न से हुए सम्मानित

लाल बहादुर शास्त्री को मरणोपरांत 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया.