सतीश चाण्डक, सुकमा। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल क्या है इससे हर कोई वाकिफ ही होगा। बालोद नेत्र कांड, गर्भाशय कांड, नसबंदी कांड… एक के बाद एक कई कांड हो चुके हैं, कई लोगों की मौतें भी हो चुकी हैं, कई बच्चे अनाथ हो गए हैं।  इसके बावजदू प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा जरा भी गंभीर नजर नहीं आ रहा। प्रदेश में कई स्वास्थ्य केन्द्र ऐसे हैं जहां कोई डॉक्टर पदस्थ नहीं है इसके साथ ही हद तो यह है कि अस्पतालों में जीवन रक्षक दवाईयां भी नहीं है अगर कहीं हैं भी तो वह भी एक्सपायरी हो चुकी है। साफ लफ्जों में अगर कहा जाए तो प्रदेश सरकार अभी भी लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही है।

ऐसा ही कुछ हाल सुकमा जिले का है यहां का गोरली स्वास्थ्य केन्द्र एक ड्रेसर पर निर्भर है। वजह है कि यहां पिछले डेढ़ साल से कोई डॉक्टर ही नहीं पहुंचा। स्वास्थ्य केन्द्र के ऊपर आस-पास के दर्जन भर से ज्यादा गांव इलाज के लिए निर्भर है। यहां गरीब बीमार आदिवासियों का वही ड्रेसर करता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महिलाओं की डिलीवरी भी यही ड्रेसर ही कराता है। बताया जा रहा है कि अब तक यह  ड्रेसर चार से पांच डिलीवरी भी करा चुका है।

जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी. दूर स्थित गोरली पंचायत जहां स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल है। इस गांव की जनसंख्या लगभग 250 है लेकिन आसपास के करीब एक दर्जन छोटे-मोटे गांवो की जनसंख्या मिलाकर करीब ढाई हजार है। लेकिन इस इलाके का सबसे बड़ा स्वास्थ्य केन्द्र गोरली में ही स्थित है। बकायदा यहां भवन बना हुआ है। और भवन भी व्यवस्थित है। कुछ साल पहले ये इलाका नक्सल प्रभावित था लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां नक्सल गतिविधियां कम है या कहें कि न के बराबर। गांव में पचास सीटर आश्रम भी संचालित है।


डेढ़ साल से डाक्टर गायब 
यहां पदस्थ आरएमए डाक्टर नितिन मानिकपुरी पिछले डेढ़ साल से गायब है। वहां पर मौजूद ड्रेसर व गांव वालो ने बताया कि वो काफी समय से यहा नहीं आ रहे है। वे ब्लाक मुख्यालय में ही रहते है। जबकि यहां सभी के लिए क्वाटर भी बने हुए है। इससे पहले पदस्थ डाक्टर यहां रहकर इलाज करते थे। वहां रखा रजिस्टर जिसमें हर दिन करीब दस से पन्द्रह मरीजों का पंजीयन किया जाता है। और उनका बकायदा इलाज भी किया जाता है। ये इलाज डाक्टर की गैरमौजूदगी में ड्रेसर करता है।

आवश्यक दवाईयां भी हुई एक्सपायर 
स्वास्थ्य केन्द्र गोरली में रखे दवाईयों के काटून जिसमें अधिकांश दवाईयां एकस्पायर हो चुकी है। बच्चों को दी जाने वाली उल्टी, दस्त की दवा और ग्लूकोस भी एक्सपायर हो चुका है। अस्पताल में सर्प दंश के इलाज की दवा भी मौजूद नहीं है। जबकि यह इलाका जंगल और पहाड़ी से घिरा हुआ है। यहां सांप काटने के मामले काफी ज्यादा आते हैं। लेकिन उन्हें बाहर रेफर कर दिया जाता है। इसके अलावा टिटनेस का इंजेक्शन भी एक्सपायर हो चुका है।

पिछले कई सालो से अपनी सेवाएं दे रहा ड्रेसर 
यहां एकमात्र पदस्थ ड्रेसर सुरेश सोढ़ी जो इस नक्सल प्रभावित इलाके में पिछले 2002 से अपनी लगातार सेवाएं दे रहा है। पिछले ढाई सालों से ये मरीजों का इलाज कर रहा है। जब ये अवकाश पर अपने घर कांकेर जाते हैं तो यह स्वास्थ्य केन्द्र उस अवधि में बंद रहता है। इन्होंने बताया कि डाक्टर की गैरमौजूदगी में यहां इलाज करना उनकी मजबूरी है। वजह यह है कि आवागमन के साधन नहीं होने के बावजूद दूर-दराज से ग्रामीण पैदल चलकर इलाज कराने आते हैं।

यहां नेटर्वक नहीं, बहुत होती है परेशानी 
ग्रामीणों ने बताया कि यहां पहले डाक्टर पदस्थ थे लेकिन डेढ़ साल से कोई डाक्टर नहीं है। साथ ही अंदरूनी इलाका होने के कारण यहां फोन की सुविधा भी नहीं है। इसलिए ड्रेसर से इलाज कराना हमारी मजबूरी है। उनका कहना है कि आवागमन के साधन नहीं है। इसलिए बहुत परेशानी होती है। ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी विभाग के अधिकारियों को नहीं है। लेकिन कोई व्यवस्था सुधारने का प्रयास नहीं करता।
व्यवस्था सुधारने का किया जा रहा प्रयास 
सीएमएचओ विरेन्द्र ठाकुर ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में बताया कि काफी जगहों पर अव्यवस्था है। लेकिन जल्द ही व्यवस्था सुधारने का प्रयास किया जा रहा है। जल्द ही डाक्टर को पदस्थ किया जाएगा और ग्रामीणोें को सुविधाएं देने का प्रयास विभाग हरसंभव कर रहा है।