रायपुर। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में देश को साम्प्रदायिक खतरों से दूर रखने की हर संभव कोशिश की. धर्म निरपेक्षता के मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया. देश की एकता को साम्प्रदायिक ताकतों से चुनौती मिल रही थी. साम्प्रदायिक ताकतों को बढ़ने से रोकने के लिए ही उन्होंने 1975 में कड़े फैसले लिए. जिसे इमरजेंसी कहा जाता है. यदि गांधी ने उस समय यह कदम न उठाए होते, तो आज 45 साल बाद जो ताकतें सर उठा रही है, वो 1975 में ही सफल हो गई होती. इंदिरा गांधी ने अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और सिद्धांतो से कभी समझौता नहीं किया और इसके चलते ही उनकी शहादत हुई. यह विचार देशबन्धु कॉलेज दिल्ली में इतिहास विभाग के प्राध्यापक एवं नेशनल मूवमेंट फ्रंट के कन्वेयर डॉ. सौरभ वाजपेयी ने इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व, विचारों और उनके दृष्टिकोण विषय पर साइंस कॉलेज परिसर स्थित ऑडिटोरियम में जनसंपर्क विभाग द्वारा आज आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए.

प्रोफेसर डॉ. सौरभ वाजपेयी ने 1971 में भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश निर्माण में इंदिरा गांधी की भूमिका और इसके बाद की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी ने इस दौरान अमेरिका, इंग्लैंड और चीन की परवाह न करते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों की पक्षधर रही. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान देश अपने निर्माण के तीस साल के भीतर दो टुकड़े में बट गया, इससे यह सिद्ध होता है कि धर्म, राष्ट्र की बुनियाद नहीं है. उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद सभी धर्माें, जातियों और सम्प्रदायों से मिलकर बनने वाला राष्ट्रवाद है. इंदिरा गांधी जैसी राष्ट्रवादी नेता, प्रधानमंत्री, उनके जैसी सूझ-बूझ अपने आप में विरासत है. उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक ताकतों का पुष्टिकरण नहीं, बल्कि उनके खिलाफ लड़ना होगा. यह विचार की लड़ाई है, व्यक्ति से नहीं. उन्होंने कहा कि आज यह संकल्प लेने का दिन है कि हम इंदिरा गांधी की शहादत, त्याग की परंपरा का अनुसरण करें.

भारत रत्न इंदिरा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित फ़ोटो प्रदर्शनी का शुभारंभ

संगोष्ठी में पूर्व केन्द्रीय मंत्री भक्त चरण दास ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शहादत दिवस पर उन्हें नमन किया. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवनवृत पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि देश का नेतृत्व ऐसे समय में संभाला जब कई कठिन चुनौतियां विद्यमान थी. देश में खाद्यान्न की कमी और गरीबी थी. उन्होंने इंदिरा गांधी के दस और बीस सूत्रीय कार्यक्रम और हरित क्रांति के परिणाम के बारे में विस्तार से अपनी बात रखी.

कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे और विधायक मोहन मरकाम ने कहा कि हम सबको सरदार पटेल और इंदिरा गांधी के रास्ते पर चलकर साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़नी है. देश में साम्प्रदायिक ताकतें ताकतवर हो गई है. आज इनके खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लेना पड़ेगा. उन्होंने इस मौके पर सरदार पटेल का स्मरण करते हुए कहा कि आज भारत माता का स्वरूप जो हम देख रहे हैं, इसका श्रेय सरदार पटेल को जाता है. उन्होंने रियासतों का विलीनीकरण कर देश का एकीकरण किया. देश में लोकतंत्र की स्थापना में वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम किया.

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