गरियाबंद। विश्व भर में उच्चतम क्वालिटी का कुसमी लाख देवभोग परिक्षेत्र के जंगलों में होता है. अब तक ढाई से 3 हजार पेड़ों पर परम्परागत पद्धति से उत्पादन हो रहा था. वन विभाग 22 हजार पेड़ चिन्हाकित कर लाख उत्पादन तकनीकी विशेषज्ञ से प्रशिक्षण दिलवा रही है. चार दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण शिविर में प्रदेश के 12 वनमण्डलों के 200 किसान पहुंचे.

18 अक्टूबर से देवभोग परिक्षेत्र कार्यालय में राज्य स्तरीय कुसमी लाख प्रशिक्षण का आयोजन वन विभाग के वन धन ईकाई द्वारा कराया जा रहा है. प्रदेश के जगदलपुर, सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, धमतरी, जशपुर, भानु प्रतापपुर, धरमजयगढ़, कांकेर, कोरबा समेत 12 वनमण्डल के लगभग 200 कृषक के अलावा देवभोग परिक्षेत्र के 12 समिति सदस्य और प्रबंधकों को तकनीकी पद्धति से कुसमी लाख की खेती करने का तरीका बताया गया.

डीएफओ मयंक अग्रवाल की मौजूदगी में लघु वनोपज संघ के उप प्रबंध संचालक अतुल श्रीवास्तव, जूनियर एक्जीक्यूटिव कोमल कंसारी के नेतृत्व में यह प्रशिक्षण लाख उत्पादन के विशेषज्ञ डॉ. ए के जायसवाल द्वारा प्रोजेक्ट प्रजेंटेशन के माध्यम से कुसमी लाख के उत्पादन के हर पहलुओं को बरीकी से बताया जा रहा है. किसानों के पूछे सभी सवालों के जवाब देकर उन्हें तकनीकी खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया गया. प्रशिक्षक घुमरापदर व खरीपथरा में कि गई कूसम पेड़ के लाख की खेती अलावा दरलीपारा में कि गई बेर पेड़ की लाख खेती का भ्रमण करवा कर खेती की बारीकियों को भी बताया गया.

गरियाबंद वन मण्डल में कुसमी लाख की परम्परिक खेती वर्षो से हो रही है, लेकिन डीएफओ मयंक अग्रवाल के प्रयास से अब इस लाख की खासियत पर सरकारी मुहर लग गई. डीएफओ अग्रवाल ने बताया कि 2021 के पहले तक ढाई से 3 हजार कुसम के पेड़ में पंरपरागत तरीके से लाख की खेती गिने चुने किसान कर रहे थे. हमने सर्वे कराया तो यंहा कुसुम के 22 हजार पेड़ मौजूद है, जहां खेती की भारी सम्भावनाएं है. जिन जिन स्थानों पर किसान तैयार होंगे. वहां लाख की खेती कराई जाएगी.

डीएफओ ने बताया की सरकार ने लाख उत्पादन को खेती का दर्जा दिया है. इसके उत्पादन के लिए धान फसल की तरह बगैर ब्याज के केसीसी लोन भी मिलेगा. सलाना 10 हजार क्वी औसत उत्पादन था. अब इसे बढ़ावा देने किसान व महिला समूहों को विभिन्न स्तर पर प्रोत्साहित किया जा रहा है. 2022 में लाख प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना देवभोग में हो जाएगी. एक पेड़ में अब तक ढाई से तीन क्विंटल पैदावरी होती थी. तकनिकी खेती से उत्पादन 5 क्विंटल तक पहुंच सकेगा.

प्रशिक्षण दे रहे वैज्ञानिक डॉ. ए के जायसवाल ने कहा कि शिविर के पहले इलाके का बारीकी से अध्ययन किया गया है. लाख की खेती के लिए अनुकूल मौसम है. यहां पाए जाने वाले लाख विश्व के सबसे उच्चतम क्वालिटी में सुमार है. देश में राजस्थान, कोलकाता से लेकर विदेश में जर्मनी में इसकी भारी मांग है. कमियां खेती के तरीके में थी. पेड़ का चयन, शत्रु किट की पहचान, समय पर बिहन (बीज) लाख की उपलब्धता अज्ञानता वश किसानों में नहीं थी. इस प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें हर पहलुओं की जानकारी दी जा रही है. 1 किलो बीज में 5 किलो लाख के उतपादन के बजाए अब अधिकतम 8 किलो का उत्पादन किसान ले सकेंगे. वन विभाग के प्रयासों से खेती करने वाले किसान व लाख लगाए जाने वाले पेड़ों की संख्या में बढ़ोतरी हुई, तो आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार होगा.

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