कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मंत्री जी मेरी बूढ़ी दिव्यांग मां को ट्राई साइकिल दिलवा दीजिए, यह गुहार लगाने एक बेटा चिलचिलाती धूप में अपनी मां को पीठ पर लादकर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बंगले पहुंचा। मूंगफली बेचकर गुजारा करने वाला कालीचरण पांडे नाम का यह व्यक्ति सागर ताल के पास रहता है, उसकी बूढ़ी मां को मेडिकल बोर्ड से दिव्यांग प्रमाणित किया जा चुका है, ऐसे में उसे नियमानुसार उपलब्ध होने वाली ट्राईसाइकिल कई महीनों की कोशिशों के बावजूद नहीं मिल सकी। आर्थिक रूप से परेशान कालीचरण के पास अपनी मां को अपने घर से केंद्रीय मंत्री के सरकारी बंगले तक ले जाने के लिए रुपए नहीं थे। ऐसे में वह अपनी बूढ़ी दिव्यांग मां को 10 किलोमीटर तपती हुई धूप में पीठ पर लादकर मंत्री के बंगले पर पहुंचा, लेकिन मंत्री से मुलाकात नहीं हो सकी और उसे निराश लौटना पड़ा।

कालीचरण का कहना है कि ट्राई साइकिल के लिए उनकी बूढ़ी दिव्यांग मां से जुड़े सभी दस्तावेज उनके पास है, मेडिकल बोर्ड ने भी ट्राई साइकिल दिये जाने की अनुशंसा की है, उसके बावजूद उनकी माँ को कई बार चक्कर काटने के बाद भी ट्राई साइकिल नहीं मिली है क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश सरकार में ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर के बंगले के भी तीन बार चक्कर लगाए, लेकिन मदद नहीं मिली।यही वजह रही कि पास में ही मौजूद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बंगले पर गुहार लगाने वह अपनी बूढ़ी मां को पीठ पर लादकर पहुंचा था, उसके पास अपने सागर ताल स्थित घर से मन्त्री के बंगले तक आने के लिए रुपए नहीं थे क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति खराब चल रही है, वह किराए पर हाथ ठेला लेकर मूंगफली बेचता था लेकिन कुछ रुपए की उधारी के चलते मालिक ने वह ठेला भी छीन लिया।

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जिस समय कालीचरण अपनी मां को लेकर वापस घर की ओर जा रहा था उसी दौरान सड़क से गुजर रहे एक सामाजिक कार्यकर्ता गणेश समाधिया उनकी मदद के लिए आगे आए। उन्हें अपनी कार से घर छोड़ने की बात कही लेकिन खुद्दार बूढ़ी मां ने कार में बैठने से इंकार कर दिया। जिसके पीछे उसने वजह बताई कि वह गरीब है कार में नहीं बैठना चाहती। ऐसे में दोनों को ऑटो रिक्शा में बिठाकर घर पहुंचाया। समाजिक कार्यकर्ता उन्हें आर्थिक रूप से तात्कालिक मदद के साथ जल्द ही ट्राई साइकिल और बेरोजगार बेटे को रोजगार दिलवाने का भी वादा किया है।

गौरतलब है कि सभी जरूरी दस्तावेज होने के बावजूद चिलचिलाती धूप में एक बेटे द्वारा अपनी बूढ़ी दिव्यांग मां को पीठ पर लाद एवं 10 किलोमीटर पैदल चलकर मंत्री के दरवाजे तक आना कहीं ना कहीं सिस्टम की एक बड़ी लापरवाही को दर्शाता है।

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