पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। खनिज विकास निगम अध्यक्ष गिरीश देवांगन बिन्द्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र के देवभोग में विशाल किसान सम्मेलन को संबोधित किया. भाजपा के कुशासन काल को याद दिलाया. साथ ही भूपेश सरकार की योजनाओं को गिनाया. इसी बीच दिग्गज कांग्रेसी नेता के घर चाय पर चर्चा की सियासी कहानी काफी चर्चे में रही.
इस दौरान देवभोग में विशाल किसान सम्मेलन में गिरीश देवांगन ने कहा कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस को हराने की भूल को नहीं दोहराने की अपील की. उन्होंने कहा कि पूर्व में किए गए बेहतर प्रयासों के बावजूद बिन्द्रानवागढ़ सीट बार बार हारे हैं, लेकिन अब आगामी चुनाव में एकजुट होकर हर हाल में 2023 चुनाव जीतना है.
पुराने कांग्रेसी नेता के घर गिरीश
गिरीश देवांगन तय समय से 1 घंटा लेट पहुंचे. जल्दी लौटना भी था, इसलिए अन्य वक्ताओं को सम्बोधन के लिए काफी कम समय दिया गया. विश्राम गृह मे भोजन की व्यवस्था थी, लेकिन कार्यक्रम खत्म होते ही पुराने कांग्रेसी नेता महेश्वर सिंह कोमर्रा (85 वर्ष) के घर चाय पीने चले गए. वहां आधे घंटे का समय दिया. पुराना साथी थे महेश्वर कोमर्रा, जिन्हें गमछा देकर सम्मानित भी किया.
कोमर्रा ने अपने मंझले बेटे लोकेंद्र कोमर्रा (ठाकुर) से भेंट कराया. गिरीश देवांगन लोकेंद्र से परिचित नहीं थे. कोमर्रा ने अपने बेटे के बारे में उन्हें विस्तार से बताया. वर्तमान में लोकेंद्र रुद्री पोलिटेक्निक कॉलेज के प्रिंसिपल हैं. बताया कि 52 वर्षीय सुपुत्र गोड़वाना महासभा के राष्ट्रीय सचिव का दायित्व सम्भाल रहे हैं.
चाय की चर्चा इसलिए
गिरीश देवांगन की मौजूदगी में राजनीति से जुड़ी भले ही कोई बात नहीं हुई, लेकिन अब यह चाय चर्चा का विषय बन गई है. साल भर पहले से लोकेंद्र राजनीति में उतरने का मन बनाए हुए हैं. जल्द ही नौकरी से इस्तीफा देंगे.
पिता महेश्वर कोमर्रा ने कहा कि आरआई की नौकरी छोड़ कर 1985 में वे कांग्रेस का दामन थाम लिए थे. 1990 में उन्हें बिन्द्रानवागढ़ से टिकट मिली थी. जनता दल की लहर थी, इसलिए वे 4 हजार वोट से हार गए थे, तब से लगातार कांग्रेस पार्टी अपनी सेवा दे रहे हैं.
कोमर्रा ने कहा कि वे चाहते है कि उनकी सेवा का प्रतिफल उनके सुपुत्र को मिले. पार्टी अवसर देगी तो लोकेन्द्र राजनीति में आएगा. साल भर से लोकेंद्र का क्षेत्र और समाज के बीच सक्रियता बढ़ गई है. इस बीच गिरीश देवांगन का कोमर्रा के घर पहुंचने से अब राजनीतिक गलियारे में नए चेहरे को लेकर चर्चा ने तूल पकड़ लिया है.
भाजपा का अभेद्य गढ़ बन गया बिन्द्रानवागढ़
बिन्द्रानवागढ़ सीट पर जनसंघ के जमाने से भाजपा का कब्जा था. आम चुनाव आरम्भ होने के बाद से 1985 में ईश्वर सिंह पटेल, 1993 में ओंकार शाह, फिर 2003 में ओंकार शाह कांग्रेस के विधायक बने, जबकि 7 बार से ज्यादा भाजपा विधायक इस सीट पर काबिज रहे.
पहले बिन्द्रानवागढ़ को केवल भाजपा का गढ़ कहा जाता था, लेकिन अंतिम 3 चुनाव लगातार भाजपा जीत कर आई तो इसे अभेद्य गढ़ कहा जाने लगा. लंबे समय बाद कांग्रेस के पास अपनी सरकार की योजनाए हैं. ऐसे में 2023 के चुनाव में सीट को हर हाल में हासिल करने का लक्ष्य बनाया गया है.
बिन्द्रानवागढ़ में खेमे बाजी हावी है. पूर्व दोनों प्रत्याशी 2023 के प्रबल दावेदार भी हैं, लेकिन ऊपर तक जा रही खेमेबाजी की रिपोर्ट से हाईकमान नए चेहरे पर मुहर लगा सकता है.
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