नई दिल्ली. रेलवे यात्रा के दौरान बैग, मोबाइल या अन्य सामान चोरी की घटनाएँ अक्सर होती हैं, पर रेलवे इस पर ध्यान नहीं देता. एक ऐसे मामले में, एक यात्री ने उपभोक्ता अदालत में रेलवे को चुनौती दी. तीस हजारी कोर्ट में, जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने उत्तर रेलवे को यात्री को ब्याज सहित हर्जाना देने का आदेश दिया.

आयोग के अध्यक्ष दिव्य ज्योति जयपुरियार और सदस्य अश्वनी कुमार मेहता ने उत्तर रेलवे को शिकायतकर्ता को एक माह के अंदर सात सितंबर 2017 से अब तक 1.20 लाख रुपये और 9% ब्याज का भुगतान करने का आदेश दिया. साथ ही, शिकायतकर्ता को मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए 25,000 रुपये का मुआवजा भी देने का आदेश था. यात्री ने बताया कि उनकी ट्राली बैग महानंदा एक्सप्रेस से दिल्ली से पटना की यात्रा के दौरान चोरी हो गई थी और इस चोरी में उनके लगभग 1.20 लाख रुपये की मूल्य का सामान छिन गया था. उन्होंने मानसिक प्रताड़ना के लिए 50,000 रुपये की मांग की थी. आयोग ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनकर निर्णय दिया कि रेलवे की असुरक्षित सेवा के कारण यात्री को नुकसान उठाना पड़ा है.

शिकायतकर्ता का आरोप- रेलवे की लापरवाही के कारण ही चोरी हुआ सामान

शिकायतकर्ता के मुताबिक ट्रेन में उनके चोरी हुए ट्राली बैग में कपड़े, जेवर समेत कुछ दस्तावेज थे. रेलवे की लापरवाही से ही सामान चोरी हुआ था. उन्होंने कोच के टीटीई को प्राथमिकी करने के लिए कहा, लेकिन, उन्हें कुछ नहीं बताया गया. इसके बाद रेलवे पुलिस बल की तरफ से सात सितंबर, 2014 को केवल चोरी की पुष्टि करते हुए एक पत्र मिला. इस पत्र में प्राथमिकी के बारे में कुछ भी नहीं था. उन्होंने 23 अप्रैल, 2015 को रेलवे पुलिस में प्राथमिकी कराई.

रेलवे की दलील सामान के नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं

आयोग ने उत्तर रेलवे को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया था. रेलवे ने दलील दी कि घटना शिकायतकर्ता की लापरवाही के कारण हुई है. रेलवे कर्मचारी सामान के नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं है क्योंकि न तो सामान रेलवे को उसकी सुरक्षित अभिरक्षा के लिए सौंपा गया था और न ही रेलवे कर्मचारी को शिकायतकर्ता के सामान के बारे में पता था. शिकायतकर्ता का खोया सामान रेलवे के क्लाक रूम में भी नहीं था.