रायपुर। छत्तीसगढ़ी राज्य बने हुए 17 साल हो गए, छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग गठित किए 10 साल हो गए और छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिए 9 साल हो गए, लेकिन इसके बाद छत्तीसगढ़ी आज भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है. छत्तीसगढ़ी राजभाषा के साथ सरकारी खिलवाड़ जारी है. करोड़ों रुपये प्रचार-प्रसार में खर्च करने, प्रशिक्षण देने और आयोग बनाकर लाभ देने की कोशिश के बाद भी छत्तीसगढ़ अभी तक ना तो सरकारी काम-काज की भाषा बन पाई और ना ही शिक्षा का माध्यम बन पाया है.

छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच और छत्तीसगढ़िय क्रांति सेना की ओर से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए बीते कई सालों से आंदोलन चल रहा है. छत्तीसगढ़ी राजभाषा को सरकारी काम-काज और शिक्षा की भाषा बनाने के लिए छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक में प्रदर्शन हो चुका है. केन्द्रीय मंत्रियों और शिक्षा आयोग की ओर से मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए दिए गए निर्देशों के बाद राज्य सरकार की ओर से इस पर अमल नहीं किया है.

संघ के पूर्व प्रचारक और छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संयोजक नंदकिशोर शुक्ल सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी को वर्मतान सरकार ने एक मजाक बनाकर रख दिया है. प्रचार-प्रसार और प्रशिक्षण के नाम सिर्फ ढकोसला किया जा रहा है. प्रदेश के स्थानीय भाषा और बोलियों को खत्म करने का काम सरकार की ओर से सुनियोजित तरीके से की जा रही है. छत्तीसगढ़ी के साथ गोंडी, हल्बी, कोड़ूक जैसी समृद्ध भाषा है. बावजूद इसके प्राथमिक शिक्षा स्थानीय लोगों को उनकी मातृभाषा में नहीं दी जा रही है.

छत्तीसगढ़िया महिला क्रांति सेना की अध्यक्ष लता राठौर का कहना है कि सरकार ने छत्तीसगढ़ी को सरकारी विज्ञापनों की भाषा बना रखी है. सरकार छत्तीसगढ़ी के नाम पर सिर्फ अपनी सत्ता के लिए काम करती है. हमें पता है कि अब भाषा के लिए जंग जरूरी है. लिहाजा हम कई चरणों में अलग- अलग अभियान चला रहे हैं. हमें मालूम है कि अब अपने अधिकार की लड़ाई लड़नी है. छत्तीसगढ़ी अस्मिता की मांग अब राज्य में बिना संघर्ष के पूरी नहीं होगी. फिलहाल हम तमाम जगहों पर जाकर छत्तीसगढ़ी अस्मिता अभियान चला रहे हैं. ये अभियान 28 नवंबर तक चलेगा. अभियान के बाद एक व्यापक रणनीति बनाकर छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए जन आंदोलन छेंडेंगे.