रायपुर. राजभवन से न्याय की गुहार पर 230 किमी पैदल चलकर आये मानपुर के आदिवासी सोमवार की शाम राज्यपाल से मिले और अपनी पांचवी अनुसूची के संवैधानिक अधिकारों व वनाधिकारों से जुड़ी समस्याओं को उनके समक्ष रखा और ज्ञापन सौंपा.

राजनांदगांव जिले के मानपुर ब्लाक से 11 नवंबर को पैदल यात्रा पर निकले सैकड़ों आदिवासियों का रायपुर पहुंचने तक जगह जगह जोरदार स्वागत हुआ. तीर कमान और राशन का समान लिए, आदिवासी अधिकारों के नारे लगाते हुए हफ्ते भर में रायपुर पहुंचे.चूंकि राज्यपाल से मिलना प्रस्तावित था इस हेतु आदिवासियों के प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता मानपुर निवासी विवेक कुमार सिंह 2 दिन पूर्व राज्यपाल से राजभवन में भेंट कर एवं कार्यक्रम का पर्चा सौंप कर विस्तृत जानकारी देकर समय मांगा था, जिसे राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया.

इसके बाद 17 नवंबर की शाम रायपुर पहुंचने के बाद 18 नवंबर दोपहर तक विभिन्न आदिवासी संगठनों द्वारा आयोजित वन स्वराज आंदोलन सभा में भाग लिया.18 नवंबर को दोपहर बाद धरना स्थल बूढ़ातलाब से पद यात्री राजभवन की ओर चल पड़े. आदिवासियों की यात्रा को सप्रे शाला के पास सुरक्षाबलों ने रोक लिया और आगे धारा 144 का हवाला देते हुए राजभवन से अनुमोदित आदिवासियों के 13 प्रतिनिधियों को ही आगे जाने दिया. बाकी को सड़क पर ही बिठाये रखा.

राज्यपाल अनुसुइया उइके को चर्चा में दो सौ आदिवासियों के सड़क पर बैठे होने की जानकारी मिलने पर उन्होंने तुरंत अपने निजी सचिव को आदेश कर राज दरबार का दरवाजा खुलवाया और सड़क पर बैठे सभी दो सौ पैदल यात्रियों को सम्मान से राजभवन के भीतर बुलवाया और आदर से बैठाकर पूरे डेढ़ घंटे तक उनकी समस्याओं को एक एक कर ध्यान से सुना और समस्याओं पर जल्द से जल्द एक्शन लेने का भरोसा दिया. राज्यपाल के इस पहल से दुर दराज से आये आदिवासियों ने प्रसन्नता से कहा कि पहली बार राजभवन में परंपराओं को तोड़ते हुए आधी रात तक दो सौ आदिवासियों के लिए दरवाजा खोला है तो निश्चित ही ये अच्छा संकेत है.

आदिवासियों के प्रतिनिधि के रूप में राजभवन में सर्व आदिवासी समाज के सुरजु टेकाम, सुदेश टिकम, संतोष नेताम, देवनारायण नेताम, जनकलाल ठाकुर, बाल सिंह आचला, देवजी धुर्वे,सीएल चंद्रवंशी, अंगद सलामें, ब्रिजेश सिंह, आशुतोष सिंह, राकेश नेताम, सुरेन्द्र घावडे, आर यस करपाल आदि उपस्थित रहे. इस मुलाकात के बाद एक बार फिर आदिवासियों में अपने हक एवं अधिकार के प्रति जागरूक सामाजिक कार्यकर्ताओं में नई आस जगी उठी है, इसके साथ ही एक बार फिर आदिवासी आंदोलन की भूमि मानपुर फिर पूरे देश के लिए एक उदाहरण के रूप में उभरी है.