रायपुर। राज्यपाल अनुसुईया उइके 14 जनवरी को पालघर (महाराष्ट्र) में आदिवासी एकता परिषद् द्वारा आयोजित 27वां आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन में शामिल हुईं। उन्होंने महासम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे देश में जनजातीय समाज की संस्कृति-परम्पराओं का गौरवशाली इतिहास रहा है। हर प्रदेश की संस्कृति वहां की भौगोलिक स्थिति के अनुसार अलग-अलग रही है। हमें अपने वैभवशाली इतिहास को जानना चाहिए।

राज्यपाल ने कहा कि संविधान में आदिवासियों के अधिकारों के सरंक्षण के लिए 5वीं अनुसूची सहित विभिन्न प्रावधान किए गए है। यह प्रयास किया जाए कि सभी को प्रावधानों का लाभ मिले। जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए एकलव्य विद्यालय स्थापित किए गए हैं। इसी तरह जनजातीय विश्वविद्यालय भी स्थापित किए जाना चाहिए।

राज्यपाल ने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग धंधों तथा विभिन्न प्रोजेक्ट के कारण जहाँ जहाँ भी आदिवासी विस्थापित किए गए हैं,, उन्हें पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए और विधिवत विस्थापन भी होना चाहिए। उन्होंने सभी विस्थापित किए जमीनों का डाटा बैंक बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि एकता में बहुत बड़ी ताकत होती है। जनजातीय परिषद जैसे संस्थाओं से आपको संरक्षण प्राप्त होता है। राज्यपालों के सम्मेलन मेंरे द्वारा सुझाव दिया गया था कि इसका अध्यक्ष गैर राजनीतिक व्यक्ति और जनजातीय समाज का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं आपकी बेटी के रूप में यहां आई हूं। उन्होंने आग्रह किया कि इस सम्मेलन की रिपोर्ट मुझे दें, मैं इसे राष्ट्रपति और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से चर्चा करूंगी।  उन्होने इस मौके पर जनजाति समाज के महापुरूषों की पूजा अर्चना की। इस अवसर पर कार्यक्रम की स्मारिका तथा गोंडी कैलेण्डर का विमोचन भी किया।

इस अवसर पर पालघर के सांसद राजेन्द्र गावित, आदिवासी एकता परिषद के महासचिव अशोक भाई चौधरी, आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष कालूराम धोवड़े, फूलमान चौधरी, आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन के अध्यक्ष बबलू निकोड़िया, आदिवासी एकता परिषद के सचिव डोंगर भाव बागुल, आदिवासी एकता परिषद के सदस्य वहरू सोनवणे, साधना बेन मीणा, विक्रम परते, एना बेले भाषा विद, बेन चैपल चाईल्ड वेलफेयर न्यूजीलैंड उपस्थित थे।