वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके ने प्रदेश में एक वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर लिया है. उन्होंने इस मौके पर खुलकर सबसे बातचीत की है. आज समाचार-पत्रों से लेकर चैनलों तक में उनके इंटरव्यू हुए. लेकिन इन सबके बीच उन्होंने लल्लूराम डॉट कॉम जो विशेष बातचीत की है, वह कई मायनों में बेहद खास रहा है. संपादक मनोज सिंह बघेल से इस बातचीत में क्या कुछ कहा राज्यपाल ने पढ़िए….और नीचे लिंक क्लिक कर इस इंटरव्यू को देख भी सकते हैं.

आयोग को छोड़ते हुए मुझे दुःख हुआ

सच कहूँ मैं तो राज्यपाल बनाए जाने से बिल्कुल अनजान थीं. मुझे तो यह जानकारी समाचार माध्यमों से मिली. अचानक मिली इस सूचना से मैं अवाक रह गई थीं. क्योंकि जिस समय मुझे राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई, उस समय तो मैं अनुसूचित जनजाति आयोग में उपाध्यक्ष के तौर काम कर रही थीं. मैं देश भर के कई राज्यों में जाकर आदिवासियों के मसले पर काम कर रही थीं. ऐसे में आयोग को छोड़ते हुए मुझे दुःख हुआ. हालांकि मेरे लिए खुशी की बात ये रही कि मुझे जिम्मेदारी एक आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ की मिली. मतलब आदिवासियों के बीच काम करने से मैं अलग नहीं हुई.

छत्तीसगढ़ घर जैसा ही

राज्यपाल कहती हैं कि बीते एक वर्ष में उन्हें कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि वो घर से दूर हैं. छत्तीसगढ़ बिल्कुल घर जैसा ही है. मैं छत्तीसगढ़ में खुद को एक वरिष्ठ सदस्य के तौर पर देखती हूँ. यहाँ के लोग बेहद अच्छे हैं. छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया क्यों हैं वाकई उनके बीच काम करते हुए बहुत अच्छे समझ पाई. आदिवासी बाहुल्य राज्य में आकर मैं कह सकती हूँ कि यह एक पुण्य भूमि है. वास्तव में आदिवासी निर्मल और निश्च्छल स्वभाव के होते हैं. आदिवासियों के बीच आयोग में रहते हुए मैं काम कर रही थीं ऐसे में राज्यपाल के रूप में भी मैंने इस कार्य को जारी रखा है. राज्यपाल बनते ही मुझे अनेक लोग मिले. सर्व आदिवासी समाज के लोग भी मिलने आए. उनसे मिलना बहुत ही सुखद रहा. छत्तीसगढ़ के विभिन्न मसलों पर बातचीत हुई. फिर अचानक ही सप्ताह भर में एक बड़ा कार्यक्रम आदिवासियों के बीच मेरा तय हो गया. सवाल प्रोटोकाल को लेकर था. क्योंकि कार्यक्रम अचानक तय हुआ था. ऐसे में सुरक्षा को लेकर राजभवन और जिला प्रशासन की चिंता थी. लेकिन आदिवासियों की भावना थी कि मैं कार्यक्रम में अवश्य मौजूद रहूँ. 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर धमतरी के मगरलोड में आयोजित इस सम्मेलन में मैंने जाना तय किया. एक घंटे में दौरा तय हुआ दो घंटे में आदिवासी सम्मेलन में पहुँच गई थीं. वहाँ जाकर लगा जैसे परिवार के बीच आ गई हूँ.

राज्यपाल को सिर्फ़ राजभवन तक सीमित नहीं रहना चाहिए

अनुसुईया उइके कहती हैं कि राज्यपाल का पद उम्र के एक पड़ाव में जाकर राजशी सुख भोगने की जगह नहीं है. और मेरे लिए कम से ऐसा कतई नहीं. मैं यह मानती हूँ कि राज्यपाल को सिर्फ़ राजभवन तक सीमित नहीं रहना चाहिए. वैसे भी मैं तो अभी उम्र दराज हूँ ये नहीं कहूँगी. क्योंकि यह माना जाता है कि राज्यपाल 65 वर्ष की आयु के बाद वाले ही बनते हैं. मेरे साथ ऐसा नहीं रहा. मैं तो अभी इस उम्र तक पहुँची भी नहीं. वैसे भी पद बड़ा नहीं होता, काम बड़ा होता है. मैं एक सेवक के रूप में स्वयं को देखती हूँ. मुझे राजभवन की चार-दीवारी में बंध के रहना पसंद नहीं. मैं संवैधानिक पद में हूँ इसलिए कई बार नियमों से बंधी रहती हूँ. लेकिन मैं समझती हूँ कि वास्तविक कार्य जमीन पर जाने से ही होता है. इसलिए मैंने जिम्मेदारी संभालने के बाद खुद को विभिन्न समुदायों के बीच ले जाने का काम किया. मैंने 6 महीने में छत्तीसगढ़ के कई स्थानों का दौरा किया. दंतेवाड़ा से लेकर पेंड्रा और सुपाबेड़ा तक आदिवासियों के बीच गई. वहीं आदिवासी भी मुझसे मिलने आते रहे हैं. आदिवासी ही नहीं, बल्कि सभी समाज के लोग मुझसे आकर मिलते रहते हैं. राजभवन आज हर किसी के लिए खुला है. मैं कह सकती हूँ अबूझमाड़ से भी लोग राजभवन आकर मिले हैं. मैं मानती हूँ कि प्रोटोकाल के बीच स्वयं को कभी कैद कर नहीं रखना चाहिए. मुझे दिखावा और आंडबर तो कतई पसंद नहीं. हाँ ये जरूरी है कि कई बार सुरक्षा के बीच रहना पड़ता है. पर सच कहूँ तो ऐसी स्थितियों के बीच मैं खुद को बंधी हुई पाती हूँ.

पाँचवीं अनुसूची के सभी क्षेत्रों का दौरा करूँगी

राज्यपाल कहती हैं कि छत्तीसगढ़ का अधिकांश हिस्सा पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र हैं. मैंने तय किया है मैं राज्य के उन सभी इलाकों में जाऊँगी जो पाँचवीं अनुसूची में शामिल है. मैं वहाँ पर जाकर आदिवासियों के बीच उनकी मूल समस्याओं पर बात करूँगी. सच कहूँ तो 21सदी के इस दौर में अभी भी आदिवासी अपने हक और अधिकार से वंचित हैं. आदिवासियों के सामने आज भी अनेक तरह की चुनौतियां है. उनके हितों की रक्षा करना हम जैसे उच्च पदों पर बैठे लोगों का दायित्व है. आदिवासी हमेशा स्वतंत्र होकर जीना पसंद करते हैं. लेकिन मैं देखती हूँ कि वें अनेक मोर्चे पर बंदिशों में जीने मजबूर हैं. मुझे यह जानकारी मिली है कि छत्तीसगढ़ में करीब 50 हजार एकड़ ऐसी जमीनें है जो कि न तो राजस्व में शामिल हैं और न वन भूमि के तौर पर. ऐसे में उन जमीनों का सही उपयोग से, आदिवासी उसका लाभ ले सके इस दिशा में मैं प्रयासरत हूँ. मैंने इस विषय पर मुख्यमंत्री से बात भी की है.

नक्सलवाद का खात्मा बंदूक से नहीं

राज्यपाल कहती हैं छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है. लेकिन राज्यपाल यह सवाल भी करती हैं कि नक्सली आदिवासी क्षेत्रों में ही क्यों हैं ? इसके पीछे मूल कारण क्या ? नक्सली समस्या से आदिवासी क्यों जुझ रहे हैं ? इन सवालों के बीच वे समाधान पर भी चर्चा करती हैं. वे कहती हैं कि नक्सलवाद का खात्मा बंदूक से संभव नहीं है. नक्सलवाद को खत्म करने के लिए हमें आदिवासियों के बीच बैठकर ही उपाय ढूँढने होंगे. सच्चाई यही है कि नक्सलवाद से मुक्ति बंद ऐसी कमरों मैं बैठकर चर्चा करने से नहीं मिल सकती है. पीड़ित आदिवासी, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की जनता, स्थानीय जनप्रतिनिधियों के बीच बैठक कर समाधान तलाशने होंगे. मैंने इस विषय को लेकर मुख्यमंत्री से चर्चा की है. साथ ही मैंने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राष्ट्रपति को भी अवगत कराया है. मैंने उनसे कहा है कि मैं आदिवासियों के बीच जाकर नक्सलवाद के विषयों पर बात करूँगी. सबसे जरूरी यही कि आदिवासियों को हम शिक्षित कर पाएं. उन तक विकास को पहुँचा पाए. जब मैं आई तो आदिवासी क्षेत्रों में सैकड़ों स्कूल बंद पड़े थे. लेकिन अब संचालित हो रहे हैं. विकास के साथ ही नक्सलवाद को खत्म कर पाएंगे.

आदिवासियों को कैंप में रहते देख दुःख होता है

राज्यपाल अपने दंतेवाड़ा दौरे का जिक्र करते हुए भावुक होती हैं. वे बताती हैं कि जब वे दंतेवाड़ा दौरे पर गई थीं, तो वहाँ वे आत्म समर्पित नक्सलियों से मिली. साथ ही वे उन कैंपों में भी गई जहाँ आदिवासी गाँव छोड़कर रहने को मजबूर हैं. उन्हें कैंपों में रहते देख दुःख हुआ. आदिवासी कैंपों में रहना नहीं चाहते, वे तो अपने गाँवों में रहना चाहते हैं. अपने बनाए घरों में रहना चाहते हैं. वे कड़ी सुरक्षा के सायों में घुटन महसूस करते हैं. वास्तव में उनकी पीड़ा को उनके बीच ही जाकर महसूस किया जा सकता है. मुझे आदिवासियों के दर्द का एहसास है. मैं समझती हूँ कि जल्द ही उन्हें कैंपों से मुक्ति मिलेगी.

निर्दोष आदिवासियों की रिहाई प्राथमिकता में

राज्यपाल बातचीत के दौरान एक घटना का जिक्र कहती हैं. वे बताती हैं कि जब वे महिला आयोग में थी तब उन्हें जेल में बंद कैदियों के बीच जाने का अवसर मिला. इस दौरान वे जेल में बंद 6 महिला कैदियों से मिली. उन्हें इस दौरान यह पता चला कि महिला कैदी किस तरह की घटनाओं से गुजरी हैं वह बेहद शर्मनाक है. महिलाओं ने यह बताया कि उन्हें नक्सली बताकर जेल में बंद कर दिया गया है. उन्हें सुरक्षा बल के जवानों ने भी प्रताड़ित किया. मेरे पास इस तरह की ढेरों शिकायतें नक्सलियों के साथ सुरक्षा बल के जवानों को लेकर भी आती रहती हैं. ये भी सच है कि कई बार आदिवासी अपने इलाके में सुरक्षा बल के जवानों से भी प्रताड़ित होते रहते हैं. मैंने इन विषयों को लेकर सुरक्षा बल के उच्च अधिकारियों से भी चर्चा की है. उन्हें निर्देशित भी किया है. वहीं छत्तीसगढ़ में आज विभिन्न जेलों में हजारों निर्दोष आदिवासी बंद हैं. उन पर बहुत छोटे-छोटे अपराध हैं, लेकिन सालों से उनकी रिहाई नहीं हो पाई है. मैंने मुख्यमंत्री से इस विषय पर चर्चा की है. मुख्यमंत्री स्वयं निर्दोष आदिवासियों की रिहाई को लेकर गंभीर हैं. एक कमेटी भी राज्य सरकार ने बनाई है. रिहाई को लेकर प्रकिया जारी है. मैं पूरी प्रथामिकता के साथ निर्दोष आदिवासियों की रिहाई के लिए प्रयास कर रही हूँ.

राज्य में संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं, बात सुनते हैं, अमल भी करते हैं

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के काम-काज को लेकर राज्यपाल कहती हैं कि मुख्यमंत्री संवेदनशील हैं. उनसे अगर कोई बात कहूँ तो उसे सुनते भी और उस पर अमल भी करते हैं. मैंने कई विषयों को लेकर उनसे चर्चा की है. मैं मुख्यमंत्री की ओर विभिन्न मुद्दों को लेकर ध्यानाकृष्ट कराती रहती हूँ. मैं तो कई बार सार्वजनिक तौर मुख्यमंत्री की तारीफ कर चुकी हूँ. जो अच्छा है उसे मैं अच्छा कहती हूँ.

राज्य सरकार से किसी तरह का कोई टकराव

राज्यपाल कहती हैं कि राज्य सरकार से किसी तरह का कोई टकराव नहीं. बीते दिनों जो मंत्रीगण राजभवन आए थे और मीडिया में जिस तरह की ख़बरें आई थी वैसी कोई बात नहीं है. मैंने ही मंत्रियों से कहा था कि उच्च शिक्षा कि विभिन्न विषय लंबित है उस पर चर्चा करनी है. मंत्रियों की ओर से मुझे मनाने वाली कोई बात नहीं है. मैं तो यह मानती हूँ कि मेरी भूमिका यहाँ पर एक संरक्षक की तौर पर है. शासन को बेहतर तरीके से संचालित करने में ही राज्य का विकास है. मेरी कोशिश यही है कि छत्तीसगढ़ का समग्र विकास हो उसमें किसी तरह से कहीं कोई रुकावट न आए.

राज्य सरकार की नीतियाँ बहुच अच्छी, लेकिन क्रियान्वयन पर जोर जरूरी है

वहीं राज्यपाल यह भी कहतीं है कि राज्य सरकार की ओर से ढेर सारी योजनाएँ संचालित हैं. सरकार की कई नीतियाँ बहुत अच्छी है. विशेष कर सरकार ने कृषि क्षेत्र में बेहतर काम किया है. हालांकि अभी नई सरकार को दो वर्ष भी नहीं हुए, लेकिन मैं गोधन न्याय योजना को एक बेहतर योजना मानती हूँ. लेकिन सरकार के लिए यह भी जरूरी है कि नीतियों का, योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर अच्छे से हो. अगर योजनाएं जनता तक नहीं पहुँची, उसका लाभ उन्हें नहीं मिला तो फिर कोई मतलब नहीं रह जाएगा. ऐसे में सरकार को बहुत कड़ाई से अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन पर ध्यान देना चाहिए. कई बार अधिकारियों और जनप्रतनिधियों के आपसी समन्वय या कमजोरी या कहिए लापरवाही से जनता अच्छी योजनाओं का लाभ ले वंचित रह जाती हैं. मैंने अपने दौरे के दौरान ऐसे अनुभव किए हैं.

स्वरोजगार और आत्मनिर्भर भारत अभियान

इसी पूरी बातचीत के दौरान राज्यपाल उइके अंत में यह कहती हैं कि कोरोना संकट के इस काल में हमें अनेक तरह की चुनौतियों से जुझना पड़ रहा है. विशेषकर आर्थिक कठिनाइयाँ और बेरोजगारी. ऐसे में जरूरी है कि स्वरोजगार को बढ़ावा दें. केंद्र सरकार की योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान एक महत्वपूर्ण कड़ी है. इस अभियान के तहत लोगों को स्वरोजगार की ओर लेकर जाना होगा. हमें लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करने की जरूरत है. छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में यह और भी जरूरी है. क्योंकि छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में लोग विभिन्न राज्यों से लौटे हैं, जो कि रोजी-मजदूरी के लिए जाते हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ जैसे कृषि अर्थ प्रधान राज्य में कृषि सेक्टर से जुड़े कार्यों पर विशेष रूप से काम करने की आवश्यकता हैं.

एक संदेश –

          कोरोना से बचाव के लिए आप आवश्यक रूप से सरकार की ओर से जारी निर्देशों का पालन करें. सावधानी ही बचाव है. मास्क लगाना, सेनेटाइज करना, फिजिकल, सोशल दूरी रखना कतई न भूले.  

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