कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्यप्रदेश में संचालित कोचिंग सेंटरों में अब 16 साल से कम उम्र के बच्चों की नो एंट्री होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि कोचिंग सेंटर्स को लेकर केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन लागू की गई है। मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग ने इसके पालन को लेकर आदेश जारी किया है। इस फैसले का मध्य प्रदेश कोचिंग एसोसिएशन ने स्वागत किया है।

मध्यप्रदेश कोचिंग एसोसिएशन ने सरकार से मांग भी की है कि आदेश का पालन करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार कोचिंग कंट्रोल एंड रेगुलेशन एक्ट तैयार करें। साथ ही प्रदेश भर में कोचिंग संस्थानों को उस एक्ट के तहत रजिस्टर्ड किया जाए। सरकार के बिना किसी मसौदे के यदि जबरन कार्रवाई कोचिंग सेंटर पर की जाती है तो मध्यप्रदेश कोचिंग एसोसिएशन मामले को न्यायालय की दहलीज पर ले जाएगा।

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मध्यप्रदेश सरकार प्रॉपर मसौदा तैयार करें

मध्य प्रदेश कोचिंग एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट एमपी सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार की गाइडलाइन और मध्य प्रदेश में उसे लागू करने के लिए शासन का आदेश स्वागत योग्य है, लेकिन इस आदेश को मध्य प्रदेश में कैसे लागू किया जाएगा? कौन इसे लागू करवाएगा? और किस आधार पर कहां पर यह लागू होगा? इसका प्रॉपर मसौदा मध्य प्रदेश सरकार को तैयार करके कोचिंग सेंटर को बताना होगा।

रजिस्ट्रेशन रद्द करने की कार्रवाई कैसे लागू की जाएगी

मध्य प्रदेश के अंदर 40000 से ज्यादा कोचिंग सेंटर संचालित होते हैं लेकिन उनका रजिस्ट्रेशन किस विभाग में किस एक्ट के तहत होना है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। ऐसी स्थिति में जब किसी सेंटर का रजिस्ट्रेशन ही नहीं होगा तो उस पर नई गाइडलाइन के तहत रजिस्ट्रेशन रद्द करने की कार्रवाई कैसे लागू की जाएगी। एडवोकेट एमपी सिंह का यह भी कहना है कि देश के अंदर 6 ऐसे राज्य हैं जिन्होंने अपने प्रदेश के अंदर संचालित कोचिंग संस्थानों को लेकर कंट्रोल एंड रेगुलेशन एक्ट तैयार किए हैं उसी तर्ज पर मध्य प्रदेश सरकार को भी कोचिंग कंट्रोल एंड रेगुलेशन एक्ट बनाना चाहिए। जिसमें कोचिंग एसोसिएशन,अभिभावक संघ और शासन के विभाग से संबंधित अधिकारी शामिल हो।

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न्यायालय की दहलीज पर ले जाने मजबूर होंगे

एमपी सिंह ने कहा कि एक अच्छा एक्ट तैयार किया जाए जिससे कोचिंग सेंटरों को भी परेशानी ना हो और अभिभावकों को फायदा मिल सके। एमपी सिंह का कहना है बिना किसी एक्ट के तैयार हुए यदि प्रदेश में कोचिंग संस्थानों पर जबरन कार्रवाई की जाती है तो वह इस मामले को न्यायालय की दहलीज पर ले जाने मजबूर होंगे।

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी जनहित याचिका

बता दें कि साल 2013 में स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया के जरिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। यह याचिका मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन के खिलाफ दायर की गई थी। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को डिस्पोज करते हुए अशोक मिश्रा कमेटी को इस मामले में सरकार को रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था। कमेटी ने 4 अप्रैल 2017 को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।

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लीगल फ्रेमवर्क के दायरे में लाने के दिए थे निर्देश

अशोक मिश्रा कमेटी ने सरकार को निर्देश दिए थे कि कोचिंग सेंटर का लीगल फ्रेमवर्क नहीं है। उन्हें लीगल फ्रेमवर्क के दायरे में लाया जाए साथ ही छात्रों की सेफ्टी और सिक्योरिटी पर भी काम किया जाए। इसके आधार पर ही नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के अलग-अलग पैरा में कोचिंग सेंटर को लेकर दिशा निर्देश तैयार किए गए।

कोचिंग कंट्रोल एंड रेगुलेशन एक्ट तैयार होना चाहिए

मध्य प्रदेश कोचिंग एसोसिएशन का कहना है कि देश के अंदर कोचिंग रेगुलेशन एक्ट 2010 में बिहार, गोवा में 2001,उत्तर प्रदेश में 2002, कर्नाटक में 2001, मणिपुर में 2017 में लागू किया जा चुका है। वहीं 2023 में राजस्थान सरकार इसको लेकर बिल लाई है। इसी के आधार पर ही मध्य प्रदेश में भी कोचिंग कंट्रोल एंड रेगुलेशन एक्ट तैयार होना चाहिए।

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