अनिल सक्सेना, रायसेन। मध्य प्रदेश में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है. आलम यह है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी के गृह जिले रायसेन में मरीज भगवान भरोसे हैं. मंत्री के इस जिले में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं. स्वास्थ्य मंत्री जिले के उदयपुरा विकासखंड में तीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंद हो गए हैं. वहीं 28 उपस्वास्थ केंद्र बदहाली के गम में खंडर हो गए हैं. इतनी ही नहीं उदयपुरा तहसील पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री का गृह निवास भी है. अब तक यहां स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के दम तोड़ने से दो दर्जन से अधिक लोगों की मौतें हो चुकी हैं.

बता दें कि रायसेन जिले के उदयपुरा तहसील में 4 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 28 उपस्वास्थ्य केंद्र एवं एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. जिनमें से सिर्फ एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र उदयपुरा एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, देवरी ही चालू हैं. बाकी तीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जर्जर हो चुके हैं. वहीं 28 उपस्वास्थ्य केंद्र अपने बदहाली से निजात पाने के लिए सरकार से गुहार लगा रही हैं. इतना ही नहीं कुछ केन्द्रों के तो अवशेष ही बचे हैं.

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वहीं छातेर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तीन वर्षों से बंद पड़ा हैं. जिसके अंतर्गत 10-15 गांवों के लोग आते हैं. जिन्हें शासन-प्रशासन ने उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया. अस्पताल बंद होने से परेशान हो रहे ग्रामीणों का कहना हैं कि तीन साल पहले से बंद हैं, अब इलाज के लिए उदयपुरा या बरेली जाना पड़ता है. ग्रामीणों ने बताया कि अभी तक इलाज के अभाव में 10-15 लोगों की मौतें भी हो चुकी हैं. जिले के केतोघान में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एक साल से बंद पड़ा है, यहां भी इलाज के अभाव से 10 से 12 लोगों की मौत हो चुकी हैं.

क्या ऐसे बचेगीं जिंदगियां

केंद्र और प्रदेश सरकार भले ही ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के बड़े-बड़े दावे कर रही हो लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं लगभग ध्वस्त हो चुकी हैं. प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी के गृह जिले की इन तस्वीरों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि स्वास्थ्य व्यवस्थाएं किस कदर दम तोड़ती नजर आ रही हैं. जिले के उदयपुरा तहसील में इन अस्पतालों के खंडहर में तब्दील हो जाने के बाद ग्रामीणों को कोसो दूर इलाज के लिए जाना पड़ रहा है. वहीं समय से इलाज न मिल पाने के कारण कई मरीजों की जान भी चली जाती है. ग्रामीणों के कई बार शिकायक के बावजूद भी शासन-प्रशासन को इनकी और अस्पतालों की सुध लेने का समय नहीं है.

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